भारत में फिलहाल अलग- अलग धर्म में अलग-अलग परंपरा और रीति रिवाजों के तहत शादियां होती हैं. जैसे हिन्दू धर्म में विवाह, मुस्लिम धर्म में निकाह और सिख धर्म में आनंद विवाह. अपने-अपने रीति रिवाजों से शादी करने के बाद कपल अपनी शादी को कानूनी तौर पर रजिस्टर करवाते हैं ताकि लीगल इश्यूज में या स्पाउस वीजा आदि में ये सर्टिफिकेट काम आ सके.


27 जून 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल के एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता (UCC) पर एक बयान दिया था, जिसके बाद देश भर में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर बहस जारी है. एक तरफ जहां ज्यादातर विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव से पहले यूसीसी चर्चा पर सवाल उठाया है. वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने कुछ शर्तों के साथ इस पर सहमति दिखाई है.


आम आदमी पार्टी के समर्थन के विरोध में अकाली दल के नेता डॉ. दलजीत चीमा ने केजरीवाल पर निशाना साधते हुए इसे दोहरी मानसिकता वाली पार्टी बताई है. उन्होंने कहा कि, 'अकाली दल का मानना है कि यूसीसी का कार्यान्वयन देश में अल्पसंख्यकों के हित में नहीं है और केंद्र सरकार को इसे लागू करने के विचार को स्थगित कर देना चाहिए. UCC लागू करना न ही संभव है और न ही इसकी जरूरत है.' 


दलजीत चीमा ने विरोध के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या कॉमन सिविल कोड का असर आनंद कारज मैरिज एक्ट पर भी पड़ेगा, जो सिख धर्म के लोगों के लिए विशेष अहमियत रखता है. इस खबर में हम इसी पर चर्चा करेंगे 


पहले जानते हैं वर्तमान में क्या है नियम 


फिलहाल भारत में शादी, तलाक, उत्तराधिकारी और गोद लेने के मामलों में अलग-अलग समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं. लेकिन समान नागरिक संहिता आने के बाद देश में किसी धर्म या समुदाय की परवाह किए बिना हर व्यक्ति पर एक ही कानून लागू होगा. 


कैसे होता है आनंद विवाह


आनंद विवाह हिंदू विवाह से थोड़ा अलग है. हिंदू धर्म में शादी से पहले शुभ मुहूर्त, कुण्डली मिलान आदि किया जाता है. लेकिन, आनंद विवाह में ऐसा कुछ नहीं देखा जाता. सिख धर्म में विवाह को शुभ काम माना जाता है. जिसका मतलब है कि सुविधानुसार किसी भी दिन गुरुद्वारे में विवाह किया जा सकता है.


आनंद विवाह में केवल 4 फेरे होते हैं. जिसे लवाण, लावा या फेरे कहा जाता है. पहले फेरे में दूल्हा दुल्हन नाम जपते हुए सत्कर्म करने की सीख लेते हैं. दूसरे फेरे लेते वक्त ग्रंथी नए जोड़े को गुरु को पाने का रास्ता बताते हैं. तीसरे फेरे में जोड़े को गुरबाणी सिखाई जाती है और चौथे फेरे में मन की शांति और गुरु को पाने की अरदास की जाती है. 


आनंद विवाह के पूरी रीति के वक्त अरदास चलती रहती है. जैसे फेरा खत्म होता है, नव विवाहित जोड़ा गुरु ग्रंथ साहिब और ग्रंथियों के सामने सिर झुकाता हैं. फिर प्रसाद बनाकर बांटा जाता है और शादी सम्पन्न हो जाती है.


क्या है आनंद विवाह एक्ट 


सिख धर्म में शादी करने के लिए मान्यता के अनुसार ‘आनंद’ की रस्म निभाई जाती है. इस रस्म को सिख धर्म के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी ने शुरू किया गया था. गुरु अमरदास जी ने ही 40 छंद लंबी बानी आनंदु की रचना की थी. इसे धार्मिक महत्व के सभी अवसरों और विवाह समारोहों के दौरान गाया जाता है. आनंद मैरिज एक्ट को सरकार ने भी अलग कानून बनाकर मान्यता दी है.


पहली बार आनंद मैरिज एक्ट को 1909 में ब्रिटिश काल में बनाया गया था. लेकिन उस वक्त किसी वजह से इस एक्ट को लागू नहीं किया जा सका. साल 2007 में जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी धर्मों के लिए मैरिज रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया तो सिख समुदाय ने भी आनंद मैरिज एक्ट को लागू करने की मांग उठाई. इससे पहले तक सिखों समुदाय के लोगों की शादियां हिंदू मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर की जाती थी. 


आनंद मैरिज एक्ट में पहले कई बार बदलाव भी किए जा चुके हैं. 7 जून 2012 को आनंद विवाह अधिनियम 1909 में संशोधन करते हुए दोनों सदनों ने आनंद विवाह संशोधन विधेयक 2012  को पारित किया था. इस अधिनियम के तहत सिख पारंपरिक विवाहों को मान्य करने के लिए आनंद का पंजीकरण अनिवार्य होगा. फिलहाल ये आनंद मैरिज एक्ट भारत के 22 राज्यों में लागू हो चुका है.


दूसरे शादियों से कैसे है आनंद मैरिज एक्ट अलग 


आनंद कारज मैरिज एक्ट की खास बात ये है कि इसके तहत जिन जोड़ों की शादी होती है उन्हें जन्म, विवाह और मृत्यु के लिए अन्य कानून के तहत पंजीकरण करने की जरूरत नहीं होती. 


यूसीसी का सिख धर्म पर क्या असर पड़ेगा 


सिखों की शादी संबंधित कानून 1909 के आनंद विवाह अधिनियम के अंतर्गत आते हैं. इसमें तलाक का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में उन्हें तलाक लेना है तो उनपर हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है. अब खबर सामने आई है कि यूसीसी से सिखों के आनंद मैरिज एक्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा. 


समान नागरिक संहिता लाने पर सरकार का तर्क


समान नागरिक संहिता लाने पर केंद्र सरकार का तर्क है कि इससे देश में मौजूद सभी नागरिकों के पर्सनल लॉ को एक समान बनाया जा सकेगा, जो बिना किसी धार्मिक, लैंगिक या जातीय भेदभाव के लागू होगा.


कई मुस्लिम नेताओं का मानना है कि केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता का मुद्दा मुसलमानों को टारगेट करने के लिए उठाया है. 


यूसीसी पर विपक्ष ने क्या कहा 


संजय राउत:  शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, 'कई देशों में समान नागरिक संहिता है और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की चिंताओं पर भी ध्यान देने को कहा. राउत ने इस विषय पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू करने के समय को लेकर भी सवाल उठाए.


एनसीपी: एनसीपी नो यूसीसी के मुद्दे पर वर्किंग कमेटी की मीटिंग में चर्चा की. इसके बाद नेशनल सेक्रेटरी नसीम सिद्दीकी ने कहा- हम ना तो यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का समर्थन करते हैं और न ही उसका विरोध. जनता और इससे जुड़े वर्गों के बीच इस पर चर्चा की जरूरत है. 


नेशनल कॉन्फ्रेंस: नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने यूसीसी के खिलाफ कहा कि सरकार यूसीसी को लागू करने से पहले इसके परिणामों पर बार-बार विचार करे. भारत विभिन्नताओं से भरा है और यहां अलग- अलग  धर्मों-जातियों के लोग भी रहते हैं. मुस्लिमों का अपना अलग शरीयत कानून है. सरकार सोच ले, तूफान आ सकता है. 


शिरोमणि अकाली दल: शिरोमणि अकाली दल के दलजीत चीमा ने यूसीसी का विरोध करते हुए कहा कि इसके लागू होने से अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर असर पड़ेगा और देश में अशांति-तनाव बढ़ेगा.


इन पार्टियों ने किया समर्थन


आम आदमी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का समर्थन किया है. मायावती ने कहा- उनकी पार्टी समान नागरिक संहिता के विरोध में नहीं है. मगर संविधान इसे थोपने का समर्थन नहीं करता है. 


उन्होंने आगे कहा, 'यूसीसी लागू करने के बीजेपी मॉडल पर हमारी असहमति है. भाजपा यूसीसी के जरिए संकीर्ण मानसिकता की राजनीति करने की कोशिश कर रही है.'