'पूरी तरह भ्रामक': सरकार ने गिलोय से जुड़े लिवर नुकसान के दावों का किया खंडन
आयुष मंत्रालय ने कहा है कि अधूरी जानकारी के आधार पर प्रकाशन से गलत सूचनाओं का दरवाजा खुलेगा और सैकड़ो वर्ष पुराने आयुर्वेद की बदनामी होगी. गिलोय इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर भारत की एक जड़ी-बूटी है.
आयुष मंत्रालय ने आज उस रिसर्च के दावे का खंडन किया है, जिसमें कहा गया था कि गिलोय के नाम से मशहूर टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया के इस्तेमाल के नतीजे में मुंबई में छह मरीजों को लिवर का नुकसान हुआ. प्रेस को जारी बयान में मंत्रालय ने साफ किया कि गिलोय को लिवर के नुकसान से जोड़ना भ्रामक होगा क्योंकि जड़ी-बूटी का इस्तेमाल आयुर्वेद में लंबे समय से किया जा रहा है.
गिलोय से लिवर क्षति की खबर भ्रामक
रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्च में बताया गया था कि लिवर की बीमारी गिलोय के सेवन का परिणामस्वरूप है. जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपीरिमेंटल हेपाटोलॉजी में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, बहुत ज्यादा गिलोय का काढ़ा पीने से लिवर टॉक्सिसिटी की समस्या हो सकती है. शोधकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने सितंबर से दिसंबर 2020 के बीच गिलोय से जुड़े लिवर के नुकसान वाले छह मामलों का पता लगाया था. डॉक्टर के पास आनेवाले मरीजों ने पीलिया और सुस्ती की शिकायत की थी.
मंत्रालय का कहना है कि रिसर्च के लेखक व्यवस्थित प्रारूप में मामलों की सभी आवश्यक जानकारी रखने में नाकाम रहे. बयान में आगे कहा गया, "कई विकारों के प्रबंधन में टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया का असर पूरी तरह से स्थापित है. रिसर्च के अवलोकन के बाद ये भी देखा गया कि शोधकर्ताओं ने जड़ी-बूटी के तत्वों का विश्लेषण नहीं किया है जिसे मरीज इस्तेमाल करते हैं. पता लगाने की जिम्मेदारी शोधकर्ताओं की हो जाती है कि मरीजों के जरिए इस्तेमाल की जानेवाली जड़ी-बूटी टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया ही है और न कि कोई दूसरी जड़ी-बूटी.
आयुष मंत्रालय ने रिसर्च का किया खंडन
ज्ञान की मजबूती के लिए लेखकों को चाहिए था कि किसी वनस्पति वैज्ञानिक की राय लेते या आयुर्वेद के विशेषज्ञ से मिलते." बयान में आगे बताया गया, "कई सारे रिसर्च से पता चलता है कि जड़ी-बूटी की सही पहचान नहीं होने का गलत नतीजा हो सकता है. टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया को भी उसी तरह देखने का लिवर पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है. लेखकों को चाहिए था कि मानक गाइडलाइन्स का पालन कर सही तरीके से पौधों की पहचान करते, जिसको उन्होंने नहीं किया. रिसर्च में बहुत सारी खामियां हैं. ये साफ नहीं है कि मरीजों ने कितना डोज लिया था या क्या उन्होंने इस जड़ी-बूटी को दूसरी दवाइयों के साथ लिया था. रिसर्च में मरीजों के वर्तमान या पूर्व के मेडिकल रिकॉर्ड पर विचार नहीं किया गया."
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