नई दिल्ली: रोहिंग्या पर हिंसा को आज एक साल पूरे हो चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र ने रोहिंग्या हिंसा के एक साल पूरा होने पर कहा कि सैकड़ों लोगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन तत्काल आर्थिक सहायता मुहैया न कराए जाने पर इन तमाम लोगों की जिंदगी एक बार फिर खतरे में आ सकती हैं. सिर्फ एक बार प्रयास करने से समस्या का हल नहीं हो सकता, कई लोग ऐसे हैं जिन्हें आर्थिक सहायता मुहैया कराए जाने में देरी से कई प्रकार की समस्या सामने आ रही हैं.


एक साल पहले हुई इस हिंसा के बाद करीब 7,00,000 रोहिंग्या लोगों ने सीमा पार बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में पनाह ली थी, उस समय बांग्लादेश में पहले से ही 2,00,000 शरणार्थी रह रहे थे. म्यांमार से आए शरणार्थियों में अधिकतर मुसलमान थे.


म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या समुदाय पर सेना की क्रूर कार्रवाई की गई थी जिसके बाद मानवाधिकार को लेकर ये मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठा था. इसी घटना के एक साल पूरे होने की पूर्वसंध्या पर संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की आपातकालीन तैयारी एवं प्रतिक्रिया के उप महानिदेशक पीटर सालमा ने पत्रकारों से कहा कि बांग्लादेश के कोक्स बाजार में ‘‘विशाल महामारी से निपटने के लिए सभी इंतजाम करने’’ के बावजूद वहां घातक बीमारियां फैलीं.


सालमा ने कहा, ‘‘खसरा, डिप्थीरिया, पोलियो, कोलेरा और रूबेला यहां फैलीं बीमारियों में शामिल हैं. यहां आपको बता दें कि बांग्लादेश सरकार, डब्ल्यूएचओ और सहयोगियों के संयुक्त प्रयासों से हजारों लोगों की जान बचाई जा चुकी हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें इन संक्रामक रोगों के शुरुआती लक्षणों के प्रति सतर्कता बनाए रखने की जरूरत है.’’


संयुक्त राष्ट्र की आव्रजन एजेंसी के प्रवक्ता जोएल मिलमैन ने कहा, ‘‘पर्यावरण की स्थिति, गंदगी, भीड़-भाड़ के कारण इसका खतरा बना हुआ है, जिस तरह से इन लोगों को रखा जा रहा है. हमें जरुरत के अनुसार प्रकोप प्रतिक्रिया को बढा़ने के लिए अपनी क्षमता बनाए रखने की जरूरत है.’’


रोहिंग्या पर हिंसा के आज एक साल पूरे हो चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र ने रोहिंग्या हिंसा के एक साल पूरा होने पर कहा कि सैकड़ों लोगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन तत्काल आर्थिक सहायता मुहैया न कराए जाने पर इन तमाम लोगों की जिंदगी एक बार फिर खतरे में आ सकती हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने कहा सिर्फ एक बार प्रयास करने से समस्या का हल नहीं हो सकता, कई लोग ऐसे हैं जिन्हें आर्थिक सहायता मुहैया कराए जाने में देरी से कई प्रकार की समस्या सामने आ रही हैं.


एक साल पहले हुई इस हिंसा के बाद करीब 7,00,000 रोहिंग्या लोगों ने सीमा पार बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में पनाह ली थी, उस समय बांग्लादेश में पहले से ही 2,00,000 शरणार्थी रह रहे थे. म्यांमार से आए शरणार्थियों में अधिकतर मुसलमान थे.


म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या समुदाय पर सेना की क्रूर कार्रवाई की गई थी जिसके बाद मानवाधिकार को लेकर ये मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठा था. इसी घटना के एक साल पूरे होने की पूर्वसंध्या पर संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की आपातकालीन तैयारी एवं प्रतिक्रिया के उप महानिदेशक पीटर सालमा ने पत्रकारों से कहा कि बांग्लादेश के कोक्स बाजार में ‘‘विशाल महामारी से निपटने के लिए सभी इंतजाम करने’’ के बावजूद वहां घातक बीमारियां फैलीं.


सालमा ने कहा, ‘खसरा, डिप्थीरिया, पोलियो, कोलेरा और रूबेला यहां फैलीं बीमारियों में शामिल हैं. यहां आपको बता दें कि बांग्लादेश सरकार, डब्ल्यूएचओ और सहयोगियों के संयुक्त प्रयासों से हजारों लोगों की जान बचाई जा चुकी हैं.’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें इन संक्रामक रोंगों के शुरुआती लक्षणों के प्रति सतर्कता बनाए रखने की जरूरत है.’’


संयुक्त राष्ट्र की आव्रजन एजेंसी के प्रवक्ता जोएल मिलमैन ने कहा, ‘पर्यावरण की स्थिति, गंदगी, भीड़-भाड़ के कारण इसका खतरा बना हुआ है, जिस तरह से इन लोगों को रखा जा रहा है.