Rafale Deal: राफेल डील पर कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने, जानें- कैसे UPA और NDA की सरकार में अलग है यह सौदा
Rafale Deal News: राफेल डील को लेकर एक बार फिर राजनीति तेज हो गई है. ऐसे में आज हम आपको यह बता रहे हैं कि आखिर यूपीए सरकार की राफेल डील मौजूदा एनडीए सरकार से अलग थी.
Rafale Deal News: राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर एक बार फिर कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने आ गई हैं. आखिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार (2004-14) की राफेल डील मौजूदा पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार से कैसे अलग थी, आइये हम आपको विस्तार से बताते हैं.
यूपीए सरकार के दौरान भारत ने वर्ष 2012 में फ्रांस की दसो (दासों या दसॉल्ट) कंपनी को 126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए चुना था. इस प्रोजेक्ट के तहत 18 विमान सीधे फ्रांस से खरीदने जाने थे और बाकी 108 भारत में ही सरकारी कंपनी एचएएल के सहयोग से बनाए जाने थे. उस वक्त इस करार को एमएमआरसीए यानि मीडियम मल्टी रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट डील का नाम दिया गया था.
साल 2007 में हुई थी इस डील की शुरूआत
माना जाता था कि 2007 में जब इस डील की शुरूआत हुई थी तो इसकी कीमत करीब 40 हजार करोड़ थी. लेकिन 2014 तक इसका सौदा करीब 80 हजार करोड़ तक पहुंच गया था. कंपनी द्वारा लगातार सौदे की कीमत बढ़ाए जाने के कारण यूपीए सरकार ने इस सौदे पर कभी मुहर नहीं लगाई. लेकिन आपको बता दें कि यूपीए सरकार ने इस सौदे की कुल कीमत की जानकारी कभी भी आधिकारिक तौर से सार्वजानिक नहीं की थी.
वर्ष 2014 में केन्द्र में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के आने के बाद एमएमआरसीए प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रैल 2015 में फ्रांस यात्रा के दौरान फ्रांस सरकार से इंटर- गर्वमेंटल एग्रीमेंट कर सीधे (सिर्फ) 36 राफेल फाइटर जेट खरीदने का ऐलान कर दिया. बाद में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने सितबंर 2016 में इंटर-गर्वेमेंटल एग्रीमेंट के तहत इस सौदे पर करार किया.
एक राफेल विमान की कीमत करीब 670 करोड़ रूपये
नबम्बर 2016 में रक्षा राज्यमंत्री सुभाष राव भामरे ने संसद को एक सवाल के जवाब में बताया था कि एक राफेल विमान की कीमत करीब 670 करोड़ रूपये है. लेकिन उस दौरान ये साफ नहीं था कि ये कीमत अकेले विमान की है या फिर इसमें हथियार इत्यादि भी शामिल हैं.
हालांकि सार्वजनिक मंच से मोदी सरकार ने इन 36 विमानों की डील की पूरी कीमत आधिकारिक तौर से कभी नहीं बताई लेकिन रक्षा मंत्रालय से जुड़े उच्चपदस्थ सूत्र ये बताते हैं कि ये सौदा करीब 59 हजार करोड़ रूपये (यानि 7.9 बिलियन यूरो) का हुआ है. यानि एक जेट की कीमत करीब करीब डेढ़ हजार करोड़ रूपये पड़ रही है.
लेकिन मोदी सरकार के सूत्रों की मानें तो यूपीए के समय में जो डील थी वो सिर्फ विमानों की थी, उसके हथियारों और दूसरे उपकरण की नहीं थी. जबकि मोदी सरकार ने जो डील की है उसमें करीब 710 मिलियन यूरो (यानि करीब 5341 करोड़ रुपये) लड़ाकू विमानों के हथियारों पर खर्च किए हैं. साथ ही 75 प्रतिशत विमान हमेशा ऑपरेशनली रेडी रहेंगे. इसके अलावा कंपनी से इन विमानों में ऐसे उपकरण लगवाए गए कि वे हर जलवायु के अनुरूप हों. विमानों के अतिरिक्त उपकरण पर हुआ खर्चा भी सौदे में शामिल है.
36 विमानों की कीमत 3402 मिलियन यूरो
राफेल का फुल पैकेज कुछ इस तरह है. 36 विमानों की कीमत 3402 मिलियन यूरो, विमानों के स्पेयर पार्टस 1800 मिलियन यूरो के हैं जबकि भारत के जलवायु के अनुरुप बनाने में खर्चा हुआ है 1700 मिलियन यूरो का. इसके अलवा पर्फोमेंस बेस्ड लॉजिस्टिक का खर्चा है करीब 353 मिलियन यूरो का. करीब 710 मिलियन यूरो (करीब 5341 करोड़) खर्च किए राफेल की मिसाइलों और दूसरे हथियारों पर.
भारत को अब तक 26 राफेल लड़ाकू विमान मिल चुके हैं. इनमें से 18 लड़ाकू विमान अबतक अंबाला स्थित गोल्डन-ऐरो स्कॉवड्रन का हिस्सा बन चुके हैं और पूर्वी लद्दाख से लेकर हिमाचल प्रदेश तक की एयर-स्पेस की सुरक्षा में तैनात हैं. देश की पूर्वी सीमाओं की हवाई-सुरक्षा को मजबूत करने के लिए राफेल फाइटर जेट की दूसरी स्कॉवड्रन पश्चिम बंगाल के हासिमारा में ऑपरेशन्ली तैयार हो गई है. इस स्कॉवड्रन में 08 विमान शामिल हो चुके हैं.
हाशिमारी स्कॉवड्रन को 101 स्कॉवड्रन के नाम से जाना जाता है, जिसे ‘फॉल्कन ऑफ छंब एंड अखनूर’ का नाम भी दिया जाता है. भारतीय वायुसेना की एक स्कॉवड्रन में 18 लड़ाकू विमान होते हैं. अगले साल यानि मार्च 2022 तक बाकी 10 विमान भी भारत तक पहुंचने की उम्मीद है.