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राफेल डील: फ्रेंच वेबसाइट के खुलासे के बाद हमलावर हुई कांग्रेस, सुरजेवाला बोले- सच्चाई सामने आ गयी

राफेल विमान सौदे पर फ्रांस की समाचार वेबसाइट के इस खुलासे के बाद विवाद का जिन्न एक बार फिर से बाहर आ गया है. राफेल सौदे को लेकर विपक्ष मोदी सरकार को पहले भी घेरता रहा है. लेकिन इस रिपोर्ट के बाद विपक्ष के हाथ एक बार फिर सरकार पर हमलावर होने का मौका लग गया है.

नई दिल्ली: फ्रांस की समाचार वेबसाइट मीडिया पार्ट के खुलासे के बाद एक फिर राफेल विवाद का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है. कांग्रेस ने इस खुलासे पर मोदी सरकार पर एक बार फिर हमला बोला है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि इस सौदे सच्चाई सामने आ गयी है.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कहते थे कि यह डील सरकार से सरकार के बीच है तो फिर इसमें बिचौलिया कहां से आ गया. इसके साथ ही सुरजेवाला ने कहा कि सरकार CAG, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, संसद बीजेपी कोई भी नहीं बताता राफ़ेल जहाज़ की क़ीमत क्या है ?

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ''60 हजार करोड़ रुपए के राफेल से जुड़े रक्षा सौदे से जुड़े मामले में सच्चाई सामने आ गई है. ये हम नहीं फ्रांस की एक एजेंसी ने खुलासा किया है. कमीशनखोरी और बिचौलिए की एक गाथा आपके सामने है. 60 हजार करोड़ रुपए के राफेल खरीदने की घोषणा की गई ना कोई टेंडर ना कोई सूचना जैसे केले और सेब खरीदते हैं वैसे बात की गई.''

सुरजेवाला ने कहा, ''इसको 'Gift to Clients' की संज्ञा दे दी. अगर ये मॉडल बनाने के पैसे थे तो 'Gift to Client' क्यों कहा ? इसलिए क्योंकि ये छिपे हुए ट्रांजेक्शन का हिस्सा था. जिस कंपनी को ये पैसे दिए गए वो मॉडल बनाती हीं नहीं है. कल जो खुलासा सामने आया है उसमे फ्रांस की एजेंसी ने जब ऑडिट किया तो उसमे पाया राफेल में 1.1 मिलियन यूरो एक बिचलियो को दिए. फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक कंपनी ने खुलासा किया.''

सुरजेवाला ने कहा, ''डील के लिए बिचौलिए तो 1.1 मिलियन यूरो दिए गए. क्या बिचौलियों को दिए जाने वाले कमीशन की कानून में इजाजत है. क्या पूरे डील पर सवाल खड़ा नहीं हो गया है? क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए और क्या अब प्रधानमंत्री इसका जवाब देंगे?''

उन्होंने कहा, ''प्रधानमंत्री तो कहते थे ये सरकार से सरकार की डील थी तो फिर बिचौलिये कहां से आए. 2012 में पूरी टेंडर प्रक्रिया के साथ हम यहीं जहाज़ तकनीक ट्रांसफर के साथ इससे काफी कम दाम में खरीद रहे थे. मगर प्रधानमंत्री ने तो ये टेंडर ही रद्द कर दी थी. क्या इस पूरे मामले की जांच नहीं होनी चाहिए?''

फ्रांस की वेबसाइट का दावा- राफेल सौदे में हुआ भ्रष्टाचार फ्रांस की समाचार वेबसाइट मीडिया पार्ट ने राफेल पेपर्स नाम से आर्टिकल प्रकाशित किए हैं. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक राफेल लड़ाकू विमान डील में गड़बड़ी का सबसे पहले पता फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी AFA को 2016 में हुए इस सौदे पर दस्तखत के बाद लगा. AFA को ज्ञात हुआ कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन ने एक बिचौलिए को 10 लाख यूरो देने पर रजामंदी जताई थी. यह हथियार दलाल इस समय एक अन्य हथियार सौदे में गड़बड़ी के लिए आरोपी है. हालांकि AFA ने इस मामले को प्रोसिक्यूटर के हवाले नहीं किया.

रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2018 में फ्रांस की पब्लिक प्रोसिक्यूशन एजेंसी PNF को राफ़ेल सौदे में गड़बड़ी के लिए अलर्ट मिला. साथ ही लगभग उसी समय फ्रेंच कानून के म्युताबिक दासौ एविएशन के ऑडिट का भी समय हुआ. कंपनी के 2017 के खातों की जाँच का दौरान 'क्लाइंट को गिफ्ट' के नाम पर हुए 508925 यूरो के खर्च का पता लगा. यह समान मद में अन्य मामलों में दर्ज खर्च राशि के मुकाबले कहीं अधिक था.

रिपोर्ट में बताया गया कि इस खर्च पर मांगे गए स्पष्टीकरण पर दासौ एविएशन ने AFA को 30 मार्च 2017 का बिल मुहैया कराया जो भारत की DefSys Solutions की तरफ से दिया गया था. यह बिल राफ़ेल लड़ाकू विमान के 50 मॉडल बनाने के लिए दिए ऑर्डर का आधे काम के लिए था. इस काम के लिए प्रति नग 20, 357 यूरो की राशि का बिल थमाया गया.

अक्टूबर 2018 के मध्य में इस खर्च के बारे में पता लगने के बाद AFA ने दासौ से पूछा कि आखिर कंपनी ने अपने ही लड़ाकू विमान के मॉडल क्यों बनवाये और इसके लिए 20 हज़ार यूरो की मोटी रकम क्यों खर्च की गई? साथ ही सवाल पूछे गए कि क्या एक छोटी कार के आकार के यह मॉडल कभी बनाए या कहीं लगाए भी गए?

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