पीएम मोदी पर विपक्ष के अपशब्दों की बौछार से होता है बीजेपी को फायदा
कांग्रेस के नेताओ में पीएम मोदी को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती है. इस बार शशि थरूर ने मोदी की तुलना "बिच्छू" से की है. बीजेपी इस बयान को खूब भुनायेगी, उसको पता है जब जब मोदी को भला-बुरा कहा गया बीजेपी को फायदा हुआ है.
नई दिल्ली: कांग्रेस के नेताओ में पीएम मोदी को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती है. इस बार शशि थरूर ने मोदी की तुलना "बिच्छू" से की है. बीजेपी इस बयान को खूब भुनायेगी, उसको पता है जब जब मोदी को भला-बुरा कहा गया बीजेपी को फायदा हुआ है. शशि थरूर ने कहा था "आरएसएस के एक नेता ने पत्रकार को कहा" मोदीं शिवलिंग पर बैठा बिच्छू है जिसे हाथ से हटा नहीं सकते और चप्पल से मार नहीं सकते क्यों कि शिवलिंग पर बैठा है"
शशि थरूर का ये बयान वैसे तो एक जर्नलिस्ट के हवाले से है लेकिन न तो पत्रकार का नाम शशि थरूर ने लिया और न आरएसएस के नेता का नाम ही लिया है. इसलिए माना जा रहा है कि ये शशि थरूर की गढ़ी कहानी है. इस बयान पर हालांकि शशि थरूर ने सफाई भी दी है लेकिन बीजेपी ने इसे मुद्दा बना कर कांग्रेस और राहुल गांधी से माफी की मांग कर डाली. वजह है बीजेपी का आकलन है कि जब-जब मोदी को गाली दी गयी या भला-बुरा कहा गया उसका फायदा बीजेपी को हुआ है, जानकर भी मानते हैं कि मोदी को गाली देना या भला-बुरा कहना कांग्रेस को नुकसान पहुंचता है और मोदी को सहानभूति मिलती हैं. जिसका फायदा खासतौर पर चुनावो में बीजेपी को होता है.
शशि थरूर अंतरराष्ट्रीय स्तर के नेता हैं जो भारत का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. उनको ऐसी भाषा से बचना चाहिए. इसे धर्मित स्थित से जोड़ा गया और बीजेपी इस चीज़ में माहिर है. आप उसके पाले में जा कर खेलेंगे तो मात खाएंगे. उनके विकास , काम काज पर बात उठानी चाहिए थी. विपक्षी दल ऐसा मौका BJP को देगा तो उसका फायदा वो ज़रूर लेगी.
पहला मौका नहीं है जब मोदी के लिए असंसदीय शब्दो का इस्तेमाल कांग्रेस नेताओं की तरफ से किया गया है. 2002 के दंगो को लेकर 12 साल तक मोदी को राजनीतिक रूप से खत्म करने की कोशिश करती रही कांग्रेस ने पहली बार मोदी के लिए 2007 के विधानसभा चुनावों में "मौत का सौदागर" कहा था. इसका असर उल्टा हुआ और बीजेपी ने इस शब्द का इस्तेमाल कर गुजरात के अपमान को कैश करा लिया. 2012 के चुनाव में मोदी को कांग्रेस नेताओ ने "रावण मोदी" "जालिम मोदी" और 2017 में मणिशंकर अय्यर ने उन्हें "नीच मोदी" तक कहा.
चुनावी विश्लेषक और सीएसडीएस के निदेशक संजय कुमार का मानना है कि अपशब्दों के इस्तेमाल को भुनाने के लिए अपने फायदे के हिसाब से विश्लेषण किया जाता है. इसकी कोई विधि, टेक्निक नही है. अब जैसे नीच' शब्द को खूब इस्तेमाल किया गया लेकिन क्या सच मे मणि शंकर ने नीच शब्द का प्रयोग किया था? नही! उन्होंने ' नीच किस्म' कहा था. इसको अपने हित के हिसाब से इस्तेमाल किया गया.
जानकर मानते हैं कि जनता के बीच मे किसी व्यक्ति की छवि खराब होती है तो उसपर लगे आरोपों पर विश्वास करने की संभावना ज्यादा होती है. ऐसा व्यक्ति जिसकी छवि अच्छी, साफ होती है उस पर जनता विश्वास कम करती है. मोदी की छवि बड़ी है और उन पर होने वाले कटाक्ष पर लोग भरोसा नही करते ऐसे मे विपक्ष को इसका फायदा मिलता नही मिलता है और इस तरह के बयान 'बैक- फायर' करते हैं. जाहिर है जब जब विपक्ष ने नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किये या जब जब मोदी के लिए अपशब्दों के इस्तेमाल किया गया बीजेपी को इसका फायदा हुआ और विपक्ष या एक समय के सत्ताधारी काँग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा.