नई दिल्ली: महज साल भर से भी कम वक़्त में दो राज्यों की सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस के बारे में अब पुख़्ता तौर पर कहा जा सकता है कि वह अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लेना चाहती. पिछले साल मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार जाने की जो वजह थी, ठीक वैसे ही हालात पुडुचेरी में भी बन चुके थे लेकिन समय रहते पार्टी नेतृत्व ने बगावत के इस बिगुल की आवाज़ या तो सुनी नहीं या फिर उसे जानबूझकर अनसुना कर दिया.


सियासत में अपनों की बगावत को अनसुना कर देने का नतीजा यह होता है कि सत्ता के शिखर पर बैठी पार्टी एक ही रात में अर्श से फर्श पर आ जाती है. हालांकि पुडुचेरी में आये राजनीतिक संकट को संभालने और पार्टी को होने वाले सियासी नुकसान से बचाने के लिए पिछले दिनों राहुल गांधी वहां पहुंचे थे.


उन्होंने दो दिन तक उन विधायकों से बातचीत भी की जो तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणसामी की कार्य शैली से नाराज थे. लेकिन राहुल उन्हें नहीं मना पाये और तभी यह अहसास हो गया था कि नारायणसामी सरकार चंद दिनों की ही मेहमान है.


पार्टी के संकट में आने पर कांग्रेस के अधिकांश नेताओं को भले ही कोई फर्क न पड़ता हो लेकिन गांधी परिवार को ऐसे नाजुक पलों में अपने 'संकटमोचक' अहमद पटेल की कमी यकीनन खलती ही होगी. सूत्रों की मानें, तो करीब दो साल पहले भी नारायणसामी सरकार पर ऐसा ही संकट आया था लेकिन तब पार्टी के इस संकटमोचक ने बगावत का परचम थामे विधायकों व नारायणसामी को दिल्ली बुलाकर,आमने-सामने बैठाकर एक ही रात में पूरे मामले को सुलटा कर सरकार बचा ली थी.


इसी तरह अगर पिछले साल कमलनाथ अपनी जिद पर न अड़े होते और पटेल द्वारा सुझाये फॉर्मूले को मान लेते,तो आज ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने समर्थक विधायकों के साथ पार्टी में ही होते और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार होती.


उधर, राजस्थान में भी कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है. वहां से भी पार्टी के लिए खतरे की घंटी वाली खबरें आनी शुरु हो गई हैं. बताते हैं कि सचिन पायलट ने अपने खास सिपहसालारों के बीच बुदबुदाना शुरु कर दिया है कि ''बहुत हुआ सम्मान,अब हमें कर दिखाना होगा अपना काम."


लिहाजा कोई बड़ी बात नहीं कि निकट भविष्य में वहां के रेगिस्तान से आने वाली तपिश पार्टी को झुलसाकर रख दे. दिनों दिन कमजोर होती सियासी ताकत के साथ ही पार्टी धन की कमी के भी बुरे दौर से गुजर रही है. पार्टी के पास ऐसा कोई दूसरा अहमद पटेल भी नहीं है जो फंड जुटाने के साथ ही सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बनाते हुए तूफानी लहरों के बीच डगमगाती हुई कश्ती को सही सलामत किनारे तक पहुंचा सके.


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