कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने रविवार (17 सितंबर) को कहा कि पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस कार्य समिति (CWC) ने मांग की है कि महिला आरक्षण विधेयक संसद के विशेष सत्र के दौरान पारित किया जाना चाहिए. हैदराबाद में दो दिवसीय बैठक के पहले दिन सीडब्ल्यूसी ने अपने प्रस्ताव में 18 से 22 सितंबर तक होने वाले विशेष सत्र में विधेयक को पारित कराने का जिक्र किया है.


एक्स (ट्विटर) पर एक ट्वीट में जयराम रमेश ने कहा, 'कांग्रेस कार्य समिति ने मांग की है कि महिला आरक्षण विधेयक संसद के विशेष सत्र के दौरान पारित किया जाना चाहिए.' उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ तथ्यों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि राजीव गांधी ने पहली बार मई 1989 में पंचायतों और नगर पालिकाओं में एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था. यह लोकसभा में पारित हो गया, लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में विफल हो गया.


राज्यसभा में पारित है बिल, अब भी सक्रिय- जयराम रमेश
जयराम रमेश ने यह भी कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने अप्रैल 1993 में पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक फिर से पेश किया. दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए. उन्होंने कहा, 'अब पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं. यह लगभग 40 प्रतिशत है.' जयराम रमेश ने कहा, 'पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाए. विधेयक 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ, लेकिन इसे लोकसभा में नहीं लिया गया. राज्यसभा में पेश या पारित विधेयक समाप्त नहीं होते हैं इसलिए महिला आरक्षण विधेयक अभी भी सक्रिय है.' 


जयराम रमेश बोले, राज्यसभा में पारित बिल समाप्त नहीं होते
जयराम रमेश ने आगे कहा, 'कांग्रेस पार्टी नौ साल से मांग कर रही है कि महिला आरक्षण विधेयक पहले ही राज्यसभा में पारित हो चुका है और अब लोकसभा में भी पारित हो जाना चाहिए.' उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने 2008 में इस कानून को फिर से पेश किया, जिसे आधिकारिक तौर पर संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक के रूप में जाना जाता है. जयराम रमेश ने कहा कि यह कानून 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका और 2014 में इसके विघटन के बाद यह समाप्त हो गया.


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