Muslim Women Entitled For Maintenance: मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद भी पति से भरण-पोषण के लिए खर्च मिलने के अधिकार से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने अब कांग्रेस पर हमला बोला है. बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कोर्ट की टिप्पणी का जिक्र करते हुए शाह बानो मामला उठाया और कांग्रेस पर हमलावर होते हुए कहा कि राजीव गांधी सरकार ने संविधान के ऊपर शरिया को तवज्जो दी थी. 


साल 1985 में शाह बानो ने तलाक के बाद पति से एलिमनी यानी भरण-पोषण की मांग की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी थी. हालांकि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस फैसले को पलटते हुए संसद में कानून पारित कर दिया था. इस घटना का जिक्र करते हुए राज्य सभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक को खत्म कर दिया है. 


जब-जब कांग्रेस आई सत्ता में, तब-तब संविधान पर आया खतरा : सुधांशु त्रिवेदी


उन्होंने कहा, जब-जब कांग्रेस सत्ता में आई है, तब-तब संविधान को खतरा पैदा हुआ है. उन्होंने राजीव गांधी सरकार का जिक्र करते हुए कहा कि उनके फैसले ने संविधान के ऊपर शरिया को तवज्जो दी थी. त्रिवेदी ने कहा कि संविधान की जिस प्रतिष्ठा को कांग्रेस सरकार के दौरान तहस-नहस कर दिया गया था उसे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने फिर से स्थापित कर दिया है. 


सुधांशु त्रिवेदी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को धार्मिक नजरिए से नहीं देखना चाहिए. ये समान अधिकारों से जुड़ा मसला है. उन्होंने आगे दावा किया कि ऐसा कोई भी धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है जहां हलाला, तीन तलाक और हज सब्सिडी जैसे शरिया प्रावधानों को इजाजत दी जाती हो. इसी के साथ त्रिवेदी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस की सरकारों ने भारत को एक आंशिक इस्लामिक राज्य में तब्दील कर दिया था.


क्या है वो 'सुप्रीम' फैसला, जिसको लेकर कांग्रेस पर हमलावर है बीजेपी


सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक मामले पर सुनवाई के दौरान निर्देश दिया कि तलाक के बाद मुस्लिम महिलाएं भी भरण-पोषण के लिए CrPC की धारा 125 के तहत पति से भत्ते की मांग कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि ये धारा सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है, चाहे उनका धर्म कोई भी हो. इस मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बैंच ने साफ किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को धर्मनिरपेक्ष कानून पर तरजीह नहीं मिलेगी.


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