राजस्थान बीजेपी में अगर उठापटक का दौर जारी है, तो कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं है. अब राजस्थान में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना बीजेपी के लिए नाक की लड़ाई है. वहीं, कई जन कल्याण योजना प्रदेश में लागू कर चुके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार पांच-पांच साल कांग्रेस और बीजेपी का दो दशक पुराना मिथक तोड़ने का मंसूबा पाले हैं. कुल मिलाकर सबकी कोशिश सत्ता का फल पाने की है.


बीजेपी के नेताओं ने मंगलवार को एक साथ चलने का मंत्र पार्टी आलाकमान से हासिल किया था. अब बारी कांग्रेस की है. इसकी वजह से राज्य के सीएम गहलोत आज अपनी पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत अन्य नेताओं से मिलेंगे. वैसे सचिन पायलट और गहलोत खेमे की आपसी खींचतान गहलोत के दिल्ली दौरे का मसौदा नहीं है, लेकिन जब कई नेता मिल बैठेंगे, तो चर्चा तो होगी ही. 


पीके की चुनावी चर्चा और जीत के मंत्र वाले क्लास रूम में भी शामिल होंगे


वैसे अशोक गहलोत इस बार प्रशांत किशोर की चुनावी चर्चा और जीत के मंत्र वाले क्लास रूम में भी शामिल होंगे. पीके की ये क्लास पहले छत्तीसगढ़ को लेकर हो चुकी है. इस दौरान गहलोत का मुख्य फोकस इस विषय पर रहेगा कि साढ़े तीन साल बाद भी राज्य में सत्ता विरोधी लहर नहीं है. उल्टे मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना और दूसरी स्वास्थ्य योजनाओं की वजह से जनता उनकी सरकार से काफी खुश है और इनके जरिए वो एक बार फिर राजस्थान की चुनावी वैतरणी पार कर जाएंगे. ऐसा दावा भी गहलोत पार्टी आलाकमान के सामने करने वाले हैं. 


वैसे गहलोत का सबसे बड़ा चुनावी हथियार होगा राजस्थान में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करना. गहलोत अपने नेताओं को ये भी बताएंगे कि इसकी वजह से राज्य के सरकारी कर्मचारी बेहद खुश हैं और प्रशांत किशोर ये बताए कि इसका चुनावी फायदा कैसे हासिल किया जाए. इसमें कोई दो राय नहीं कि ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर गहलोत में प्रदेश के दस लाख सरकारी कर्मचारियों के बीच अपनी सरकार के लिए काफी हद तक सकारात्मक माहौल बना लिया है.


गहलोत और पायलट के बीच की खाई पाटने के लिए आलाकमान ने जो कोशिश कि उसका नतीजा है कि दोनों गुट अब एक दूसरे पर सीधे बयानी प्रहार से बच रहे हैं, लेकिन दोनों गुटों के बीच दूरी अभी भी कायम है. इस बात को हाल के गहलोत के डूंगरपुर और गुजरात के सीमा से लगते इलाकों के दौरे से समझा जा सकता है. 


करौली में नव समवत्सर के मौके पर हुई साम्प्रदायिक हिंसा पर एक्शन


गुजरात के रास्ते राजस्थान में पहुंची गांधी यात्रा के स्वागत के लिए गहलोत वहां पहुंचे थे. जयपुर से अपने साथ वो प्रभारी अजय माकन और मुकुल वासनिक के साथ प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटसरा को विशेष विमान में डूंगरपुर तक ले गए, लेकिन पायलट इस आयोजन से दूर रखे गए. हालांकि, गहलोत के दिल्ली दौरे को लेकर पायलट खेमे के कुछ लोग सोशल मीडिया पर गहलोत को दिल्ली तलब करने जैसे मुद्दे से भी जोड़ रहे हैं, लेकिन ये बिल्कुल साफ है कि आज की तारीख में गहलोत पूरी तरह सुरक्षित हैं और उनकी कुर्सी को कोई खतरा नहीं है. करौली में नव समवत्सर के मौके पर हुई साम्प्रदायिक हिंसा का मुद्दा बड़ा हो सकता था, लेकिन गहलोत ने अपनी पूरी प्रशासनिक मशीनरी झोंक कर बीजेपी को ये मुद्दा उनके खिलाफ बनाने ही नहीं दिया, उल्टे बीजेपी की इस मामले में जमकर फजीहत भी हुई.


गहलोत की इस दिल्ली यात्रा के दौरान ये भी तय होगा कि कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की 14 से 16 मई के बीच होने वाली बैठक किस जगह होगी. अभी इसके लिए उदयपुर और जयपुर के नाम चल रहे हैं और सोनिया गांधी इसके लिए जगह का नाम तय करेंगी. गहलोत के दिल्ली दौरे में राजस्थान में चार सीटों पर होने वाले राज्यसभा उपचुनाव पर भी चर्चा होगी. ये उपचुनाव जून और जुलाई में होने हैं और संख्या बल के लिहाज से इन चार में से तीन सीटों पर कांग्रेस की जीत तय है. बहुत संभव है कि अपना राज्यसभा कार्यकाल पूरा करने जा रहे कांग्रेस के कुछ कद्दावर नेता राजस्थान के रास्ते राज्यसभा में पहुंच जाए. इसके लिए गहलोत और सोनिया समेत अन्य नेताओं के बीच संभावित नामों पर भी चर्चा होगी.


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