केंद्र में पिछले 9 सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी राज कर रही है. अब अगर साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की जीत होती है तो यह तीसरी बार होगा जब बीजेपी देश की सत्ता संभालेंगी. यही कारण है कि लोकसभा चुनाव होने में अभी एक साल बचे हैं लेकिन पहले से ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. 


बीजेपी भी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मिशन मोड में आ चुकी है. उन्होंने हाल ही में अपनी उपलब्धियों को लेकर एक एनिमेशन वीडियो भी जारी किया था. इस वीडियो में वह जनता तक सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी देते नजर आ रही है. इसके अलावा बीजेपी को हिंदू वोटर्स से हमेशा ही उम्मीद रहती है या यूं कहा जाए कि हिंदू बीजेपी का कोर वोटर है. साल 2019 के चुनाव में हिंदुओं ने एकमुश्त होकर बीजेपी के लिए वोट किया था. 


ऐसे में आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर सभी पार्टियों ने तैयारियों के घोड़े खोल दिए हैं. बीजेपी एक बार फिर से जहां पूर्ण बहुमत से वापसी के लिए रणनीति बनाने में जुटी है तो विपक्ष 2024 में बीजेपी को घेरने की योजना बना रहा है. 


2024 से पहले किन राज्यों में होने वाला है चुनाव, अकेले लड़ेगी कांग्रेस


2024 में लोकसभा चुनाव से पहले साल 2023 में देश के नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. जिनमें नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव परिणाम आ चुके हैं. इन तीनों राज्यों में ही बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही. एक तरफ जहां त्रिपुरा में पार्टी ने दोबारा जीत दर्ज की है. वहीं नगालैंड और मेघालय में पार्टी ने गठबंधन में सरकार बनाई है.


पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी ने बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. 


कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर बीते शुक्रवार को कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई. इस बैठक में पार्टी ने चुनाव में किसी के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है. सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में 224 सीटों वाले कर्नाटक विधानसभा में 110 सीटों पर उम्मीदवार तय कर लिए हैं. 


लगभग 250 सीटों पर सीधा बीजेपी से मुकाबला 


2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में राजस्थान, एमपी, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल की सीटें लेकर लगभग 250 सीटों पर बीजेपी की कांग्रेस से सीधी लड़ाई होगी. साल 2009 के 15वें आम चुनाव में इतनी ही सीटों पर कांग्रेस ने 206 सीटें जीती थी और भारतीय जनता पार्टी के खाते में सिर्फ 116 सीटें ही आई.


किन राज्यों में कांग्रेस करना चाहती है गठबंधन 


तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, यूपी, बंगाल और महाराष्ट्र ये वो राज्य हैं जहां कांग्रेस खुद को मजबूत स्थिति में नहीं पाती है और लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले यहां की स्थानीय पार्टियों के साथ गठबंधन करना चाहती है. तमिलनाडु, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस अभी गठबंधन में है.


यूपी बंगाल में क्षेत्रीय पार्टियों से मतभेद


राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान कई मौके पर सपा पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा था कि उनकी विचारधारा राष्ट्रीय स्तर की नहीं है. 


मेघालय में एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को बीजेपी की बी टीम कहा था. सपा और टीएमसी राहुल के इस तरह के बयान से नाखुश हैं और टीएमसी ने संसद में कांग्रेस से दूरी बना ली तो अखिलेश ने सीधे तौर पर कह दिया कि कांग्रेस से गठबंधन नहीं होगा.


कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस बना विपक्षी एकता में रोड़ा


लोकसभा और राज्यसभा में बीजेपी के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है. साल 2004 और साल 2009 में यूपीए बनाने में कांग्रेस ने ही बड़ी भूमिका निभाई थी. दोनों बार बीजेपी गठबंधन को हराकर यूपीए की सरकार बनी थी. ऐसे में एक बार फिर यही उम्मीद लगाई जा रही थी कि कांग्रेस विपक्षों को एकजुट कर बीजेपी का कड़ी टक्कर देने में कामयाब हो जाएगा. लेकिन कांग्रेस अब तक इस काम में विफल रही है. 


क्या है वजह


1. गठबंधन पर नहीं हो रही बात- भारत जोड़ो यात्रा खत्म होने के बाद कांग्रेस ने कई दलों से गठबंधन को लेकर बात करना बंद कर दिया. इन दलों में टीआरएस और जेडीएस का नाम शामिल है. कांग्रेस को विश्वास है कि वह कर्नाटक और तेलंगाना में खुद की बदौलत जीत हासिल कर लेगी. 


भारत जोड़ो यात्रा खत्म होने से कांग्रेस ने 2024 के लिए राहुल को ही चेहरा घोषित कर दिया था. कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक जनसभा में कहा था कि 100 मोदी और 100 शाह भी आ जाएं तो बीजेपी की सरकार 2024 में नहीं बन पाएगी. पार्टी का यही रुख रहा तो वह आगे भी विपक्षी एकता को बनाने के लिए कोई पहल नहीं कर पाएगी. 


2. ज्यादा सीटों की इच्छा- कांग्रेस के पास पश्चिम बंगाल, यूपी, बिहार जैसे राज्यों में न तो सक्रिय संगठन है और ना ही कोई चेहरा लेकिन इसके बाद भी इन राज्यों में कांग्रेस ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहती है.


बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव सहित विपक्ष के कई नेता कांग्रेस से बड़े राज्यों में ड्राइविंग सीट क्षेत्रीय पार्टियों को देने की मांग कर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस हाईकमान इन मसलों को अब तक अनसुना ही करता आया है. यहां तक कि उत्तर प्रदेश में भी सपा नेता अखिलेश यादव कह चुके हैं कि कांग्रेस का जनाधार कम लेकिन उनकी  डिमांड ज्यादा है.


क्या बिना कांग्रेस विपक्षी गठजोड़ संभव है?


बीबीसी की एक खबर में इस सवाल के जवाब में संघ विचारक और स्तंभकार राजीव तुली कहते हैं, "अखिलेश यादव  ने हाल ही में कोलकाता पहुंचकर पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से मुलाकात की है. इससे क्या संकेत मिले? क्या विपक्ष मजबूत हो गया? न तो अखिलेश यादव की पार्टी को पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ना है और न ही ममता बनर्जी की पार्टी को उत्तर प्रदेश में. 


हालांकि वह यह ज़रूर मानते हैं कि जिस राज्य में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है, या जिस राज्य में कांग्रेस मजबूत है, वहां बीजेपी का मुकाबला सीधे कांग्रेस से ही होगा. फिर चाहे वो राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड या छत्तीसगढ़ ही क्यों न हो.


वहीं कर्नाटक में जेडी(एस) और कांग्रेस के बीच रस्साकशी चलती रहती है, लेकिन यहां मुख्य लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी की ही है. इसलिए उनका मानना है कि बिना कांग्रेस कोई विपक्षी गठबंधन मौजूदा हालात में नहीं बन सकता.


राजीव तुली कहते हैं, "पहले कांग्रेस के बिना हरकिशन सिंह सुरजीत जैसे नेताओं के प्रयास से ये संभव भी हो सका था. लेकिन अब सीताराम येचुरी जैसे नेता बिना कांग्रेस के किसी विपक्षी गठबंधन में क्षेत्रीय दलों को जोड़ पाने में कामयाब पाएंगे ऐसा फिलहाल तो नहीं लगता है."


बीजेपी चाहती है कि विपक्ष बिखरा रहे


राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए एक सवाल के जवाब में कहा कि एक समय था जब देश की सभी राजनीतिक पार्टियां बनाम कांग्रेस हुआ करता था, वर्तमान समय में बीजेपी का भी कुछ ऐसा ही हाल है और बीजेपी नहीं चाहती है कि उनके खिलाफ विपक्ष पूरी तरह एकजुट हो जाएं. इसलिए वो चाहती है कि विपक्ष बिखरा रहे और विपक्ष में फूट बनी रहे.


राहुल के नेतृत्व को स्वीकर कर पाएंगी विपक्ष


वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि वर्तमान में विपक्ष में ऐसे कई बड़े नेता हैं जो राहुल गांधी को अपना नेता नहीं मान सकते. सबसे पहला नाम तो शरद पवार का ही ले लीजिए, पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ तो है, लेकिन नगालैंड में वही बीजेपी के साथ गठबंधन वाली एनडीपीपी का समर्थन कर रही है.


पवार के अलावा और भी कई बड़े नेता हैं जिसमें चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, मायावती और अखिलेश यादव शामिल है. ये वो नाम है जो राहुल का नेतृत्व इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे


मोदी बनाम राहुल


रशीद किदवई ने कहा कि आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी जिस राजनीतिक लाइन पर काम करना शुरू कर चुकी है, उसे देखते हुए तो ऐसा लगता है कि वो लोगों के सामने ऐसे प्रस्तुत करेगी जैसे ये चुनाव 'नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी के व्यक्तित्व' को लेकर लड़ाई हो.


वहीं दूसरी तरफ सबसे दुविधा वाली बात ये है कि राहुल गांधी ख़ुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित भी नहीं कर सकते हैं और ये भी नहीं कह सकते हैं कि वो प्रधानमंत्री बनना नहीं चाहते हैं. अगर वो खुद को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित कर देते हैं तो विपक्ष नाराज़ हो जाएगा. और अगर वो बोलते हैं कि वो प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं, तो कांग्रेस के कार्यकर्ता निराश हो जाएंगे.


इन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें


प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस समय राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार चला रही है. राजस्थान में अशोक गहलोत तो वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल कांग्रेस की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. 


इन राज्यों में न बीजेपी, न ही कांग्रेस की सरकार


ऐसे कई राज्य भी हैं जहां पर बीजेपी और कांग्रेस की सरकारें नहीं हैं. जिनमें पंजाब भगवंत मान (आम आदमी पार्टी), दिल्ली अरविंद केजरीवाल (आम आदमी पार्टी), ओडिशा नवीन पटनायक (बीजू जनता दल), केरल पिनराई विजयन (सीपीएम), पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस), आंध्र प्रदेश वाईएस जगनमोहन रेड्डी (वाईएसआर कांग्रेस), तेलंगाना के. चंद्रशेखर राव (तेलंगाना राष्ट्र समिति), सिक्किम प्रेम सिंह तमांग (सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा), मिजोरम जोरामथंगा (मिजो नैशनल फ्रंट) तमिलनाडु एमके स्टालिन (डीएमके) शामिल हैं.