'खत्म होना चाहिए राज्यपाल का पद', अभिषेक मनु सिंघवी ने कह दी बड़ी बात, मोदी सरकार पर उठाए सवाल
Abhishek Manu Singhvi On Governor Post: कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मौजूदा सरकार ने राज्यपालों की स्थिति खराब करके रखी हुई है. इस सरकार ने संस्था को नीचा दिखाया है.
Abhishek Singhvi Attack On NDA: कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य अभिषेक सिंघवी ने सोमवार (02 अगस्त) को केंद्र सरकार पर राज्यपालों की भूमिका को दयनीय बना देने का आरोप लगाया और कहा कि या तो राज्यपाल का पद खत्म कर दिया जाए या फिर सबकी सहमति से ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति हो जो तुच्छ राजनीति में शामिल नहीं हो.
उन्होंने 'पीटीआई-भाषा' को दिए इंटरव्यू में संसदीय सुधारों की जरूरत पर जोर दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आसन दलगत भावना से ऊपर उठकर काम करे. तेलंगाना से हाल में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए सिंघवी ने संसद में आसन और विपक्ष के बीच टकराव को लेकर चिंता जताई.
कैसे लोग बनने चाहिए राज्यपाल, अभिषेक सिंघवी ने बताया
कांग्रेस नेता सिंघवी ने कुछ राज्यों का हवाला देते हुए आरोप लगाया, 'मौजूदा सरकार ने राज्यपालों की भूमिका बहुत दयनीय कर दी है...इस सरकार ने हर संस्था को नीचा दिखाया है, उसका अवमूल्यन किया है. यह देखकर मुझे बहुत दुख होता है.'
उन्होंने कहा, 'कर्नाटक (न्यायालय के विचाराधीन मामला) को लेकर बात नहीं करूंगा लेकिन तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल में क्या हुआ? बाबा साहेब आंबेडकर ने यह व्यवस्था बनाई थी कि एक म्यान में दो तलवार नहीं हो सकती लेकिन यहां तो राज्यपाल दूसरे मुख्य कार्यकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं.'
उन्होंने कहा, 'राज्यपाल शासन को अवरुद्ध करते हैं. (विधेयकों को मंजूरी देने में) विलंब होता है. तमिलनाडु में 10 विधेयकों को रोककर रखा था और जैसे ही मैंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया तो इससे एक दिन पहले ही दो तीन विधेयकों को मंजूरी दे दी गई और शेष को राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया.'
यह पूछे जाने पर कि क्या राज्यपाल के पद को लेकर पुनर्विचार होना चहिए तो कांग्रेस नेता ने कहा कि राज्यपाल का पद खत्म होना चाहिए या फिर ऐसे व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए जिस पर सबकी सहमति हो और जो तुच्छ राजनीति में शामिल नहीं हो. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा गोपाल कृष्ण गांधी सरीखे व्यक्ति को राज्यपाल होना चाहिए.
'सिर्फ दिखावे के लिए संसद नहीं हो सकती'
उन्होंने कहा, 'यह बहुत दुखद है.. इस कार्यकाल के पूरा होने तक मैं राज्यसभा में 20 साल की अवधि पूरी कर लूंगा. मैं संसदीय भावना को महत्व देता हूं. मैं वास्तव में इसमें विश्वास करता हूं. मेरा मानना है कि सेंट्रल हॉल मात्र एक जगह नहीं है, यह एक 'अवधारणा' (कॉन्सेप्ट) है.' उन्होंने कहा, 'मैं दलगत भावना से अलग विशाल हृदय वाली उदारता में विश्वास करता हूं.'
पिछली एनडीए सरकार के दौरान संसद के शीतकालीन सत्र में बड़े पैमाने पर सांसदों के निलंबन के संदर्भ में उनका कहना था, 'आप यह कहकर लोकतंत्र को नकार नहीं सकते कि असहमति के कारण मैं 142 लोगों को निलंबित कर दूंगा. विपक्ष को अपनी बात रखनी होगी और अंततः सरकार का अपना रास्ता होगा लेकिन मुझे अपनी बात कहने की जरूरत है और आपको अपनी बात कहने की, उस प्रक्रिया को अपने आप चलने दीजिए. सिर्फ दिखावे के लिए संसद (आर्टिफिशियल पार्लियामेंट) नहीं हो सकती.'
लोकसभा स्पीकर के चुनाव को लेकर भी उठाए सवाल
उन्होंने कहा कि अब यह राज्यों में भी हो रहा है और किसी एमएलसी को सिर्फ इस वजह से सदन से निष्कासित कर दिया जाता है कि उसने सरकार की आलोचना की. सिंघवी ने कहा, 'संसदीय लोकतंत्र का सार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचार की स्वतंत्रता है. चाहे यह कितना ही आपत्तिजनक क्यों न हो, मैं अपनी बात कह रहा हूं.'
उन्होंने इंग्लैंड की संसदीय व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा, 'मैंने इसके लिए पैरवी की है और यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि यह पुराने दिनों में अस्तित्व में था और कुछ हद तक अब इंग्लैंड में है. आप पहले से तय कर लेते हैं कि कोई व्यक्ति अगली संसद में स्पीकर होंगे और चुनाव से पहले उनकी सीट से कोई दूसरा चुनाव नहीं लड़ेगा और संबंधित व्यक्ति निर्विरोध निर्वाचित हो जायेंगे.' उन्होंने इस बात पर जोर दिया, 'अब कल्पना कीजिए कि स्पीकर की कुर्सी के लिए इस तरह से चुने जाने से आपको (संसदीय प्रणाली) कितनी ताकत मिलेगी.'
वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी का कहना था, 'मैं दृढ़ता से इसके पक्ष में हूं कि सभी पार्टियां इस बात पर सहमत हों कि हम एक सीट किसी व्यक्ति को देंगे, चाहे वह कोई भी हो और उस व्यक्ति को निर्विरोध चुना जाए. या फिर वह व्यक्ति पार्टी से अलग हो जाए. आप राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बन जाते हैं तो क्या आप कभी चुनावी राजनीति में वापस आते हैं? यही बात लोकसभा अध्यक्ष के लिए भी हो सकती है.'
'लोकसभा स्पीकर भी पक्षपाती हो जाएगा तो कैसे चलेगा?'
उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष के पास इतनी अपार शक्तियां होती हैं कि वह दल-बदल को लेकर फैसला करता है. अगर वह भी पक्षपातपूर्ण हो जाए, तो क्या बचता है. संसद के दोनों सदनों में आसन और विपक्षी सांसदों के बीच बार-बार गतिरोध की पृष्ठभूमि में सिंघवी ने यह टिप्पणी की है.
पिछले मानसून सत्र में ऐसी खबरें आई थीं कि विपक्ष राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को उनके ‘‘पक्षपातपूर्ण रवैये’’ का हवाला देते हुए उन्हें पद से हटाने के लिए एक प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है.
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