Rahul Gandhi On Electoral Bond: तय की गई डेडलाइन करीब आ जाने के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने सुप्रीम कोर्ट से चुनावी बॉन्ड की जानकारी देने के लिए 30 जून तक का समय मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों चुनावी बॉन्ड स्कीम को रद्द कर दिया था. साथ ही कोर्ट ने एसबीआई को चुनावी बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक देने का आदेश चुनाव आयोग को दिया था.
अब एसबीआई के इस कदम पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सवाल खड़ा किया है. उन्होंने कहा है कि दाल में कुछ काला है. सोमवार (4 मार्च) को एसबीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस बावत आवेदन किए जाने के बाद राहुल गांधी ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट एक्स के जरिए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है.
क्या कहना है राहुल गांधी का?
राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, "नरेंद्र मोदी ने ‘चंदे के धंधे’ को छिपाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉण्ड का सच जानना देशवासियों का हक है, तब SBI क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले यह जानकारी सार्वजनिक न हो पाए?"
राहुल गांधी ने आगे कहा कि एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है. देश की हर स्वतंत्र संस्था ‘मोडानी परिवार’ बन कर उनके भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में लगी है. चुनाव से पहले मोदी के ‘असली चेहरे’ को छिपाने का यह ‘अंतिम प्रयास’ है."
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
बता दें कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने 15 फरवरी 2024 को चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक और RTI का उल्लंघन करार देते हुए तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. सीजेआई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने एसबीआई को अप्रैल 2019 से अब तक मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देने के लिए कहा था. कोर्ट ने चुनाव आयोग से 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए कहा था.
क्या तर्क है एसबीआई का?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, SBI ने अपने आवेदन में कोर्ट से कह कि 12 अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 तक विभिन्न पार्टियों को चंदे के लिए 22 हजार 217 चुनाव बॉन्ड जारी किए गए हैं. भुनाए गए बांड को प्रत्येक चरण के आखिरी में अधिकृत शाखाओं द्वारा सीलबंद लिफाफे में मुंबई मुख्य शाखा में जमा किए गए थे. एसबीआई ने कहा कि दोनों सूचना साइलो की जानकारी इकट्ठा करने के लिए 44 हजार 434 सेटों को डिकोड करना होगा. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 3 हफ्ते का समय पूरी प्रोसेस के लिए पर्याप्त नहीं है. इसलिए जून तक का समय दिया जाना चाहिए.