श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में दिनभर की  राजनीतिक हलचल के बाद कल देर शाम राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा को भंग कर दिया. विपक्षी पार्टियां मलिक के मकसद पर प्रश्न-चिह्न लगाते हुए केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी पर हमला बोल रही है. नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस का कहना है कि राज्यपाल को विधानसभा भंग ही करना था तो उन्होंने पहले क्यों नहीं किया? और जब महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश किया तो राज्यपाल ने ऐसा क्यों किया?


पीडीपी के साथ सरकार बनाने का दावा पेश करने वाली कांग्रेस ने कहा है कि महबूबा मुफ्ती को राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाना चाहिए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर से सांसद रहे सैफुद्दीन सोज ने कहा, ''पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को इस मामले को लेकर कोर्ट जाना चाहिए. राज्यपाल ने केंद्र सरकार के इशारे पर अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीके से विधानसभा भंग की है. महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन मिलने के बाद ही पत्र लिखा था और राज्यपाल को सरकार बनाने का एक मौका देना चाहिए था.''





कल देर शाम राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने एक संक्षिप्त बयान में कहा था कि जम्मू और कश्मीर के संविधान से मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए विधानसभा को भंग कर रहे हैं, जिसका कार्यकाल अभी दो साल बाकी था.


विधानसभा को भंग करने की घोषणा से तुरंत पहले पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा किया था. वहीं, बीजेपी भी पीडीपी के विद्रोही विधायकों और सज्जाद लोन के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश में जुटी थी. पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने देर शाम राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा था कि कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने उनकी पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने का फैसला किया है.


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लोन ने इसका विरोध करते हुए राज्यपाल को पत्र लिख कर बीजेपी की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया. उन्होंने 18 विधायकों के साथ बीजेपी के 25 विधायकों की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया और कहा कि यह बहुमत से अधिक है. वहीं, मुफ्ती ने अपने पत्र में लिखा कि उनकी पार्टी के 29 विधायकों के अलावा नेशनल कांफ्रेंस के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों को मिलाकर उनकी संख्या 56 हो जाती है. जम्मू-कश्मीर में 87 विधानसभा सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 44 सीटों की जरूरत होती है.


गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में बीजेपी द्वारा समर्थन वापस लिये जाने के बाद पीडीपी-बीजेपी गठबंधन टूट गया था जिसके बाद 19 जून को राज्य में छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लगा दिया गया था. राज्य विधानसभा को भी निलंबित रखा गया था ताकि राजनीतिक पार्टियां नई सरकार गठन के लिए संभावनाएं तलाश सकें.