मुंबई: महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार के दो घटक दलों के बीच एक बार फिर टकराव देखा जा रहा है. इस बार ये टकराव कांग्रेस और एनसीपी के बीच हो रहा है. टकराव की वजह है एनसीपी प्रमुख शरद पवार का वो बयान जिसमें उन्होने कांग्रेस को नसीहत दी थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को लेकर सियासत नहीं करनी चाहिए. बता दें राहुल गांधी चीनी सेना से भिडंत को लेकर लगातार सरकार से सवाल पूछ रहे थे.


चीन के मुद्दे पर एक ओर जहां कांग्रेस मोदी सरकार को घेर रही है तो वहीं एनसीपी सरकार के साथ है. पिछले महीने जब पीएम मोदी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई तो उस वक्त पवार ने मोदी सरकार का समर्थन किया था. बैठक के बाद पवार से जब राहुल गांधी के उस बयान के बारे में पूछा गया जिसमें कि उन्होने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने चीन के आगे सरेंडर कर दिया है तो पवार ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.


पवार का कहना था- “हम नहीं भूल सकते कि 1962 में क्या हुआ था जब चीन ने हमारी 45 हजार वर्ग किलोमीटर की जगह हथिया ली थी. फिलहाल मुझे नहीं पता कि उन्होने हमारी किसी जमीन पर कब्जा किया है लेकिन इस पर चर्चा करते वक्त हमें बीता वक्त याद रखना चाहिये. राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर राजनीति न हो”.


कांग्रेस ने दिया एनसीपी को जवाब
पवार के बयान को इस तरह देखा गया जैसे कि 1962 की हार को लेकर वे कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हों. पहले तो कांग्रेस ने उनके बयान को लेकर नरमी दिखाई लेकिन मंगलवार को एक प्रेस काफ्रेंस के दौरान कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के बिजली मंत्री नितिन राउत ने पवार पर निशाना साधा. राऊत का कहना था कि पवार को कांग्रेस से सवाल पूछने के बजाय मोदी से सवाल पूछना चाहिये था. वे देश के रक्षामंत्री रह चुके हैं और 1962 की गलती सुधार सकते थे.


महाविकास आघाडी की सरकार बनने के बाद ये पहली बार है कि कांग्रेस की ओर से इतनी तीखी प्रतिक्रिया शरद पवार के खिलाफ आई है. ये शरद पवार ही थे जिन्होने पिछले साल कांग्रेस को शिवसेना के साथ मिलाकर सरकार बनाने के लिये तैयार किया था. अब सियासी हलकों में इस बात की चर्चा छिड गई है कि क्या ठाकरे सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई है.


उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनी महाराष्ट्र की सरकार तीन विपरीत विचारधाराओं वाली पार्टियों का गठजोड़ है. पिछले साल नवंबर में बनी इस सरकार ने हाल ही में 7 महीने पूरे किए. इस बीच कुछेक ऐसे मौके आए जहां सरकार के घटक दलों के बीच मतभेद हुए. हर बार शरद पवार मध्यस्थ्ता करके मामले को संभाल लेते थे, लेकिन इस बार विवाद के केंद्र में वे स्वयं हैं.


राजनीतिक घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रही है बीजेपी
ये कोई पहला मौका नहीं है जब ठाकरे सरकार के घटक दल आपस में भिड़े हों. पिछले महीने भी शिव सेना और कांग्रेस के बीच काफी तनातनी हुई थी. कांग्रेस के केंद्रीय नेता राहुल गांधी से लेकर महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण और बालासाहब थोरात जैसे नेताओं ने ये बयान दिए कि सरकार में उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है. बडे फैसले लिए जाते वक्त उन्हें साथ नहीं रखा जाता और सरकारी अफसर अपनी मनमानी करते हैं.


इस पर शिव सेना ने कांग्रेस पर पलटवार किया था और ‘सामना’ के संपादकीय में पार्टी की तुलना एक पुरानी खटिया से कर दी जिससे कि कुरकुराहट की आवाज निकलती रहती है. आखिरकार उद्धव ठाकरे की कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात के बाद विवाद शांत हुआ.


राज्य की सबसे बडी विपक्षी पार्टी बीजेपी इन घटनाक्रमों पर बारीकी से नजर रखे हुए है. बीजेपी को लग रहा है कि गठबंधन के घटक दलों के बीच मतभेदों के चलते सरकार देर सबेर गिर जाएगी और बीजेपी को फिर एक बार राज्य की सत्ता में आने का मौका मिलेगा.


यह भी पढ़ें:


भारत की दो टूक, सीमा पर चीनी सेना की तैनाती कम हुए बिना विश्वास बहाल नहीं हो सकता, जारी रहेगी बातचीत