Old Pension Scheme: हिमाचल का फॉर्मूला अब दूसरे राज्यों में भी आजमाएगी कांग्रेस, पुरानी पेंशन योजना को बनाएगी बड़ा हथियार
Congress नेताओं का तर्क है कि कई राज्यों में ओपीएस का मुद्दा काफी अहम है, पार्टी मतदाताओं के सामने इसे वादे के रूप में रखेगी और सरकार बनने के बाद लागू भी करेगी.
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Congress On Old Pension Scheme: हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 40 सीटों के साथ जीत हासिल की. बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को छोड़ दें तो कांग्रेस के पक्ष में ओपीएस (Old Pension Scheme) ने काफी अच्छा माहौल तैयार किया. कांग्रेस पार्टी ने अपना पूरा चुनाव कैंपेन ओपीएस के इर्द-गिर्द ही रखा और पार्टी को उसका फायदा भी मिला. वहीं, अब ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी आने वाले चुनावों में भी ओपीएस के मुद्दे को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाने की तैयारी कर रही है.
लगभग सभी राज्यों में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) लागू थी लेकिन उसके बावजूद कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने का फैसला लिया. उधर, आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब में नई पेंशन योजना को बंद करने की घोषणा कर दी है. हालांकि, इसका एक दूसरा पक्ष भी है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अर्थशास्त्री पुरानी पेंशन व्यवस्था को राजकोषीय नीति के रूप में सही नहीं मानते हैं. वहीं, कांग्रेस के नेताओं का तर्क है कि कई राज्यों में ओपीएस का मुद्दा काफी अहम है और वे मतदाताओं के सामने इसे वादे के रूप में रखेंगे और पार्टी की सरकार बनने के बाद लागू कराएंगे.
जयराम रमेश ने क्या कहा?
9 दिसंबर को नई पेंशन योजना से संबंधित सुधारों पर कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने कहा, "सुधार शब्द बहुत गाली वाला शब्द है. कुछ भी और सब कुछ सुधारों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है और फिर सारी बातचीत बंद हो जाती है... यह पुरानी पेंशन योजना कई वर्षों से चल रही मांग है."
अटल सरकार में आई थी NPS
उल्लेखनीय है कि एनपीएस को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान लाया गया था और 1 जनवरी, 2004 को शुरू किया गया था. जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई तो उसने इसे लोकप्रिय बनाने के लिए योजना पर कर लाभ (Tax Benefit) की पेशकश की. विश्लेषकों के अनुसार, 2004 तक चलने वाली पुरानी 'Pay As You Go Scheme' में एक अंतरपीढ़ीगत असमानता है.
पुरानी पेंशन स्कीम में क्या समस्या है?
इसके तहत, वर्तमान पीढ़ी के श्रमिकों के योगदान का उपयोग वर्तमान पेंशनभोगियों के पेंशन के भुगतान के लिए किया गया था, जिससे यह एक अनफंडेड पेंशन योजना बन गई क्योंकि यह करदाताओं की वर्तमान पीढ़ी से पेंशन के लिए संसाधनों के सीधे हस्तांतरण का प्रतिनिधित्व करती थी. देश के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष के अनुसार, इसका मतलब यह था कि पुरानी व्यवस्था आर्थिक रूप से विनाशकारी थी.
पुरानी पेंशन स्कीम में क्या खास है?
ओपीएस को जो राजनीतिक रूप से आकर्षक बनाता है, वह यह है कि यह सेवानिवृत्त व्यक्ति को एक सुनिश्चित लाभ प्रदान करता है, जो बेसिक वेतन का 50% तय किया गया है. इसके अलावा, वेतन की तरह, मुद्रास्फीति को देखते हुए महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी के साथ पेंशन में भी बढ़ोतरी की गई.
'पेंशन देनदारियों में दिखी वृद्धि'
घोष ने HT को बताया, "पुरानी स्कीम में कोई भी रिटर्न वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं है." घोष की रिसर्च के अनुसार, लंबी अवधि में राज्य सरकारों की पेंशन देनदारियों में तेज वृद्धि देखी गई है. 2021-22 को समाप्त 12-वर्ष की अवधि के लिए पेंशन देनदारियों में चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि सभी राज्य सरकारों के लिए 34% थी. घोष ने कहा कि 2020-21 तक, रेवेन्यू रिसिप्ट के प्रतिशत के रूप में पेंशन का भुगतान 13.2% था.
हिमाचल में OPS को मुद्दा क्यों बनाया?
बता दें कि ओपीएस हिमाचल प्रदेश चुनाव में कांग्रेस पार्टी का एक प्रमुख वादा था. एक कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर HT को बताया, "राज्य में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी हैं क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र राज्य में रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है. चुनाव में ओपीएस एक प्रमुख मुद्दा बन गया."
उत्तराखंड में फेल हो गया था OPS कार्ड
गौरतलब है कि पार्टी ने उत्तराखंड चुनाव में भी ओपीएस कार्ड खेलने की कोशिश की थी लेकिन जीत भारतीय जनता पार्टी की हुई. वहीं अब कांग्रेस अन्य चुनावों में भी पेंशन योजना को मुद्दा बनाने की इच्छुक है. कांग्रेस नेता ने कहा, "यह राज्य के नेतृत्व पर निर्भर करता है. हम अब राज्यों में चुनाव लड़ रहे हैं."
MGNREGA के बहाने सरकार पर निशाना
क्या ओपीएस से राजस्व को नुकसान हो सकता है, इस पर जयराम रमेश ने कहा, "कांग्रेस पार्टी ने एक विचार किया है. हमने गुजरात में भी ये संकल्प लिया था, हिमाचल में भी हमने ये संकल्प लिया है. व्यक्तिगत विचार चाहे जो भी हों, यह पार्टी का विचार है जो प्रबल होता है.''
जयराम रमेश ने आगे कहा, "जो सामाजिक रूप से वांछनीय है वह आर्थिक रूप से विवेकपूर्ण है. हमें संसाधन तलाशने होंगे. क्या मनरेगा आर्थिक रूप से विवेकपूर्ण थी? आज मनरेगा के सबसे बड़े चैम्पियन वही हैं जो मनरेगा की वित्तीय समझदारी पर सवाल उठा रहे थे."
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