वन नेशन, वन इलेक्शन पर मल्लिकार्जुन खरगे का सरकार पर वार, ‘लोगों के पास एक राष्ट्र, एक समाधान, और वह है...'
One Nation, One Election: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि वन नेशन, वन इलेक्शन पर समिति बनाना एक चाल है. यह भारत के संघीय ढांचे को खत्म करने का एक हथकंडा है.
Mallikarjun Kharge On One Nation, One Election: एक तरफ जहां केंद्र सरकार देश में एक साथ चुनाव कराने पर जोर दे रही है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रविवार (3 सितंबर) को कहा कि भारत के लोगों के पास 2024 के लिए 'एक राष्ट्र, एक समाधान' है और वह है बीजेपी के कुशासन से छुटकारा पाना.
खरगे ने अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर एक पोस्ट में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के लिए केंद्र की गठित उच्च स्तरीय समिति को एक चाल करार दिया और आरोप लगाया कि मोदी सरकार धीरे-धीरे भारत में लोकतंत्र की जगह तानाशाही लाना चाहती है.
उन्होंने कहा, "एक राष्ट्र, एक चुनाव पर समिति बनाने की यह चाल भारत के संघीय ढांचे को खत्म करने का एक हथकंडा है. 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' जैसी नाटकीय कार्रवाइयां हमारे लोकतंत्र, संविधान और समय की कसौटी पर खरी उतरीं विकसित प्रक्रियाओं को नष्ट कर देंगी. साधारण चुनाव सुधारों से जो हासिल किया जा सकता है वह प्रधानमंत्री मोदी के अन्य विध्वंसक विचारों की तरह एक आपदा साबित होगा."
2024 में जनता के पास एक राष्ट्र, एक समाधान- खरगे
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 1967 तक भारत में ना तो इतने राज्य थे और ना ही पंचायतों में 30.45 लाख निर्वाचित प्रतिनिधि थे. खरगे ने कहा, "हमारे पास लाखों निर्वाचित प्रतिनिधि हैं और अब उनका भविष्य एक साथ निर्धारित नहीं किया जा सकता. वर्ष 2024 के लिए भारत के लोगों के पास 'एक राष्ट्र, एक समाधान' है और वह है भाजपा के कुशासन से छुटकारा पाना."
'संविधान में कम से कम 5 संशोधन की जरूरत'
खरगे ने कहा कि देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में व्यापक बदलाव की आवश्यकता होगी. उन्होंने कहा कि निर्वाचित लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ स्थानीय निकायों के स्तर पर कार्यकाल को छोटा करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी, ताकि इनका एकसाथ चुनाव हो सके.
खरगे ने सरकार से पूछे सवाल
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष खरगे ने कहा, "अहम सवाल हैं-किसी भी व्यक्ति की सूझबूझ को कमतर समझे बिना, क्या प्रस्तावित समिति भारतीय चुनावी प्रक्रिया में शायद सबसे गंभीर व्यवधान पर विचार-विमर्श करने और निर्णय लेने के लिए सबसे उपयुक्त है? क्या इतनी बड़ी कवायद राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर राजनीतिक दलों से परामर्श किए बिना एकतरफा की जानी चाहिए?"
5 साल में चुनावों पर 5,500 करोड़ रुपये खर्च
खरगे ने आश्चर्य जताया कि समिति में निर्वाचन आयोग का कोई प्रतिनिधि नहीं शामिल है. खरगे ने दावा किया कि निर्वाचन आयोग ने 2014-19 (2019 के लोकसभा चुनाव सहित) के बीच चुनावों पर लगभग 5,500 करोड़ रुपये खर्च किए जो सरकार के व्यय बजट का मामूली हिस्सा है. उन्होंने कहा कि खर्च बचाने का तर्क कुछ है जैसे कि छोटी राशि बचाने में समझदारी दिखाना पर मूखर्तापूर्ण तरीके से बड़ी राशि खर्च कर देना.
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा को लोगों के जनादेश की अवहेलना करके चुनी हुई सरकारों को उखाड़ फेंकने की आदत है, जिससे 2014 के बाद से संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के लिए 436 उपचुनाव कराने पड़े.
8 सदस्यीय समिति का गठन
बता दें कि सरकार ने शनिवार (2 सितंबर) को लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव साथ-साथ कराने की संभावना को परखने और सुझाव देने के लिए एक 8 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति के गठन की अधिसूचना जारी की. इस समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे.
समिति में कौन-कौन शामिल?
इस समिति में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के अलावा, सरकार ने गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुके गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी को उच्च स्तरीय समिति के सदस्य के रूप में नामित किया है.
हालांकि, इसके कुछ घंटों बाद समिति में शामिल विपक्ष के इकलौते नेता अधीर रंजन चौधरी ने केंद्रीय मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर समिति का सदस्य बनने से इनकार कर दिया.
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