नई दिल्ली: आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के एलान को कांग्रेस महासचिव और पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने बेमेल करार देते हुए कहा कि अकाली दल और बीएसपी की राजनीतिक विचारधारा और वर्गीय हितों में जमीन-आसमान का अंतर है, जिसका कोई असर नहीं होगा.
हरीश रावत ने कहा, "बीएसपी अकेले लड़ती तो हमारे लिए वोटकटवा साबित हो सकती थी, लेकिन अकाली दल के साथ जा कर उन्होंने दलितों को लिए आसान कर दिया है कि वे कांग्रेस के साथ आएं क्योंकि यह वर्ग आरएसएस और अकाली दल जैसी मानसिकता के खिलाफ है."
अकाली दल और बीएसपी के गठबंधन से पंजाब की दलित राजनीति नए सिरे से गरमा गई है. पंजाब में कुल आबादी का करीब 32 प्रतिशत हिस्सा दलित है. सभी पार्टियां इस वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रही है. अकाली दल पहले ही एलान कर चुका है सरकार बनी तो उपमुख्यमंत्री दलित समुदाय से होगा. बीएसपी से गठबंधन कर अकाली दल ने पंजाब की राजनीति को दिलचस्प बना दिया है. आम आदमी पार्टी भी दलित उपमुख्यमंत्री का वादा कर चुकी है तो वहीं बीजेपी ने दलित समाज से मुख्यमंत्री बनाने की बात कह दी.
इन्हीं परिस्थितियों की वजह से पंजाब कांग्रेस के दलित नेता सरकार और संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की मांग कर रहे हैं. बीते दिनों में खड़गे कमिटी के सामने भी दलित विधायकों ने यह बातें रखी. इस बात की प्रबल संभावना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में जल्द एक दलित उपमुख्यमंत्री देखने को मिल सकता है. दलितों को लुभाने के लिए कांग्रेस उन्हें संगठन में भी बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है.
इसको लेकर सवाल पूछे जाने पर हरीश रावत ने कहा कि हमारी सरकार दलितों के लिए कई कदम उठा चुकी है आने वाले दिनों में हम राजनीतिक फैसले लेंगे.
आपको बता दें कि कृषि कानूनों के मुद्दे पर बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद अकाली दल ने बीएसपी से हाथ मिलाया है. 117 सदस्यीय विधानसभा के लिए 97 पर अकाली दल और 20 पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी. दोनों दल 25 साल पहले भी गठबंधन कर चुके हैं.