Congress Chintan Shivir: हार से पस्त कांग्रेस की असल लड़ाई किससे? 3 दिन के चिंतन शिविर में समझ आ जाएंगे पार्टी के तेवर
Udaipur Congress Chintan Shivir: एक के बाद एक चुनावों में मिल रही करारी शिकस्त के बाद शायद अब कांग्रेस को एहसास हो रहा है कि उसे अपना गौरवपूर्ण इतिहास लोगों तक पहुंचाने की ज़रूरत है.
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Congress Chintan Shivir Latest Update: एक के बाद एक राज्यों के चुनावों में हार से पस्त कांग्रेस राजस्थान के उदयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन कर रही है. कांग्रेस का ये चिंतन शिविर तीन दिनों तक चलेगा. बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस इस चिंतन शिविर में हार की ईमानदार समीक्षा करेगी, क्या वाकई इस मंथन से बीजेपी को चुनौती देने के साथ-साथ संगठन में मचा बवाल सुलझ सकेगा?
नेहरू, पटेल, टैगोर, भगत सिंह, सरोजनी नायडू, नरसिम्हा राव, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी और डा मनमोहन सिंह के बड़े-बड़े पोस्टर्स साफ बताते हैं कि कांग्रेस आज सिर्फ मौजूदा संगठन को बचाने और मज़बूत करने की लड़ाई हीं नहीं लड़ रही, बल्कि अपनी ऐतिहासिक धरोहर को भी वापस एक बार फिर से सामने कर देश के लोगों को पिछले 70 सालों में किए कांग्रेस के योगदान की याद दिलाने की भी लड़ाई लड़ रही है.
क्या कांग्रेस को हो रहा एहसास
असल में जब से मोदी सरकार केन्द्र की सत्ता पर काबिज हुई है तब से बीजेपी ने नेहरु गांधी परिवार पर लगातार हमला किया है. यही नहीं सरदार पटेल जैसे कांग्रेस नेताओं को पूरी तरह से हाईजैक भी कर लिया. एक के बाद एक चुनावों में मिल रही करारी शिकस्त के बाद शायद अब कांग्रेस को एहसास हो रहा है कि उसे अपना गौरवपूर्ण इतिहास लोगों तक पहुंचाने की ज़रूरत है. उदयपुर में शुरू हो रहे चिंतन शिविर में कांग्रेस बीजेपी के राष्ट्रवाद का जवाब कुछ इसी तरह से अपने राष्ट्रवाद से देने की योजना पर ज़ोर देगी.
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हमारे कण कण में राष्ट्रवाद
कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि हमारे कण कण में राष्ट्रवाद है. राष्ट्र धर्म हमारे कण कण में है. एक बार कांग्रेस को देश की रक्षा की परिपार्टी पर खरा उतरना होगा और इसीलिए इस नव संकल्प चिंतन शिविर का आयोजन किया गया है. कांग्रेस के सामने संकट सिर्फ़ इतना नहीं है. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी जानबूझकर कर राजस्थान जैसे उन चुनावी राज्यों में जहां चुनाव होने हैं, दंगे करा रही है. जिससे उसे चुनावी फायदा हो और इस चिंतन शिविर में कांग्रेस इस चुनौती से निपटने की रणनीति पर भी ज़ोर देगी.
विद्रोह की आवाज के लिए क्या?
मसला केवल मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी से एक के बाद एक मिल रही चुनावी हार का हीं नहीं बल्कि कांग्रेस के अंदर ही गांधी परिवार के खिलाफ उठ रहे स्वर और संगठन में तमाम बदलावों की मांग का भी है. विद्रोह की आवाज़ उठा चुके G23 गुट के भी तमाम नेता इस चिंतन शिविर में पहुंच रहे हैं. ABP News से एक्सक्लूसिव बातचीत में पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मनीष तिवारी ने कहा कि किसी भी राजनीतिक पार्टी की सफलता का पैमाना चुनावी जीत हार हीं होता है. ऐसे में एक के बाद एक मिल रही हार बड़ी चिंता का विषय है. मनीष तिवारी ने कहा कि चिंतन शिविर में इन मुद्दों का हल निकाला जाना चाहिए और सभी को अपनी बात खुले मन से कहने का मौका दिया जाना चाहिए.
कई नेताओं को ये शिकायत
यही नहीं मनीष तिवारी समेत कई नेताओं को ये शिकायत है कि पार्टी आलाकमान वरिष्ठ नेताओं की राय सुनता नहीं है. इस संबंध में मनीष तिवारी ने पंजाब का हवाला देते हुए ABP News से बातचीत में कहा कि पंजाब के नतीजे बताते हैं कि नेतृत्व को ये समझना चाहिए कि, जब वरिष्ठ नेता कुछ सलाह देते हैं किसी व्यक्तिगत महत्वकांक्षा के लिए नहीं देते. आपको बता दें मनीष तिवारी समेत पंजाब के 10 सांसदो ने नवजोत सिंह सिदधू को पंजाब का अध्यक्ष बनाए जाने के खिलाफ राय दी थी मगर गांधी परिवार ने इसे दरकिनार कर दिया था.
क्या अध्यक्ष को लेकर होगी चर्चा
ये भी देखना दिलचस्प होगा कि इस चिंतन शिविर में राहुल गांधी के एक बार फिर से अध्यक्ष बनने की बातों पर चर्चा होती है कि नहीं. पार्टी में G23 समेत एक बड़ा धड़ा है, जो या तो किसी गैर गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने या फिर सोनिया गांधी को ही अध्यक्ष बने रहने की पैरवी करता है. इन नेताओं को लगता है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी का प्रदर्शन खराब होता जा रहा है. हालांकि जब रणदीप सुरजेवाला से ये सवाल पूछा गया तो उन्होंने एक बार फिर कह दिया कि सभी कांग्रेसी चाहते हैं कि राहुल गांधी हीं फिर से पार्टी अध्यक्ष बनें.
ये राज्य हैं पार्टी के लिए चैलेंज
रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालें, पर चिंतन शिविर में इसपर कमेंट नहीं करूंगा, क्योंकि संगठन के चुनावों की प्रक्रिया जारी है और अगस्त में आपको नतीजा पता चल जाएगा. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इन तमाम चुनौतीपूर्ण सवालों का जवाब ढूंढने में कामयाब हो पाती है कि नहीं. क्योंकि अब आगे कांग्रेस को राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल और कर्नाटक जैसे राज्यों में चुनावों का सामना करना है.
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