Congress Leader Karan Singh: कांग्रेस के कद्दावर नेता कर्ण सिंह का जन्म 9 मार्च, 1931 को हुआ था. वह जम्मू और कश्मीर की रियासत के अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह के बेटे हैं. 1952 से 1965 तक वह जम्मू और कश्मीर राज्य के सदर-ए-रियासत थे. जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उनका वर्चस्व आज भी कायम है. हालांकि, पिछले दिनों उन्होंने एक लेख लिखा, जिसने कश्मीर पर जवाहरलाल नेहरू की भूमिका को संदिग्ध बना दिया.


दरअसल, बीते दिनों केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि जवाहरलाल नेहरू के वक्तव्यों पर गौर करने से पता चलता है कि महाराजा हरि सिंह ने नहीं, बल्कि खुद नेहरू ने कश्मीर के भारत में विलय को टाला. इसके बाद कर्ण सिंह ने एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखा. उन्होंने लेख में कहा था कि 26 अक्टूबर 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन को लिखे गए कवर लेटर में कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर रियासत ने न तो भारत और न ही पाकिस्तान में विलय को मंजूरी दी है. पत्र में लिखा था कि "कश्मीर रियासत की सीमाएं भारत और पाकिस्तान से सटी हुई हैं. रियासत का दोनों देशों से आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ता है... दोनों देशों के लिए ये भी सही होता कि वो हमारे राज्य को स्वतंत्र ही रहने देते."


कर्ण सिंह ने लिखा कि पत्र में इस बात के कोई संकेत नहीं थे कि हरि सिंह विभाजन के पहले ही भारत में शामिल होना चाहते थे. उन्होंने लिखा कि 1952 के भाषण को जिसको रिजिजू ने कोट किया था, उस दौरान नेहरू ने कहा था कि कश्मीर के महाराजा और उनकी सरकार भारत में विलय करना चाहते थे और इसके संकेत भी मिलते थे, लेकिन उन्होंने उस समय ऐसा नहीं किया.


'हमने राज्य का बड़ा हिस्सा खो दिया'


कर्ण सिंह ने अपने लेख में कहा कि 1947 में हुई घटनाएं बेहद दुखद थीं. हमने हमारे राज्य का बड़ा हिस्सा खो दिया. गिलगित-बाल्टिस्तान, मीरपुर-मुजफ्फराबाद समेत आधा हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बन गया. उन्होंने आगे लिखा, "मैं ये साफ कर देता हूं कि भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर के दो साल बाद ही महाराजा हरि सिंह राज्य से एक तरह से निष्कासित हो गए. इसके बाद उनकी अस्थियां ही राज्य में आईं."


लेख पर क्यों मचा बवाल?


इस लेख पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कर्ण सिंह पर निशाना साधा. उन्होंने ट्वीट कर लिखा, "जम्मू-कश्मीर पर ऐसा कोई गंभीर अध्ययन सामने नहीं आया है जो महाराजा हरि सिंह को अच्छी भूमिका में प्रदर्शित करे. वीपी मेनन के किए गए अध्ययन में भी हरि सिंह को ऐसे नहीं पेश किया गया है कि जिनके साथ कुछ गलत हुआ हो." जयराम रमेश ने ये भी कहा कि उन्हीं नेहरू के समर्थन के बिना डॉक्टर कर्ण सिंह वो सब हासिल नहीं कर सकते थे जो उन्होंने किया. इसे उन्होंने 2006 में आई अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है.


किरण रिजिजू ने क्या कहा?


केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा था, "अनुच्छेद 370 को लागू करना और पाकिस्तान के साथ विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने की नेहरू की ‘गलतियों’ ने बहुत नुकसान किया, देश के संसाधनों को खत्म कर दिया और आतंकवाद ने सैनिकों और नागरिकों समेत हजारों लोगों की जान ले ली."


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