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आठ बार की विधायक रहीं कांग्रेस नेता विद्या स्टोक्स की राजनीति से हुई 'तकलीफदेह' विदाई

विद्या स्टोक्स के नामांकन रद्द होने के साथ ही उनकी सम्मानजनक सियासी विदाई पर विराम लग गया. माना जा रहा था कि ये उनका आखिरी चुनाव होता. अपने सियासी करियर में वे राज्य सरकार में कई बार मंत्री भी रहीं.

नई दिल्ली: किसी भी नेता की इच्छा होती है कि जब वो अपने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले तो उसकी विदाई सम्मानजनक ढंग से हो. लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स की विदाई बहुत आश्चयर्जनक और अनौपचारिक ढ़ंग से हुई. माना जा रहा था कि स्टोक्स आखिरी बार चुनाव लड़ रही हैं लेकिन किसी तकनीकी कारणों से उनका नामांकन रद्द हो गया और उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा धरी की धरी रह गई. विद्या स्टोक्स आठ बार विधायक रह चुकी हैं.

विद्या स्टोक्स का हेयरस्टाइल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मेल खाता है. ये वो शख्सियत हैं जिनके इंदिरा गांधी से लेकर मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से अच्छे संबंध रहे हैं. विद्या स्टोक्स का सियासी कैरियर पर बेहद ड्रामेटिक अंदाज़ में विराम लग गया. उनका इस बार चुनाव में उतरने का इरादा नहीं था और उन्होंने अपनी ठियोग सीट सीएम वीरभद्र सिंह के लिए छोड़ दी थी. एबीपी न्यूज़ से बातचीत में खुद स्टोक्स ने ये बात कुबूल की थी कि वो चुनावी राजनीति से संन्यास ले रही हैं और अब कभी चुनाव नहीं लड़ेंगी. अगले दिन इसके लिए बाकायदा उन्होंने अपनी विधानसभा क्षेत्र के लोगों को सीएम से मिलवाया भी था.

15 अक्टूबर तक तय था कि सीएम वीरभद्र सिंह, ठियोग से चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन सियासी गतिविधि जैसे जैसे बढ़ी तो सीएम वीरभद्र ने ठियोग के बजाए सोलन की अर्की सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया. 20 तारीख को सीएम ने अर्की सीट से नामांकन दाखिल कर दिया.

विद्या स्टोक्स ने ठियोग से विजयपाल खांची के नाम की सिफारिश की थी. विजयपाल खांची पूर्व मंत्री जेबीएल खांची के बेटे हैं. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने विजयपाल के बजाए दीपक राठौड़ को टिकट दे दिया. दीपक राठौड़ राहुल गांधी के खास माने जाते हैं.

विद्या स्टोक्स ने विजयपाल खांची के टिकट कटने के बाद नामांकन के आखिरी दिन यानि 23 अक्टूबर को खुद चुनाव में उतरने का फैसला किया और कांग्रेस के टिकट पर नामांकन दाखिल कर दिया. उनके नामांकन से पहले पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी दीपक राठौड़ ने भी नामांकन दाखिल कर दिया था. अगले दिन 24 तारीख को स्क्रूटनी के दौरान विद्या का नामांकन इस बिनाह पर रद्द हो गया कि वो समय पर जरूरी फॉर्म B जमा नहीं कर पाईं. इसके अगले दिन उन्होंने हिमाचल हाइकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां से भी कोई राहत नहीं मिलता देख उन्हें याचिका वापस लेनी पड़ी.

विद्या स्टोक्स के नामांकन रद्द होने के साथ ही उनकी सम्मानजनक सियासी विदाई पर विराम लग गया. माना जा रहा था कि ये उनका आखिरी चुनाव होता. अपने सियासी करियर में वे राज्य सरकार में कई बार मंत्री भी रहीं. विद्या ने पहली बार 1974 में विधायकी का चुनाव जीता था. उसके बाद 1982, 1985, 1990, 1998, 2003, 2007 और 2012 में विधायक चुनी गईं.

इनके परिवार का अपना इतिहास रहा है. विद्या स्टोक्स के ससुर सत्यानन्द स्टोक्स अमेरिका के ईसाई घर में पैदा हुए. बताया जाता है कि भारत में उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और वे यहीं बस गए. सत्यानंद स्टोक्स को हिमाचल में एप्पल क्रांति का जनक माना जाता है. अमेरिका से सेब का पहला प्लांट उन्होंने ही हिमाचल प्रदेश में लगाया था. पारिवारिक दबाव के चलते विद्या स्टोक्स ने राजनीति से संन्यास का फैसला किया था. इस घटनाक्रम के बाद मुश्किल है कि अब वे भविष्य में कोई चुनाव लड़ें.

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