नई दिल्ली: चीफ जस्टिस को पद से हटाने का प्रस्ताव खारिज होने के खिलाफ याचिका कांग्रेस सांसदों ने वापस ले ली है. आज सांसदों के वकील कपिल सिब्बल इस बात पर अड़ गए कि उन्हें मामले में 5 जजों की बेंच के गठन से जुड़ा आदेश दिखाया जाए. जजों ने उनसे बार-बार केस पर बहस करने का आग्रह किया. लेकिन सिब्बल ने याचिका वापस ले ली.


क्या है मामला


कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों के 64 राज्यसभा सांसदों ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पद से हटाने का प्रस्ताव सौंपा था. इस प्रस्ताव में कमियां गिनाते हुए नायडू ने इसे खारिज कर दिया था.


नायडू के फैसले के खिलाफ 2 कांग्रेस सांसदों प्रताप सिंह बाजवा और अमी याग्निक ने याचिका दायर की. उनका कहना था कि प्रस्ताव पर 50 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर थे. उपराष्ट्रपति इसे खारिज नहीं कर सकते थे. उन्हें चीफ जस्टिस पर लगाए गए आरोपों की जांच के लिए इंक्वायरी कमिटी बनानी चाहिए थी.


कल से आज तक का घटनाक्रम


कल सुबह कांग्रेस सांसदों के वकील कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज जस्टिस चेलमेश्वर की कोर्ट में पहुंचे. उन्होंने मामले सुनवाई के लिए उचित बेंच के गठन की मांग की. जस्टिस चेलमेश्वर ने शुरू में उन्हें चीफ जस्टिस के पास जाने की सलाह दी. लेकिन दोनों ने कहा कि मामला खुद चीफ जस्टिस से जुड़ा है. आखिरकार, जस्टिस चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली बेंच ने उन्हें अगले दिन फिर से कोर्ट में आने को कहा.


लेकिन शाम को जारी कार्यसूची में ये दिखा कि मामला 5 जजों की बेंच के पास भेज दिया गया है. सिब्बल ने आज इससे जुड़ा आदेश उन्हें सौंपे जाने की मांग की.


छठे से दसवें नंबर के जजों के पास मामला


मामले की सुनवाई जिस बेंच को सौंपी गई, उसके सदस्य थे- जस्टिस एके सीकरी, एसए बोबडे, एनवी रमना, अरुण मिश्रा और एके गोयल. ये जज वरिष्ठता के क्रम में छठे से दसवें नंबर पर हैं.


दरअसल, मामला खुद से जुड़ा होने के चलते चीफ जस्टिस इसे नहीं सुन सकते थे. उनके बाद के 4 वरिष्ठतम जजों जस्टिस चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसफ और मदन बी लोकुर ने 12 जनवरी को उनके काम की तरीकों पर सवाल उठाते हुए प्रेस कांफ्रेंस की थी. वो घटना भी सांसदों की तरफ से लाए गए प्रस्ताव का एक अहम हिस्सा थी. ऐसे में ये चारों जज भी मामला नहीं सुन सकते थे. शायद यही वजह रही कि केस इन पांचों के बाद के वरिष्ठतम जजों को सौंपा गया.


वकीलों के एतराज़ के बावजूद सिब्बल को मौका

कोर्ट की कार्रवाई के दौरान 2 वकीलों आरपी लूथरा और अश्विनी उपाध्याय ने सिब्बल के पेश होने पर एतराज़ जताया. उनका कहना था कि सिब्बल ने खुद भी चीफ जस्टिस को हटाने के प्रस्ताव पर दस्तखत किए थे. वकीलों की नियामक संस्था बार काउंसिल ऑफ इंडिया ये आदेश दे चुकी है कि प्रस्ताव पर दस्तखत करने वाले सांसद, बतौर वकील इससे जुड़े मामले में पेश नहीं हो सकते.

लेकिन बेंच ने सिब्बल को दलील रखने की इजाज़त दी. उन्होंने कहा कि अगर सिब्बल जिरह करना चाहते हैं तो हम उन्हें नहीं रोकेंगे.

आदेश दिखाने की मांग पर अड़े सिब्बल

कपिल सिब्बल ने शुरू में कोर्ट से कहा कि वो किसी जज के खिलाफ नहीं. वो न्यायपालिका के हित में दलीलें रख रहे हैं. लेकिन थोड़ी देर बोलने के बाद उन्होंने मामले में 5 जजों की बेंच के गठन पर सवाल उठा दिया. सिब्बल ने कहा, "कोई मामला न्यायिक आदेश के ज़रिए ही संविधान पीठ को सौंपा जाता है. ये केस प्रशासनिक आदेश से 5 जजों की बेंच में भेजा गया है. ये आदेश किसने दिया? हमें आदेश की कॉपी दी जाए. हम इसे चुनौती देना चाहते हैं."

एटॉर्नी जनरल का जवाब

एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने 2005 के एक फैसले का हवाला दिया. उन्होंने बताया कि बेंच कितने जजों की होगी, ये तय करने का अधिकार चीफ जस्टिस को है.

वेणुगोपाल ने ये भी कहा कि प्रस्ताव पर 7 पार्टियों के 64 सांसदों ने दस्तखत किए. लेकिन खारिज होने के खिलाफ याचिका एक पार्टी के 2 सांसदों ने डाली. क्या ये माना जाए कि 6 पार्टियां और 62 सांसदों ने उपराष्ट्रपति का फैसला मान लिया है. ये याचिका कम से कम 50 सांसदों की होनी चाहिए थी.

हालांकि, सिब्बल ने तुरंत इसका जवाब देते हुए कहा, "ऐसा किसी कानून में नहीं लिखा कि 2 सांसद याचिका दाखिल नहीं कर सकते."

कोर्ट का आग्रह

सुनवाई के दौरान 5 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एके सीकरी ने कई बार सिब्बल से कहा, "आपकी मांग मामले को कहीं नहीं ले जाएगी. बेहतर हो आप केस पर जिरह करें."

जस्टिस सीकरी ने ये भी कहा, "चीफ जस्टिस मामला नहीं सुन सकते क्योंकि ये उनसे जुड़ा है. उनके बाद के 4 जज भी इससे कहीं न कहीं जुड़े हैं. ऐसे में सुनवाई आखिर कोई तो करेगा. आपको सुनवाई पर क्यों एतराज़ है?"

लेकिन सिब्बल अपनी मांग पर अड़े रहे. आखिरकार उन्होंने याचिका वापस के ली. जजों ने उठने से पहले दिए संक्षिप्त आदेश में कहा, "डिसमिस्ड ऐज़ विदड्रॉन" यानी याचिकाकर्ता अपनी याचिका वापस लेना चाहता है, इसलिए हम सुनवाई खत्म कर रहे हैं.