कांग्रेस वर्किंग कमेटी के 39 सदस्यों का हालः 11 मेंबर 'मोदीकाल' में चुनाव नहीं लड़े, 13 बुरी तरह हारे; 2 की तो जमानत जब्त हो गई
कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह पाने वाले 2 नेता तो लोकसभा चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे. कमेटी में अधिकांश ऐसे नेताओं को जगह मिली है, जिनकी राजनीति राज्यसभा के जरिए सध रही है.
अध्यक्ष बनने के 9 महीने बाद मल्लिकार्जुन खरगे ने कांग्रेस में नीतिगत फैसला लेने वाली शीर्ष संस्था सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस कार्यसमिति) की घोषणा की है. सीडब्ल्यूसी में पहली बार बतौर सदस्य 39 नेताओं को जगह मिली है. पहले अधिकतम 25 सदस्य बनाए जाने का प्रावधान था.
दिलचस्प बात है कि कांग्रेस की नई कार्यसमिति में शामिल 60 प्रतिशत से अधिक नेता 2014 और उसके बाद या तो चुनाव नहीं लड़े हैं या लड़कर हार चुके हैं. सीडब्ल्यूसी में जगह पाने वाले 2 नेता तो लोकसभा चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे.
दलित कोटे से सीडब्ल्यूसी में जगह पाने वाले चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री रहते विधानसभा का चुनाव तक हार चुके हैं.
सीडब्ल्यूसी की घोषणा के बाद विरोध की सुगबुगाहट भी तेज हो गई है. लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र विभाकर शास्त्री ने प्रतिनिधित्व को लेकर सोशल मीडिया पोस्ट लिख दिया. शास्त्री ने खुद को सीडब्ल्यूसी में शामिल नहीं किए जाने को लेकर तंज भी कसा.
इस स्टोरी में सीडब्ल्यूसी और उसकी शक्ति के साथ-साथ शामिल किए गए नेताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं...
कैसे काम करती है कांग्रेस कार्यसमिति?
सीडब्ल्यूसी यानी कांग्रेस कार्यसमिति पहली बार 1920 में आस्तित्व में आई थी. यह देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की शीर्ष इकाई हैं, जो पार्टी के भीतर सभी बड़े नीतिगत मामलों का फैसला करती है. कांग्रेस के संविधान बदलने का अधिकार भी सीडब्ल्यूसी के पास है.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक अध्यक्ष ही बुलाते हैं. मीटिंग शुरू होने के बाद संगठन महासचिव की ओर से प्रस्ताव रखा जाता है. इसके बाद सभी सदस्य मिलकर चर्चा करते हैं और फिर उस पर फाइनल निर्णय लिया जाता है.
सीडब्ल्यूसी में उन सभी प्रस्तावों को रखना अनिवार्य होता है, जो पार्टी की नीति से जुड़ा हुआ है. कांग्रेस को अपना खर्च ऑडिट कराकर सीडब्ल्यूसी के सामने रखना होता है. सीडब्ल्यूसी के पास अध्यक्ष के फैसले पर वीटो लगाने का भी अधिकार प्राप्त है.
कांग्रेस कार्यसमिति की सिफारिश पर ही इलेक्शन समेत तमाम कमेटियों का गठन कांग्रेस अध्यक्ष करते हैं. यही कमेटियां टिकट वितरण और चेहरा घोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
चुनाव में हार के बाद सीडब्ल्यूसी में ही समीक्षा रिपोर्ट रखी जाती है. अगर, सीडब्ल्यूसी चुनाव के दौरान किसी नेता की भूमिका को संदिग्ध या गलत मानती है, तो उस नेता पर पार्टी को कार्रवाई करनी पड़ती है.
यानी चुनाव और उसके बाद भी सीडब्ल्यूसी अहम भूमिका में रहती है.
39 में से 11 सदस्य 10 साल से चुनाव नहीं लड़े- कांग्रेस कार्यसमिति में जिन 39 नेताओं को जगह मिली है, उनमें से 11 नेता ऐसे हैं, जो पिछले 10 साल या उससे अधिक समय से कोई चुनाव नहीं लड़ा है. अधिकांश नेता राज्यसभा के सहारे ही अपनी राजनीति साध रहे हैं.
1. मनमोहन सिंह- पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कार्यकारिणी में सबसे उम्रदराज (90 साल) हैं. सिंह अब तक प्रत्यक्ष रूप से एक भी चुनाव नहीं लड़े हैं. पिछले 10 साल से वे चुनावी राजनीति में भी सक्रिय नहीं हैं.
2. प्रियंका गांधी- साल 2018 में राजनीति में एंट्री करने वाली प्रियंका गांधी अब तक खुद एक भी चुनाव नहीं लड़ी हैं. संगठन में उन्हें यूपी का प्रभारी महासचिव बनाया गया था, लेकिन वहां भी पार्टी का परफॉर्मेंस फिसड्डी ही रहा.
3. एके एंटोनी- कार्यसमिति में शामिल किए वरिष्ठ नेता एके एंटोनी भी लंबे वक्त से चुनाव नहीं लड़े हैं. आखिरी बार 2001 में विधायकी का चुनाव जीतने वाले एंटोनी राज्यसभा के जरिए ही राष्ट्रीय राजनीति कर रहे थे.
4. अंबिका सोनी- सोनिया गांधी के किचन कैबिनेट के सदस्य अंबिका सोनी भी राज्यसभा के सहारे ही राष्ट्रीय राजनीति करती रही हैं. 2014 में सोनी आनंदपुर साहिब से चुनाव मैदान में उतरी थीं, लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था.
5. आनंद शर्मा- राजीव गांधी के जमाने से ही आनंद शर्मा चुनावी राजनीति से खुद को दूर रखे हुए हैं. शर्मा की राजनीति भी राज्यसभा के सहारे ही टिकी हुई है. हालांकि, शर्मा पार्टी के भीतर चुनाव कराने की मांग पर काफी मुखर रहे हैं.
6. अभिषेक मनु सिंघवी- सीडब्ल्यूसी में जगह पाए प्रसिद्ध वकील अभिषेक मनु सिंघवी भी प्रत्यक्ष चुनाव से कोसों दूर हैं. सिंघवी 2006 से ही राज्यसभा के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में दखल बनाए हुए हैं.
7. जयराम रमेश- कांग्रेस कार्यसमित में शामिल किए गए पार्टी संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश की राजनीति भी राज्यसभा के सहारे टिकी हुई है. रमेश 2004 से राज्यसभा के सांसद हैं.
8. दीपक बाबरिया- सीडब्ल्यूसी में जगह पाने वाले हरियाणा के प्रभारी दीपक बाबरिया भी अब तक कभी चुनाव नहीं लड़े हैं. बाबरिया गुजरात से आते हैं, जो बीजेपी का पिछले 30 सालों से गढ़ बना हुआ है.
9. पी चिदंबरम- पूर्व केंद्रीय मंत्री अपना आखिरी चुनाव 2009 में शिवगंगा सीट से लड़े थे. 2014 में चिदंबरम ने यह सीट अपने बेटे कार्ति को दे दी. चिदंबरम इसके बाद से ही राज्यसभा के सहारे राजनीति कर रहे हैं.
10. नासिर हुस्सैन- कांग्रेस कार्यसमिति में मुस्लिम कोटे से शामिल किए गए सैय्यद नासिर हुस्सैन भी प्रत्यक्ष चुनाव नहीं लड़े हैं. हुस्सैन को खरगे का करीबी माना जाता है. 2018 में कर्नाटक से राज्यसभा के लिए चुने गए थे.
11. अविनाश पांडे- झारखंड कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे भी 2014 के बाद कोई चुनाव नहीं लड़े हैं. पांडे 2016 तक राज्यसभा सदस्य थे, लेकिन उसके बाद उनकी ड्यूटी संगठन में लगा दी गई.
चुनाव हार चुके नेताओं का सीडब्ल्यूसी में दबदबा
सीडब्ल्यूसी में चुनाव हार चुके नेताओं का दबदबा है. कमेटी में ऐसे 14 नेताओं को शामिल किया गया है, जो पिछले 10 साल में कोई न कोई चुनाव हार चुके हैं. लिस्ट में मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी जैसे नेता भी शामिल हैं.
खरगे गुलबर्ग से 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुके हैं, जबकि राहुल को अमेठी में बीजेपी के स्मृति ईरानी ने पटखनी दी थी. हालांकि, 2019 में राहुल गांधी वायनाड सीट से जीतने में कामयाब रहे थे.
लोकसभा चुनाव हारने वाले अजय माकन, जगदीश ठाकोर, गुलाम अहमद मीर, सलमान खुर्शिद, दिग्विजय सिंह, तारिक अनवर, मीरा कुमार, जितेंद्र सिंह, मुकुल वासनिक और दीपा दास मुंशी को कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल किया गया है.
सलमान खुर्शिद और दीपा दास मुंशी चुनाव में खुद की जमानत तक नहीं बचा पाए थे.
विधानसभा चुनाव तक हार जाने वाले रणदीप सुरजेवाला और चरणजीत सिंह चन्नी को भी कांग्रेस कार्यसमिति में जगह दी गई है. सुरजेवाला अभी कर्नाटक और मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी हैं.
कुल मिलाकर देखा जाए तो 39 सदस्यों वाली सीडब्ल्यूसी में 25 ऐसे सदस्य हैं, जो या तो पिछले 10 साल में चुनाव नहीं लड़े हैं या चुनाव हार चुके हैं.