यूपी में लू के पीछे जलवायु परिवर्तन: जानिए हीटवेव में कब बदल जाती है गर्मी?
पूर्व और मध्य भारत में मानसून में देरी के कारण लंबे समय तक लू की स्थिति बनी हुई है. अगर मानसून अपने सामान्य समय पर आ जाता, तो इस क्षेत्र को बड़े पैमाने पर राहत मिलती.
यूपी में लू लगने की वजह से हॉस्पिटल में एडमिट होने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स की एक स्टडी में बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से उत्तर प्रदेश में लू चलने की संभावनाएं दोगुनी हो गई है.
क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स वैज्ञानिकों का एक स्वतंत्र अमेरिकी समूह है. क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई) जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान में आए बदलाव पर रिसर्च करने का काम कर रहा है.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के जिला अस्पताल में सोमवार तक पांच दिनों में 68 मरीजों की मौत हो गई. हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि लू लगने से केवल दो लोगों की मौत हुई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देवरिया जिले में भी भीषण गर्मी की वजह से कई लोगों की मौतें हुईं.
अब भीषण गर्मी का जलवायु परिवर्तन कनेक्शन पर सीएसई ने काम करना शुरू कर दिया है. क्लाइमेट सेंट्रल के शोधकर्ताओं ने इसका विश्लेषण किया कि ऐतिहासिक औसत से तापमान कितना और कितनी बार बढ़ा है.
यूपी में गर्मी पर क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट क्या कहती है
14-16 जून के बीच उत्तर प्रदेश में भंयकर गर्मी पड़ी. इन तीन दिनों में हर दिन के मुकाबले दो गुना ज्यादा गर्मी पड़ी. रिपोर्ट के मुताबिक इस गर्मी का जिम्मेदार जलवायु परिवर्तन को बताया गया. यूपी के बलिया जिले में 16 जून को तापमान 42.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया.
सीएसआई ने रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों की तरफ इशारा किया. इसे इस तरह से समझाया गया.
लेवल -1 : लेवल -1 क्लियर कलाइमेंट चेंज सिग्नल को दर्शाता है.
लेवल 2 और 5:लेवल 2 और 5 का मतलब ये कि जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मी दो से पांच गुना ज्यादा बढ़ी है.
भारत के अलग-अलग हिस्सों में पड़ रही गर्मी के बारे में क्या कहती है रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के अलावा पूरे भारत में अधिकांश स्थानों ने इसी अवधि के दौरान भीषण गर्मी का अनुभव किया. इस दौरान लू ने भारत में लाखों लोगों को प्रभावित किया. उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. जबकि महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र, पूर्वी मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना और तटीय आंध्र प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी उच्च तापमान दर्ज किया गया.
क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु में तेजी से परिवर्तन की वजह से तीन दिनों के दौरान उच्च आर्द्रता के साथ तापमान भी तेजी से बढ़ा. रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि जलवायु परिवर्तन गर्मी की लहरों की आवृत्ति और तीव्रता को जिस तरह से बढ़ा रहा है वो सबसे खतरनाक मौसम बन कर उभरेगा.
खराब होते मौसम के बावजूद हाल ही में हुए वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) अध्ययन से पता चला है कि भारत में हीट एक्शन प्लान पर बहुत धीमी गति से काम हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक पैनल डब्ल्यूडब्ल्यूए के सह-प्रमुख फ्रीडेरिक ओटो ने कहा कि पूरी दुनिया में इस पर काम करने की जरूरत है, और भारत में सबसे ज्यादा.
भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, हाल में पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में लगभग 10 दिनों तक लू या हीट वेब की स्थिति बनी रही, जबकि ओडिशा, झारखंड, तेलंगाना और उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश में लगभग 12 दिनों तक हीट वेब की स्थिति बनी रही.
हीटवेव की वजह से बढ़ रहे मौत के आंकड़े
हीटवेव इंसानी जीवन के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है. इंपीरियल कॉलेज लंदन और डब्ल्यूडब्ल्यूए के शोधकर्ता मरियम जकरिया ने एक रिपोर्ट में कहा, "अत्यधिक गर्मी और नमी एक साथ होने से का इंसानों पर बहुत गंभीर असर पड़ता है. लगातार बढ़ रहा शहरीकरण और कार्बन उत्सर्जन जीवन के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.
मई में आईएमडी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के अधिकांश हिस्सों में 2060 तक गर्म लहरों में बहुत इजाफा होगा. लागातर 12 से 18 दिन तक तेज गर्म हवाएं चलेंगी.
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की पांचवीं आकलन रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन से गर्मी की लहरों के कारण दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि औसत तापमान में मध्यम वृद्धि या हीटवेव की अवधि में मामूली वृद्धि से भारत में मृत्यु दर में बहुत इजाफा होता है. लेकिन कोई भी ठोस कदम उठाए नहीं जा रहे हैं.
मानव स्वास्थ्य और जीवन पर असर डालने के अलावा बढ़ा हुआ तापमान फसल की पैदावार में भारी कमी ला सकती है ,और कई फसलों में प्रजनन क्षमता पर भी प्रतीकूल प्रभाव डालती है.
देश के कई क्षेत्रों में लू की स्थिति बरकरार
पूर्व और मध्य भारत में मानसून में देरी के कारण लंबे समय तक लू की स्थिति बनी हुई है. अगर मानसून अपने सामान्य समय पर आ जाता, तो इस क्षेत्र को बड़े पैमाने पर राहत मिलती. पूर्व और मध्य भारत में अभी भी बारिश नहीं हो रही है, बंगाल की खाड़ी से आर्द्र हवाओं ने और परेशनी बढ़ाई है.
इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्मी बढ़ रही है. स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने एक रिपोर्ट में कहा कि "इन्हीं वजहों से चरम मौसम की स्थिति बनी हुई है.
गर्मी की लहरें सबसे घातक प्राकृतिक खतरों में से एक हैं. इसमें हर साल गर्मी की वजह से दुनिया भर में हजारों लोग मर जाते हैं .