नई दिल्ली:  मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला कानूनन वैध हैं या नहीं? इस सवाल का जवाब ढूंढने की कवायद सुप्रीम कोर्ट ने तेज कर दी है. आज कोर्ट ने सभी पक्षों से अपनी दलीलें लिख कर एटॉर्नी जनरल को सौंपने को कहा.


30 मार्च को होने वाली अगली सुनवाई में एटॉर्नी जनरल अहम बातों की जानकारी कोर्ट को सौंपेंगे. इसके आधार पर कोर्ट मई में होने वाली विस्तृत सुनवाई के बिंदु तय करेगा.


कोर्ट ने कहा है कि सभी पक्ष 15-15 पन्ने में अपनी बात एटॉर्नी जनरल के सामने रखेंगे. कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि सुनवाई के मुद्दे तय हो जाने के बाद मसले को 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है.


कोर्ट ये पहले ही साफ कर चुका है कि उसकी सुनवाई मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर है. अदालत यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसले पर विचार नहीं करेगी.


2015 में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने इस मसले पर खुद संज्ञान लिया था. कोर्ट ने संज्ञान लेते वक्त कहा था, "हमें ये देखना होगा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में मौजूद तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला जैसे प्रावधान संविधान की कसौटी पर खरे उतरते हैं या नहीं? संविधान हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है. कहीं इस तरह की व्यवस्था मुस्लिम महिलाओं को इस हक से वंचित तो नहीं करती?"


कोर्ट में मामला शुरू होने के बाद अब तक शायरा बानो, नूरजहां नियाज़, आफरीन रहमान, फरहा फैज़ और इशरत जहाँ नाम की महिलाएं तीन तलाक की व्यवस्था खत्म करने के लिए याचिका दाखिल कर चुकी हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे संगठनों ने भी अर्ज़ी दायर कर अदालत में चल रही कार्रवाई बंद करने की मांग की है. इन संगठनों की दलील है पर्सनल लॉ एक धार्मिक मसला है. कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए.


केंद्र सरकार ने मसले पर स्पष्ट स्टैंड लेते हुए कहा है कि पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है. उसके कुछ प्रावधान महिलाओं के बराबरी और सम्मान के साथ जीने के अधिकार का हनन करते हैं. इन्हें असंवैधानिक करार देकर रद्द कर दिया जाना चाहिए.


केंद्र ने अदालत को सुझाव दिया है कि वो इन सवालों पर सुनवाई करे :-


* क्या तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला संविधान के अनुच्छेद 25 (1) यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आते हैं?


* क्या अनुच्छेद 25 (1) का महत्व अनुच्छेद 14 (बराबरी का अधिकार) और 21 (सम्मान से जीने का अधिकार) से ज़्यादा है?


* क्या पर्सनल लॉ के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 13 के दायरे में आते हैं? (अनुच्छेद 13 के मुताबिक कोई भी कानून जो संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, उसे रद्द कर देना चाहिए)


* क्या तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला भारत की तरफ से दस्तखत किये गए मानवाधिकार से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों के मुताबिक हैं?


सरकार की तरफ से रखे गए ये सवाल अहम हैं. लेकिन कोर्ट ने ये साफ किया है कि वो सभी पक्षों की तरफ से रखी गयी लिखित दलीलों के आधार पर विस्तृत सुनवाई के बिंदु तय करेगा.