नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'फादर ऑफ इंडिया' कहा. इसके बाद से ही देश की सियासत में ट्रंप का यह बयान चर्चा का विषय बन गया है. कांग्रेस समेत देश के कई अन्य राजनीतिक दलों ने ट्रंप के इस बयान की निंदा की है. सभी विपक्षी दलों ने एक सुर में कहा है देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हैं. यह उपाधि उन्हीं को मिली है. किसी और को राष्ट्रपिता कहना गांधी जी का अपमान है.


ऐसे में जब देश में राष्ट्रपिता या 'फादर ऑफ इंडिया' को लेकर बहस छिड़ी है तो ऐसे में फॉदर ऑफ नेशन को लेकर देश का संविधान क्या कहता है इसे जान लेना बेहद जरूरी हो जाता है. दरअसल, संविधान में राष्ट्रपिता की उपाधि देने का कोई प्रावधान ही नहीं है.


'फादर ऑफ इंडिया' को लेकर गृह मंत्रालय ने एक बयान में यह बताया है कि ऐसा कोई प्रावधान संविधान में नहीं है. गृह मंत्रालय ने साल 2012 में एक RTI के जवाब में कहा है कि सरकार किसी को राष्ट्रपिता का दर्जा देने की सिफारिश राष्ट्रपति से नहीं कर सकती क्योंकि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता.


गृहमंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि, ''संविधान सिर्फ शैक्षिक और सैन्य बल को ही कोई भी उपाधि देने की अनुमति देता है. संविधान का अनुच्छेद 18 (1) कहता है कि शिक्षा और सैन्य बल को छोड़कर किसी भी उपाधि की अनुमति नहीं है.'' इसका साफ मतलब है कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि संवैधानिक तौर पर नहीं मिल सकती क्योंकि इसका कोई प्रावधान ही नहीं है.


किसने कहा महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता


महात्मा गांधी को सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रपिता कहा था. बात 4 जून 1944 की है जब बोस ने सिंगापुर में एक रेडियो संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया. इसके बाद से ही उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाने लगा. बाद में 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या होने के उपरांत देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर राष्ट्र को संबोधित किया और कहा कि "राष्ट्रपिता अब नहीं रहे". इस तरह राष्ट्रपिता की कोई संवैधानिक वैधानिकता नहीं है लेकिन महात्मा और राष्ट्रपिता शब्द गांधी जी के साथ जुड़ गया है और लोग उनके सम्मान में उनको राष्ट्रपिता कहते हैं.


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