सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रेलवे को ''लापरवाही और सेवा में कमी'' के लिए 40,000 रुपये का मुआवजा देने के नेशनल कंज्यूमर फोरम के आदेश को लेकर नोटिस जारी किया है. यूनियन ऑफ इंडिया ने कंज्यूमर फोरम के इस आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट में ये याचिका दायर की थी. ये 40,000 रुपये का मुआवजा उन लोगों को दिया जाना है जिनको ट्रेन यात्रा के दौरान अपने एयरपोर्ट तक पहुंचने में छह घंटे की देरी हो गई थी और इसके चलते इनकी फ्लाइट भी छूट गई थी.
इस मामले में जिला कंज्यूमर फोरम ने भारतीय रेलवे को ''लापरवाही और सेवा में कमी'' का दोषी ठहराया था, और उसको पीड़ित लोगों को 40,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था. इसके बाद नेशनल कंज्यूमर फोरम ने भी इस आदेश को बरकरार रखा था. रेल मंत्रालय ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस रवींद्र भट की एक डिवीजन बेंच ने प्रतिवादियों रमेश चंद्र व अन्य को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने कंज्यूमर फोरम के अधिकार क्षेत्र और भारतीय रेलवे के दायित्व के मुद्दे पर विचार करने पर अपनी सहमति भी व्यक्त की है. साथ ही कोर्ट ने शर्त रखी है कि यूनियन ऑफ इंडिया, रेल मंत्रालय के जरिये चार हफ्तों के अंदर कोर्ट में 25,000 रुपये जमा करवाएगा. हालांकि साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि वो नेशनल कंज्यूमर फोरम के 21 अक्टूबर, 2020 के आदेश पर रोक नहीं लगा रहा है.
फोरम के अनुसार रेलवे लगा सकता था देरी का अनुमान
नेशनल और ज़िला कंज्यूमर फोरम दोनों ही के अनुसार रेलवे इस मामले में पहले से ही ट्रेन लेट होने का अनुमान लगा सकता था और इसकी जानकारी यात्रियों को दे सकता था. फोरम के अनुसार उसने ऐसा नहीं किया इसलिए इसे उसकी लापरवाही और सेवा में कमी ठहराया गया था. जिसके आधार पर रेलवे को मुआवजा देने का आदेश दिया गया था.
यूनियन ऑफ इंडिया ने कोर्ट में दिया ये तर्क
यूनियन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया अगर मुआवजे के इस आदेश को लागू किया जाता है तो ये भविष्य में रेलवे के लिए जी का जंजाल साबित हो सकता है. इस के चलते भविष्य में इस तरह के मामलों की बाढ़ आ सकती है. साथ ही किराए की वापसी से संबंधित मामलों में ये आदेश एक बुरी मिसाल साबित होगा.
साथ ही भारतीय रेलवे ने तर्क दिया कि ट्रेन का लेट होना उनके हाथ में नहीं था. रेलवे के अनुसार ये ट्रेन अपने ऑरिजिन स्टेशन इलाहाबाद से तय समय पर ही चली थी. इसके डेस्टिनेशन तक पहुंचने में देरी यात्रा के दौरान हुई है.
साथ ही रेलवे ने कहा कि, कंज्यूमर फोरम ने उनके द्वारा दिए गए तथ्यों पर विचार किए बिना ही इस दावे को खारिज कर दिया और रेलवे पर ये मुआवजा देने का आदेश लगा दिया. रेलवे के अनुसार, इंडियन रेलवे कॉन्फ़्रेन्स कोचिंग रेट टैरिफ नंबर 26 पार्ट-1 (वॉल्यूम 1) के रूल 115 के तहत रेल प्रशासन किसी भी ट्रेन के टाइम टेबल में दिए गए शेड्यूल के अनुसार उसके आगमन और प्रस्थान की कोई गारंटी नहीं देता है. इन नियमों के अनुसार, सामान को हुए किसी भी नुकसान या किसी अन्य असुविधा के लिए रेलवे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.
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