नई दिल्लीः भारत और अमेरिका के बीच हुए टू प्लस टू डायलॉग में रक्षा और सिक्योरिटी से जुड़े हुए कुछ अहम करार और मुद्दों पर बातचीत हुई है. पहला करार है कोमकासा. दूसरा है पाकिस्तान को अपनी धरती को आतंकवादियों और डी-कंपनी जैसे अंडरवर्ल्ड को इस्तेमाल ना करने के लिए रोकना. तीसरा है दोनों देशों के बीच में अगले साल यानि वर्ष 2019 में तीनों सेनाओं यानि थलसेना, वायुसेना और नौसेना का साझा युद्धभ्यास. साथ ही डायलॉग के बाद भारत का अमेरिका के सेंटकॉ़म कमांड से सैन्य सहयोग का रास्ता भी खुल गया है. अभी तक भारत सिर्फ इंडो-पैसेफिक कमांड तक ही सीमित था.


1. कोमकासा (COMCASA यानि Communication Compatability And Security Agreement). इस करार के तहत दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के युद्धपोत और लड़ाकू जहाजों के बीच के कम्युनिकेशन यानि संचार प्रणाली का इस्तेमाल कर सकते हैं और खुफिया जानकारी एक दूसरे से साझा भी कर सकते हैं. इसके मायने ये हैं कि भारत को अमेरिका के जरिए चीन और पाकिस्तान पर निगरानी रखने में मदद मिलेगी. इसके मतलब ये हैं कि अगर अमेरिका का कोई युद्धपोत समंदर में किसी चीनी जहाज को इंटरसेप्ट करता है तो इसकी जानकारी तुरंत भारतीय नौसेना को लग जायेगी. लेकिन ये संचार प्रणाली सिर्फ अमेरिकी मिलिट्री प्लेटफार्म्स तक ही सीमित रहेगी. यानि भारत जिन अमेरिकी समुद्री जहाज और लड़ाकू विमानों को इस्तेमाल करता है उस तक ही कम्युनिकेशन और इंटेलीजेंस का आदान-प्रदान हो पाएगा. ये इसलिए किया गया है क्योंकि भारत रूस और दूसरे देशों के जंगी जहाज, पनडुब्बी और फाइटर एयरक्राफ्ट भी इस्तेमाल करता है. अगर भारत चाहे तो स्वदेशी मिलिट्री हार्डवेयर में इसका इस्तेमाल कर सकता है.


फिलहाल भारतीय नौसेना अमेरिका से लिए गए पी8आई टोही विमान और भारतीय वायुसेना सी-130 जे और सी-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट इस्तेमाल करती है. अमेरिका भारत को एक एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने में भी मदद कर रहा है. जल्द ही भारत को अमेरिका से चिनूक ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर और अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर भी मिलने जा रहे हैं.


लेकिन इस करार का असली फायदा भारत को मिलने वाला है. आपको बता दें कि हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर और अरब सागर में हर समय उसके दर्जनों युद्धपोत और विमानवाहक युद्धपोत तैनात रहते हैं. क्योंकि भारतीय नौसेना का जंगी बेड़ा इतना बड़ा नहीं है कि वो सब जगह निगरानी रख सके. ऐसे में चीन की हर चाल पर अमेरिका के जरिए भारत को पूरी जानकारी मिलती रहेगी. हिंद महासागर की एक बड़ी जिम्मेदारी अमेरिका के इंडो-पैसेफिक कमान की है. लेकिन अरब सागर की जिम्मेदारी सेंटकॉम यानि सेंट्रल कमांड की है.


लेकिन इस करार के मायने ये बिल्कुल नहीं है कि भारत अमेरिका के जंगी जहाज या फिर युद्धपोत खरीदने को कहीं से बाध्य है.


ये करार आज दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के हस्ताक्षर करने के बाद से ही लागू हो जायेगा. अगले 10 सालों तक ये लागू रहेगा. भारत के अनुरूप अमेरिका ने इस करार को किया है. क्योंकि दूसरे (खासतौर से नाटो) देशों के साथ हुए करार से थोड़ा अलग है जिसे सेसमोआ (CISMOA यानि कम्युनिकेशन एंड इंफोर्मेशन सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट) के नाम से जाना जाता है.


गौरतलब है कि भारत पहले ही अमेरिका से लेमोआ यानि लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट साइन कर चुका है, जिसके तहत दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के सैन्य अड्डे और बेस इस्तेमाल कर सकती हैं.


2. इंडो पैसेफिक कमांड के साथ सेंटकॉम से भी होगा 'इंटरेक्शन'--सेंटकॉम यानि अमेरिका की सेंट्रल कमांड की जिम्मेदारी मध्य और पश्चिम एशिया है जिसमें ईराक और अफगानिस्तान भी शामिल है. सेंटकॉम उत्तरी अफ्रीका का कुछ हिस्सा भी देखता है. इससे साफ है कि भारत का सैन्य दायरा अब और बढ़ सकता है. अभी तक अमेरिका की पैसेफिक कमांड (जो अब इंडो-पैसेफिक कमांड के नाम से जानी जाती है) ही भारत से इंटरेक्शन करती थी.


3. अगले साल यानि वर्ष 2019 में भारत और अमेरिका की तीनों सेनाओं का एक साझा युद्धभ्यास भारत के ही पूर्वी तट पर किया जायेगा. इस युद्धभ्यास में दोनों देशों की थलसेना, वायुसेना और नौसेना हिस्सा लेंगी. अभी तक भारत इस तरह का इतना बड़ा और तीनों सेनााओं का साझा युद्धभ्यास सिर्फ रूस के साथ करता था. पिछले साल ही रूस के वलाडिवोस्टोक में भारत और रूस की सेनाओं के बीच इंद्रा नाम का इस तरह का युद्धभ्यास किया गया था.


4. भारत को अमेरिका ने दिया एसटीए-1 स्टेटस: इसके तहत भारत को अमेरिका से एडवांस टेक्नोलोजी मिलने का रास्ता खुल जायेगा.


5. पाकिस्तान को लेकर दोनों देशों ने साझा बयान में कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है. साझा बयान में पाकिस्तान पर जोर डाला गया है कि वो अपनी धरती का इस्तेमाल आतंकियों और अंडरवर्ल्ड के इस्तेमाल के लिए ना करने दे. खास तौर से दोनों देशों ने अल-कायदा, आईएसआईएस, लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद और डी-ंकपनी के खिलाफ सहयोग करना पर जोर दिया.


भारत-अमेरिका में पहली 2+2 वार्ताः दोनों देशों के बीच हुआ संचार और सैन्य समझौता