कुश्ती संघ में विवाद के बीच जानिए क्यों उठी नार्को टेस्ट की मांग, क्या इससे सामने आ जाता है सच?
पहलवानों के प्रदर्शन मामले में खाप पंचायत के अध्यक्ष रामफल राठी के अनुसार इस पंचायत ने फैसला लिया है कि बृजभूषण शरण सिंह को तुरंत गिरफ्तार किया जाए और उनका नार्को टेस्ट कराया जाए.
दिल्ली के जंतर-मंतर पर बैठे पहलवानों को आज यानी 23 मई को प्रदर्शन करते हुए पूरा एक महीना होने जा रहा है. प्रदर्शनकारी पहलवानों ने धरने की शुरुआत 23 अप्रैल को बीजेपी सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ की थी. बृजभूषण पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोप है.
पहलवानों की मांगे पूरी नहीं होने पर 21 मई यानी रविवार को खाप पंचायत हुई थी. इस महापंचायत में महिला पहलवान साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया और किसान नेता राकेश टिकैत भी मौजूद थे.
रोहतक जिले में हुए खाप पंचायत के अध्यक्ष रामफल राठी के अनुसार इस पंचायत ने फैसला लिया कि बृजभूषण शरण सिंह को तुरंत गिरफ्तार किया जाए और उनका नार्को टेस्ट कराया जाए.
बृजभूषण ने क्या कहा?
वहीं दूसरी तरफ बृजभूषण शरण सिंह ने इस पंचायत के फैसले पर कहा है कि वो नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफी टेस्ट या लाई डिटेक्टर टेस्ट करने के लिए तैयार हैं.
उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा, "मैं टेस्ट के लिए तैयार हूं लेकिन शर्त ये है कि मेरे साथ विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया का भी टेस्ट होना चाहिए. अगर ये दोनों पहलवान भी नार्को टेस्ट कराने की हामी भरते हैं तो प्रेस बुलाकर घोषणा करें."
बृजभूषण सिंह के बयान के बाद कल शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बजरंग पुनिया ने भी नार्को टेस्ट कराने की हामी भर दी. उन्होंने कहा कि अगर बृजभूषण की यही शर्त है तो हम मानने के लिए तैयार हैं.
क्या होता है नार्को टेस्ट
नार्को-एनालाइसिस टेस्ट को ही नार्को टेस्ट कहा जाता है. यह शब्द ग्रीक के शब्द नर्को से लिया गया है जिसका मतलब है एनेस्थीसिया या टॉरपोर. इस टेस्ट का इस्तेमाल आपराधिक मामलों की जांच-पड़ताल के दौरान मदद के तौर पर किया जाता है. हालांकि इसकी सफलता-वैधता पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं.
कैसे किया जाता है नार्को टेस्ट
विशेषज्ञों के अनुसार नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफ और ब्रेन-मैपिंग टेस्ट की कैटेगरी में आता है. इस टेस्ट के दौरान मॉलिक्यूलर लेवल पर व्यक्ति के नर्वस सिस्टम में दखल देकर उसकी हिचक कम की जाती है. आसान भाषा में समझें तो यह टेस्ट सामने वाले व्यक्ति को सम्मोहन की स्थिति में ले जाता है, जिसका मतलब है कि वह व्यक्त ने पूरी तरह सोया है और न ही जागा. ऐसी स्थिति में जब उससे किसी तरह का सवाल पूछा जाए तो वह जानकारी देने से पहले सोचने-समझने की स्थिति में नहीं रहता और सच-सच बोल देता है.
नार्को टेस्ट के दौरान इंजेक्शन के जरिए दिए जाने वाले ये खुराक व्यक्ति के लिंग, आयु, स्वास्थ्य और शारीरिक स्थिति के अनुसार तय की जाती है. सबसे पहले टेस्ट देने वाले व्यक्ति के नस में इंजेक्शन के जरिए एनेस्थीसिया ड्रग दिया जाता है और फिर जब व्यक्ति ड्रग के कारण अपनी चेतना खोने लगता है तो उससे जरूरी सवाल किए जाते हैं.
कितना सफल होता रहा है नार्को टेस्ट
नार्को टेस्ट ने स्टांप घोटाले की जांच और 26/11 मुंबई हमले की जांच में अहम भूमिका निभाई. जबकि आरुषि मर्डर केस में इस टेस्ट से कुछ खास जानकारी नहीं मिल पाई थी. डॉक्टरों के अनुसार हिप्नोटाइज होने के कारण ये सच है कि लोग सभी सवाल का जवाब बिना सोचे समझे दे देते हैं, लेकिन ये कभी नहीं कहा गया कि वह जवाब सौ प्रतिशत सच ही हो.
कई मामलों में हो चुका है नार्को टेस्ट
ये पहली बार नहीं है जब सच को उजागर करने के लिए नार्को टेस्ट की मदद ली जा रही हो. साल 2002 के गुजरात दंगों के मामले में भी इस टेस्ट का इस्तेमाल किया गया था. इसके अलावा अब्दुल करीम तेलगी फर्जी स्टांप पेपर घोटाला, 2007 में निठारी हत्याकांड और 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के मामले में पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब पर नार्को टेस्ट का उपयोग किया गया था.
डॉक्टर की मौजूदगी में होती है पूछताछ
टेस्ट से संबंधित व्यक्ति से जांच एजेंसियों की ओर से डॉक्टरों की मौजूदगी में पूछताछ की जाती है. इस दौरान किए गए खुलासे की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है. कोर्ट के आदेश के बाद सरकारी अस्पताल में ये टेस्ट किया जाता है.
नार्को टेस्ट में कितना खर्चा होता है
नार्को टेस्ट सिर्फ सरकार द्वारा प्रमाणित सरकारी संस्थाओं और विशेषज्ञों की देखरेख में ही किया जाता है, जिस टेस्ट को करने के लिए कोर्ट की अनुमति का प्रमाण पत्र होना सबसे जरूरी है. इसलिए कोई भी सामान्य व्यक्ति या संस्था इस टेस्ट को नहीं करवा सकती है और खर्च करने की स्थिति पैदा नहीं होती है.
पहलवानों के प्रदर्शन का पूरा मामला समझिये
इस पूरे मामले की शुरुआत हुई 18,जनवरी 2023 को हुई. उस दिन भारत के जाने माने पहलवान विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने दिल्ली के जंतर-मंतर से रेसलिंग फेडरेशन के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह पर कई गंभीर लगाए थे.
इन खिलाड़ियों ने कुश्ती महासंघ और बृजभूषण पर बुनियादी सुविधाओं की कमी, वित्तीय अनियमितताएं, खिलाड़ियों और फेडरेशन के बीच अपस्पष्ट संवाद, बुरा बर्ताव और अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का मन-माना रवैया जैसे कई आरोप लगाए.
उस वक्त विनेश फोगाट ने रोते आपबीती सुनाते हुए कहा कि बृजभूषण सिंह और कोच, नेशनल कैंप में महिला रेसलर्स के साथ दुर्व्यवहार करता है इसके साथ उन्होंने बृजभूषण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया.
जंतर मंतर पर खिलाड़ियों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन के बीच खेल मंत्रालय ने कुश्ती संघ से 72 घंटे के अंदर आरोपों पर जवाब देने के लिए नोटिस भेजा था. इस नोटिस के बाद 23 जनवरी को आरोपों की जांच के लिए पांच सदस्यीय निरीक्षण समिति बनाई गई.
सरकार ने इन पहलवानों को आश्वासन दिया कि बृजभूषण सिंह पर कार्रवाई की जाएगी. सरकार के आश्वासन के बाद पहलवानों ने अपना धरना प्रदर्शन खत्म कर दिया, लेकिन 23 अप्रैल को साक्षी मलिक और विनेश फोगाट की अगुवाई में एक बार फिर से धरना शुरू कर दिया.
इस बार खिलाड़ियों ने कहा कि समिति के तीन महीने पहले बनाए जाने के बाद भी क्या जांच की और उस जांच में क्या निष्कर्ष निकाला, ये अभी तक सामने नहीं आया है. पहलवानों ने आरोप लगाया कि इसके उलट जांच रिपोर्ट से जानकारियां मीडिया में लीक की गई. जबकि निरीक्षण समिति की ये रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं है.
आरोपों से इनकार करते रहे बृजभूषण
पिछले एक महीने से पहलवान लगातार जंतर मंतर पर जांच की मांग कर रहे हैं लेकिन बृजभूषण सिंह ने अब तक खुद पर लगे सारे आरोपों को बेबुनियाद बताया है. एक बयान में बृजभूषण ने कहा, "मैंने किसी के साथ कोई नाइंसाफी बदतमीजी, छेड़छाड़ नहीं की है. मैंने उनके परिवार के बच्चों की तरह ट्रीट किया है. बहुत सम्मान और प्यार दिया है."
वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एफआईआर दर्ज किए जाने पर बृजभूषण ने कहा, ''मैं इस निर्णय से ख़ुश हूँ और दिल्ली पुलिस को जांच मिली है. जांच में जहाँ भी सहयोग की आवश्यकता होगी, मैं सहयोग करने के लिए तैयार हूँ. न्यायपालिका से बड़ा कोई नहीं है इस देश में.''
खिलाड़ी इससे पहले कब-कब धरने पर बैठे?
बता दें कि यह पहली बार नहीं जब कोई खिलाड़ी अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठे हैं. बस इस बार जो मुद्दे उठाए गए हैं वह बहुत गंभीर और संवेदनशील हैं.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ खेल पत्रकार नॉरिस प्रीतम कहते हैं, "साल 2008 में हॉकी खिलाड़ियों ने तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री एमएस गिल के खिलाफ दिल्ली के कनॉट प्लेस पर धरना प्रदर्शन किया था. इस धरने का कारण खेल मंत्री पर कुप्रबंधन और खेल की अपेक्षा थी.
हॉकी खिलाड़ियों के प्रदर्शन के दौरान खिलाड़ी गिल के विरोध में और प्रशासन में बदलाव की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर चले गए थे. उस वक्त खेल पत्रकारों ने भी काला बैंड लगाकर इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया था."
इसके अलावा साल 1970 में दिल्ली के राजपथ पर भी श्रीराम सिंह को लेकर प्रदर्शन हुआ था. श्री राम सिंह भारत के बेहतरीन एथलीट्स में हैं. वे चार सौ और आठ सौ मीटर रेस में दौड़ते थे. साल 1970 के हुए एशियन गेम्स में जब श्री राम सिंह को शामिल नहीं किया गया तब राजपथ पर पत्रकार इकट्ठा हुए और ध्यानाकर्षण के लिए एक रेस का आयोजन किया गया. इस प्रदर्शन के बाद श्रीराम को टीम में जगह मिली और उन्होंने मेडल भी जीता."