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Coranavirus: मानव जाति के इतिहास में पहले कभी नहीं देखी गई ऐसी महामारी

भारत में भी कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. अब तक भारत में 341 लोग कोरोना से संक्रमित हो गए हैं. कोरोना के कहर को देखते हुए 31 मार्च तक के लिए 75 जिलों को लॉक डाउन कर दिया गया है.

नई दिल्ली: कोरोना वायरस ने मानव जाति पर संकट खड़ा कर दिया है. जिस तरह से यह वायरस अपने पांव पसार रहा है ऐसा इसके पहले मानव जाति के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया. इस वायरस ने दुनिया भर की स्वास्थ्य सेवाओं को घुटनों पर ला दिया है. ऐसे मामले में जानकारी और सतर्कता ही इकलौता ऐसा हथियार है जिसके माध्यम से इस महामारी से बचा सकता है. तो आइए जानते हैं कि इसे लेकर अपोलो अस्पताल बैंगलोर में पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख डॉक्टर रविंद्र मेहता क्या कहते हैं. इस महामारी को रोकने के तरीकों को लेकर उन्होंने कुछ सवाल भी उठाए हैं.....

ऐसा माना जा रहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग (एसडी) से इस वायरस को फैलने से रोका जा सकता है. लेकिन जिस तरह के आंकड़े सामने आ रहे हैं उनको देखते हुए ये कहा जा सकता है कि सोशल डिस्टेंसिंग ऐसे परिणाम नहीं दे सकता जिसकी हम कल्पना कर रहे हैं.

सोशल डिस्टेंशिंग एक गरीब सामाजिक-आर्थिक तबके में लागू करना असंभव सोशल डिस्टेंशिंग को लेकर डॉक्टर रविंद्र मेहता कहते हैं कि क्या स्कूलों, कार्यालयों और मॉल को बंद करना पर्याप्त है? अगर आप चारों तरफ नजर घुमाएं तो आप देखेंगे कि लोगों के बड़े पैमाने पर एक असुविधाजनक रूप से लोगों का मिलना जुलना जारी है. मैदानों में बच्चों खेल रहे हैं, शादियों में मेहमान इकट्ठा हो रहे हैं. रेलवे स्टेशनों पर शहर से पलायन कर घर जाने वालों की भीड़ है.

सोशल डिस्टेंसिंग को एक गरीब सामाजिक-आर्थिक तबके में लागू करना असंभव है. जहां मास्क, सैनिटाइज़र, एक सपने की तरह है, और सिर्फ निकटता ही उनके अस्तित्व का एक तरीका है. यह ऐसी चीज है जिसके बारे में हम बात नहीं कर रहे हैं. सिस्टम को इसके लिए जिम्मेदार होना चाहिए.

दूसरा सवाल ये उठता है कि सोशल डिस्टेंशिंग की अवधि क्या होनी चाहिए. शायद इसका जवाब कोई भी नहीं दे सकता है. इस सवाल का जवाब प्रतिदिन आने वाली जानकारी के आधार पर बदलता है.

संक्रामक रोगों की रोकथाम में हमारा ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं

कोरोना को लेकर उन्होंने कहा कि इस वायरस के बारे में कहा जा रहा था कि ये जानवर से मनुष्य में फैला है. फिर तेजी से ये मानव से मानव में फैलने लगा. इस बात के कुछ सबूत हैं कि बुजुर्ग और पुरानी बीमारियों से जूझ रहे लोग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, लेकिन विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों में इसके फैलाव को देखते हुए इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता. बीमारियों की रोकथाम को लेकर उन्होंने कहा कि भारत में टीबी, मलेरिया और डेंगू एक बुरे सपने जैसे हैं. हमारे पास संक्रामक रोगों को कंट्रोल करने का कोई महान ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है.

बीमारी के मुख्य कारण को समझें

डॉक्टर मेहता ने कहा कि ये सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम इस बीमारी के मुख्य कारण को समझें. इसकी सही जानकारी से हमें इसे लड़ने में मदद मिलेगी. क्योंकि ये नोवेल कोरोना वायरस है इसलिए हमारे पास या दुनिया में कहीं भी इसके लिए पर्याप्त किट्स मौजूद नहीं हैं. इस कारण विभिन्न देशों द्वारा कई व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाए गए हैं. हमारे जैसे 133 करोड़ की आबादी वाले देश में सीमित उपयोगितावादी नीति का सुझाव दिया जा सकता है जिससे बदलाव आ सकता है.

इस समय सबसे बड़ा नुकसान यही है कि इस महामारी को लेकर अपने देश को लोगों को पर्याप्त जानकारी नहीं दी जा रही है. जानकारी के अभाव में उन लोगों को भी आइसोलेट किया जा रहा है जो संक्रमित नहीं हैं. दूसरी तरफ उच्च स्तर पर परीक्षण का ये प्रभाव पड़ा है कि लोगों में परेशानी और चिंता बढ़ गई हैं. हमें इससे फैली अशांति से निपटने के लिए तैयार होना पड़ेगा.

गाइडलाइन्स के लेकर उन्होंने कहा कि हमारे पास जरूरत से ज्यादा दिशानिर्देश हैं जिनका पालन करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है.

स्वास्थ्य प्रणाली का स्तर है अलग

कोरोना वायरस से निपटने की तैयारी को लेकर डॉक्टर रविंद्र मेहता कहते हैं कि हमारे पास एक अत्यंत विषम और बीमार स्वास्थ्य प्रणाली है जो बुनियादी ढांचे, कौशल और आर्थिक ताकत में अलग-अलग है. नर्सिंग होम, छोटे अस्पताल, सरकारी अस्पताल और कॉर्पोरेट अस्पताल उनकी सेवाओं और गुणवत्ता में बहुत ही भिन्न हैं. और ये सभी इस तरह की महामारी से निपटने की योजना बनाने वाले एक प्रमुख कारक हैं.

स्वॉट टीम की तरह पूरा करना होगा टॉस्क

हमें ऐसे प्रयास करने होंगे जो पहले कभी ना किए गए हों. जहां उपायों के परीक्षण और उनके पालन के साथ-साथ उन्हें हर समय अपडेट करते रहना होगा. हम इस महामारी से लड़ने के लिए किसी स्वॉट टीम की तरह काम करना होगा.

बीमार रोगी की देखभाल एक चैलेंज

यह सबसे कमजोर कड़ी है. इन्फ्रास्ट्रक्चर, हेल्थकेयर कर्मी (डॉक्टर, नर्स और सहायक कर्मचारी) और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) इनपैथेंट सेटिंग के प्रबंधन के तीन स्तंभ हैं. अगर हम इस बीमारी से निपटने के लिए बड़ा संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों को भर्ती करते हैं तो इससे उनके संक्रमित होने के आसार बढ़ जाएंगे. हमारे पास स्वास्थ्य कर्मियों की सालों से कमी है. अगर वो संक्रमित होते हैं तो ना हम उनका इलाज कर सकते हैं और ना ही उन्हें उनके परिवार के पास भेज सकते हैं. क्योंकि इसके चलते दूसरों के भी संक्रमित होने की संभावना है.

ऐसी स्थिति में हम कोविड 19 से संक्रमित मरीज को हम सुरक्षित और गुणवत्ता वाली सेवा कैसे दे सकते हैं? इस पर हमें विचार करना होगा और इसके लिए हमें अपनी तैयारियों को उस स्तर तक बढ़ाना होगा जितना पहले कभी नहीं थी. जिससे ये सुनिश्चित हो पाए कि ये बीमारी अस्पतालों तक ही रहे और लोगों के घरों तक ना पहुंचने पाए.

सुझाव...

  • इसके लिए एक सेंट्रल पीपीई सिस्टम बनाया जाना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किए जा सके कि कोई गलती ना हो.
  • उत्पादन, वितरण और उपयोग के लिए एक आपातकालीन पीपीई कानून बनाया जाना चाहिए जो अबतक का सबसे सख्त कानून हो.
  • जैसे ही इस बीमारी के लिए ड्रग्स और टीके बन जाएं एक समान रणनीति बनाकर ये सुनिश्चित किया जाए कि ये उन लोगों को मिले जिसे इसकी वास्तव में जरूरत है.
  • कोविड19 केंद्रों का ऑडिट और विशेषज्ञों की बाहरी टीम द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कर्मियों / पीपीई के लिए कोई कटौती नहीं की गई है.
  • अगर ये सारे नियम लागू नहीं किए जाते हैं तो ये केंद्र भी संक्रमण फैलाएंगे और हमारे महत्वपूर्ण स्वास्थय कर्मियों को काम से बाहर कर देंगे.

कोविड19 केंद्रों की ट्रेनिंग और नियोजन

डॉक्टर मेहता कहते हैं कि लंबी दौड़ के लिए योजना बनाने के लिए सभी संसाधनों का विवेकपूर्ण लेकिन गैर-समझौतावादी उपयोग करना होगा क्योंकि महामारी अन्य देशों की तरह हफ्तों तक फैल सकती है. हम दुनिया भर में सुविधाओं की कमी देख रहे हैं.

सिस्टम को इस बात की इजाजत देनी होगी कि वो कोविड19 के मरीजों की बिना संक्रामकता के जोखिम के देखभाल कर सकें. इसके लिए अलग सुविधाओं और जोन की जरूरत है.

वो सच जिनपर होनी चाहिए चर्चा

डॉक्टर मेहता कहते हैं ऐसे बहुत सारे सच हैं जिन्हें सामने लाने और उनपर बात करने की जरूरत है. हमारे अस्पाताल या फिर सरकारी अस्पताल दोनों में से किसी में भी इतनी बड़ी तादाद में कोविड 19 के मरीजों का इलाज करने के लिए उपकरण नहीं हैं. कोई भी इस पार बात नहीं कर रहा है. क्या हम इस बात को लेकर संतुष्ट हैं कि हमारे अस्पताल इस महामारी वाली बीमारी से लड़ने के लिए तैयार हैं?

बात करें प्राइवेट हॉस्पिटल्स की तो वो अपने आप को तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं पर वहां बजट को लेकर दिक्कत हो रही है. इसलिए वो उतनी तेजी से काम नहीं कर पा रहे जितने तेजी से काम होना चाहिए. उपकरणों की दिक्कत को लेकर वेंडर्स से बात किए जाने की जरूरत है. इस समय डिमांड ज्यादा है और जरूरत के हिसाब से हम उसे पूरा नहीं कर पा रहे. हमारे अस्पाताल कोविड19 के मरीजों को संभालने के लिए तैयार नहीं हैं. हमें एक ऐसी समिती की जरूरत है जो राज्यों और शहरों पर ध्यान देने के साथ साथ कोरोना वायरस वाली जगहों की पहचान कर उच्च गुणवत्ता वाली सेवा दे सके.

चीन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कोविड19 के मरीजों के लिए उसने 10 दिन में अस्पताल खड़ा कर दिया. क्या हमारे पास ऐसी क्षमता है कि हम ऐसा कर पाएं?

हमें एक ओमबड्समैन बनाना चाहिए और उसका नाम कोविड19 जनरल ऑफ इंडिया रखना चाहिए. ये सर्जिकल स्ट्राइक की तरह इस महामारी से लड़ेगा. ओमबड्समैन को सरकार और लोगों से मिलकर उन्हें जागरुक करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि इस बीमारी का खतरा अमीर, गरीब, नामदार , मशहूर सबको हैं. हमें सही समय पर सही काम करने होंगे.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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