नई दिल्लीः जैसे जैसे कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे रेमडीसिविर इंजेक्शन की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है. मेडिकल स्टोर के बाहर इस दवा के लिए लोगों की लंबी-लंबी कतारें देखी जा रही है लेकिन फिर भी यह इंजेक्शन सभी लोगों को नहीं मिल पा रहा है. कोरोना के इस दौर में इस इंजेक्शन को जीवन रक्षक दवा के रूप में देखा जा रहा है. यही कारण है कि रेमडीसिविर इंजेक्शन को लोग मुंहमांगी कीमत पर खरीद रहे हैं.
क्या है रेमडीसिविर
रेमडीसिविर एक एंटी-वायरल दवा है जो शरीर के अंदर वायरस को फैलने से रोकता है. इस दवा को साल 2009 में विकसित किया गया था. हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए कैलिफोर्निया के गिलीड साइंसेज ने इस दवा को बनाया था. लेकिन, यह इस हेपेटाइटिस सी पर कभी भी कारगर नहीं हो पाया. दवा बनने के बाद लगातार इसपर रिसर्च चलता रहा. बाद में इसका इस्तेमाल इबोला वायरस के इलाज के लिए शुरू कर दिया गया.
कैसे काम करता है रेमडीसिविर
किसी भी वायरस के जिनेट में डीएनए या आरएनए मौजूद रहता है. कोरोना वायरस आरएनए वाला वायरस है. यह वायरस इंसानी कोशिकाओं के अंदर पहुंचकर शरीर में मौजूद एंजाइम की मदद से फैलना शुरू कर देता है.
जैसे ही रेमडीसिविर दवा शरीर के अंदर पहुंचता है वायरस को आगे बढ़ने से रोकता है. इस कारण किसी भी वायरस जनित बिमारियों का प्रभाव कम होने लगता है और विस्तार बंद हो जाता है. जिसके बाद मरीज ठीक होकर घर लौट आता है.
क्यों हुई भारत में किल्लत
देश में कोरोना की दूसरी लहर के कारण मरीजों की संख्या में भारी बढ़ोतरी देखने को मिला है. क्रिटिकल मरीजों के लिए रेमडेसिविर की मांग बहुत ही ज्यादा बढ़ गई है. पिछले साल के अंत में इस कोरोना के नए मामलों में कमी आऩे के बाद रेमडीसिविर दवा का उत्पादन कम कर दिया गया था.
यही नहीं पिछले 6 महीनों में भारत ने करीब 10 लाख से ज्यादा इंजेक्शन कई अन्य देशों को निर्यात कर दिया था. वहीं इंजेक्शन की जमाखोरी और कालाबाजारी की समस्या ने इस कमी को और गंभीर बना दिया है.