Corona crisis: हरियाणा का एक ज़िला जहां गली, मोहल्लों और आंगन तक पहुंची 'पाठशाला'
हरियाणा में मोहल्ला पाठशाला के जरिए शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर किया जा रहा है. कोरोना की वजह से होनेवाली तकनीकी दिक्कत को देखते हुए अनूठा प्रयोग किया गया.
हरियाणा का एक जिला गली मोहल्ले के बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने में मिसाल बन गया है. खास बात ये है कि 2018 में नीति आयोग की रिपोर्ट में उसे देश का सबसे पिछड़ा ज़िला करार दिया गया था. मगर कोरोना काल में स्मार्टफोन और इंटरनेट की चुनौतियों के बीच उसने अनोखा प्रयोग किया.
नूह ज़िले में घर आंगन तक शिक्षा पहुंचाने के लिए विभाग ने अनोखा प्रयोग किया है. उसने 'मोहल्ला पाठशाला' की शुरुआत कर तकनीक की चुनौतियों को पार पाने की कोशिश की. स्मार्टफोन से जुड़ी दिक्कतों के चलते ज़िले के करीब 70 फीसदी छात्र ऑनलाइन क्लास से वंचित थे. शिक्षा अधिकारी अनूप सिंह जाखड़ के मुताबिक कोविड के दौरान पढ़ाई की समस्या को देखते हुए मोहल्ला पाठशाला की शुरूआत की गई. एक पाठशाला में अधिकतम 15 छात्र आ सकते हैं. अब तक 130 गांव में करीब 250 मोहल्ला पाठशाला चलाई जा रही हैं.
मोहल्ले के बच्चों को गांव के पढ़े लिखे युवा पढ़ा रहे हैं. उन्हें शिक्षादूत का नाम दिया गया है. ज़्यादातर शिक्षादूत ग्रेजुएशन या अन्य हायर कोर्सेज में पढ़ने वाले छात्र ही हैं. अब तक मोहल्ला पाठशाला से 4500 से ज़्यादा छात्रों को फायदा पहुंच रहा है. करीब 240 शिक्षादूत गांव के बच्चों तक शिक्षा पहुंचा रहे हैं. 240 में से 113 शिक्षादूत लड़कियां है. विभाग का लक्ष्य 50 हज़ार छात्रों तक पाठशाला की पहुंच बनाने की है. ABP न्यूज़ की टीम ने नूह में चल रही मोहल्ला पाठशालाओं का जायज़ा लिया.
घसेड़ा गांव
एक पाठशाला में बतौर शिक्षादूत शाइस्ता खान बच्चों को पढ़ाती हैं. 2 अगस्त को इस पाठशाला की शुरुआत की गई थी. शाइस्ता बताती हैं कि कोविड के दौरान सभी शिक्षण संस्थान और स्कूल बंद हो गए. इससे बच्चों की पढ़ाई पर काफी खराब असर हुआ. अभिभावक बच्चों को पढ़ाने के प्रति गंभीर नहीं होते हैं. उनके पास स्मार्टफोन नहीं होने से भी पढ़ाई में दिक्कत आती है. ज्यादातर अभिभावक बच्चों को काम पर लेकर चले जाते है. उन्होंने बताया पाठशाला में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा है. बच्चे मास्क पहनकर पाठशाला में आते हैं.
बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए पाठशाला में सैनिटाइज़ेशन का भी ध्यान रखा गया है. पाठशाला में पढ़ने वाली 10वीं की छात्रा आयशा डॉक्टर बनना चाहती हैं. आयशा का कहना है कि घर में एक फोन होने की वजह से पढ़ाई में दिक्कत हो रही थी. इसलिए मोहल्ला पाठशाला आना शुरू किया. यहां दीदी कोर्स पूरा कराने में मदद करती हैं. घर पर फोन मिलता है तब उसकी मदद ली जाती है. कुछ ऐसी ही परेशानी 6वीं क्लास के छात्र अंसार की है. 4 भाई 1 बहन के बीच अंसार के घर मे एक ही फोन हैं.
कंवरसिका गांव
नूह ज़िले के कंवरसिका गांव में 2 मोहल्ला पाठशालाएं चल रही हैं. पाठशालाओं में बतौर शिक्षादूत पढ़ाने वाली लतीमन खुद डिप्लोमा इन एडुकेशन की पढ़ाई कर रही हैं. लतीमन ने बताया कि यहां 10 अगस्त से पढ़ाने का काम कर रही हैं. कोरोना काल में स्कूल बंद होने के चलते बच्चे ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं. कई ऐसे बच्चे हैं जिनके पास स्मार्टफोन नहीं हैं या घर मे एक ही फोन है. इसलिए उन्हें ऑनलाइन क्लास अटेंड कर पाने में दिक्कत होती है. उन्होंने बताया कि कॉलेज बंद होने की वजह से हम भी घर पर हैं. इसलिए हमें लगा कि ये पाठशाला हमारे लिए और बच्चों के लिए भी फायदेमंद है. आगे का कोर्स पूरा करने की उनकी बतौर शिक्षादूत कोशिश रहती है.
लतीमन का कहना है कि यहां पढ़ाने से मिलनेवाला अनुभव उनके शिक्षक बनने पर काम आएगा. लतीमन की क्लास में पढ़ने वाली मोहिनी और शकील दोनों ही आठवीं क्लास के छात्र हैं. मोहिनी का कहना है कि फोन पर ऑनलाइन क्लास ले पाने में दिक्कत आ रही थी. शकील की समस्या भी मिलती जुलती है. शकील का कहना है कि घर पर एक ही फोन है और उनकी बहन भी ऑनलाइन क्लास पढ़ती है. इसलिए हमेशा ऑनलाइन पढ़ाई नहीं हो पाती थी. लेकिन मोहल्ला पाठशाला में पढ़ाई पूरी हो रही है.
गांव की दूसरी मोहल्ला पाठशाला की शिक्षादूत शहनाज खुद BA फर्स्ट ईयर की छात्रा हैं. शहनाज आस पड़ोस के बच्चे खासकर लड़कियों को बुलाकर पढ़ाती हैं. उनके इलाके में लड़कियों को ज़्यादा पढ़ने नहीं दिया जाता. इसलिए उनकी कोशिश रहती है कि कोरोना के चलते किसी की पढ़ाई न छूटे. लड़कियां पढ़ाती हैं तो घरवाले पूरे विश्वास के साथ भेजते हैं. शहनाज की इच्छा टीचर बनने की है. उनका कहना है मोहल्ला पाठशाला में पढ़ाने का उनका अनुभव आगे काम आएगा.
शैक्षणिक पिछड़ापन दूर करने की कवायद
नूह ज़िले में मोहल्ला पाठशालाओं के को-ऑर्डिनेटर सरकारी स्कूल के प्राध्यापक हैं. अशरफ ने बताया कि लॉकडाउन में होनेवाले शिक्षा के नुकसान की भरपाई के लिए मोहल्ला पाठशाला की शुरुआत की गई है. करीब 70 फीसदी बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था. यहां आमतौर पर तीसरी से लेकर बारहवीं तक के बच्चे को पढ़ाया जाता है. रोज़ाना 2 घन्टे की क्लास में कोर्स को पूरा कराने की कोशिश होती है. उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए अभी लगता नहीं कि स्कूल खुलेंगे. इसलिए मोहल्ला पाठशाला शैक्षिक पिछड़ापन दूर करने में मदद पहुंचाएगा.
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