नई दिल्लीः कोरोना संक्रमण के काल में वे मरीज भी परेशान हो रहे हैं जो अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित है. क्योंकि इस वक्त अधिकतर बड़े अस्पतालों में कोरोना संक्रमण के चलते ओपीडी जैसी सुविधाएं बंद हैं और इस वजह से जो मरीज इलाज के लिए ओपीडी में जाते हैं उनको मायूसी ही मिलती है.


ऐसी ही कुछ तस्वीर इस वक्त देश के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट यानी एम्स के बाहर दिख रही है. यहां पर देश के दूसरे हिस्सों से आए मरीज और परिजन इस आस में दिन गुजार रहे हैं की जल्द से जल्द इलाज मिले और वह वापस अपने घर तक जाएं.


दिल्ली के एम्स अस्पताल के बाहर ही दिन रात गुजार रहे वीरेंद्र कुमार अपने दो बच्चों के साथ मार्च महीने में पटना से दिल्ली आए थे. इनके बेटे को ब्रेन ट्यूमर बीमारी है और उसी के इलाज के लिए एम्स आए थे ऑपरेशन पहले हो चुका था लेकिन ऑपरेशन के बाद जांच के लिए और आगे के इलाज के लिए डॉक्टर ने मार्च की तारीख दी थी लेकिन दिल्ली आए तो लॉकडाउन हो गया और उसके बाद से फिलहाल एक-एक दिन अस्पताल के बाहर गुजार रहे हैं.


वीरेंद्र कुमार का कहना है कि वापस कैसे जाएं जब पता है कि बच्चे की तबीयत और उसका ट्यूमर लगातार बिगड़ रहा है? बिना जांच के पता भी नहीं चल सकता कि हालत कितनी गंभीर है?


इसी तरह से एम्स के बाहर ही बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले सुशील कुमार भी मिले जो रोजाना आते हैं और मायूस होकर वापस चले जाते हैं. सुशील कुमार को टीबी की बीमारी है और अपनी जांच करवाने के लिए बिहार के सीतामढ़ी से दिल्ली आए थे. उम्मीद थी कि जांच हो जाएगी और उपचार शुरू हो जाएगा तो वापस बिहार चले जाएंगे, लेकिन इसी बीच लॉकडाउन हो गया और अब लॉकडाउन के चलते एम्स की ओपीडी बंद है और इस वजह से घर से पैसा मांगा कर यहां दिन गुजार रहे हैं.


सुशील कुमार ने कहा, “कोरोना से तो जो हो रहा है वह हो ही रहा है लेकिन बाकी जो गंभीर बीमारियों से जुड़े हुए मरीज हैं उनकी जान तो मुफ्त में जा रही है क्योंकि उनको वक्त पर इलाज ही नहीं मिल रहा.”


इसी तरह की परेशानी बिहार के हाजीपुर के रहने वाले राम प्रकाश शर्मा और उनके बेटे अशोक की भी है. राम प्रकाश शर्मा अपने बेटे अशोक को लेकर उसका ब्रेन ट्यूमर का इलाज करवाने दिल्ली के एम्स अस्पताल आए थे. ऑपरेशन हो गया और उसके बाद राम प्रकाश शर्मा के मुताबिक बेटे की सिकाई होनी थी, जो 1 महीने चलनी थी. लेकिन इसी बीच लॉकडाउन हो गया और बेटे की सिकाई बीच में ही रुक गई. उसके बाद से लेकर अब तक सिकाई पूरी नहीं हो पाई है इसी वजह से सड़कों पर दिन गुजार रहे हैं. उम्मीद कर रहे हैं कि इलाज जल्द से जल्द पूरा हो जाए और अपने बेटे को लेकर वापस हाजीपुर जाएं.


इसके अलावा अगर बात की जाए उन लोगों की जो लोग खुद कोरोना संक्रमित हैं या जिनके अपने कोरोना संक्रमण के चलते एम्स में इलाज करवा रहे हैं. सुनीता के पति पिछले 10 दिनों से दिल्ली के एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती हैं. ट्रॉमा सेंटर को ही कोविड-19 का अस्पताल बनाया गया है. सुनीता का कहना है कि उनके पति की हालत क्या है उनको पता ही नहीं क्योंकि अस्पताल की तरफ से कोई जानकारी दी नहीं जा रही और उनका उनके पति से तब से ही कोई संपर्क हो नहीं रहा. जब उनको यहां लाया गया था तब भी नहीं बताया गया कि वह कोरोना संक्रमित हैं या नहीं. इसी वजह से रोजाना सुनीता अस्पताल तक आती है और मायूस होकर वापस चली जाती हैं क्योंकि उनको उनके पति के बारे में कोई जानकारी मिल ही नहीं रही.


यानी कुल मिलाकर कोरोना संक्रमण के चलते कोरोना से संक्रमित मरीजों को तो परेशानी हो ही रही है लेकिन उससे ज्यादा परेशानी अब उन मरीजों को हो रही है जो बाकी बीमारियों से पहले से ही पीड़ित है. वजह है कि कोरोना संक्रमण के चलते कई बड़े अस्पतालों में ओपीडी बंद कर दी गई है सिर्फ इमरजेंसी में इलाज हो रहा है. इस वजह से जो मरीज पहले से इलाज करवाते आ रहे थे और उनको अपनी गंभीर बीमारी में जांच या इलाज करवाना था वह फिलहाल नहीं हो पा रहा.


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