Raaj Ki Baat: कोई भी हालात हों. कोई भी बात हो. कोई भी मुद्दा हो. हिंदुस्तान में सियासत हर जगह अपनी जगह निकाल ही लेती है. चाहे वह कोरोना जैसी आपदा ही क्यों न हो. सियासत बीमारी पर भी होती है. उपायों पर भी होती है. पहले भी हमने ये सियासत धमाचौकड़ी देखी. अब टीका आने के बाद जब फिर से कोरोना की लहर आई है तो फिर चुनावी माहौल में सियासत तेज हो गई है. राज की बात में कोरोना पर राज-काज, राज-पाट और राज के रंग कैसे चल रहे हैं, इस पर कर लेते हैं कुछ बात.


कोरोना से ग्रसित होने से लेकर मौतों के मामले में महाराष्ट्र शुरू से सबसे आगे रहा. पहली लहर में भी और अब जब दूसरी लहर आई है तो भी. महाराष्ट्र की शिवसेना और कांग्रेस सरकार पर बीजेपी की केंद्रीय नेताओं से लेकर प्रदेश के नेताओं ने भी इसे शासन करने के तरीक़े और प्रशासनिक अक्षमता से जोड़ दिया. लगातार महाराष्ट्र सरकार कोरोना को नियंत्रित न करने के मामले में कठघरे में रही. अब फिर से महाराष्ट्र जब नंबर वन हो गया कोरोना संक्रमण और मौतों के मामले में तो मामले ने सियासी रंग ले लिया है. चुनावों के दौरान ईवीएम पर तो सवाल उठते ही थे, लेकिन अब कोरोना के आँकड़ों पर सियासी सूरमाओं ने सवाल खड़े कर दिए हैं.


महाराष्ट्र सीएम और शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे अब खुलकर सामने आ गए हैं. उन्होंने न सिर्फ कोरोना के आंकड़ों पर सवाल उठाए, बल्कि जिन राज्यों में चुनाव चल रहे हैं असम और पश्चिम बंगाल की रैलियों पर भी तंज कसा. उन्होंने कहा कि आंकड़े सुविधा के हिसाब से छिपाए और बढ़ाए जा रहे हैं और उसमें भी सियासत की जा रही है. उन्होंने जो राजनीतिक तेज कसा, वो तो सामने है, लेकिन राज की बात उनके लाकडाउन का इशारा करने वाले दांव पर है.


दरअसल, ये कटु सच्चाई है कि पूरे देश का उद्यमी, व्यापारी और रोज़ाना कमाई करने वाला मज़दूर और छोटे-मोटे काम कर आजीविका चलाने वाले सभी डरे हुए हैं. एक और लाकडाउन झेलने की स्थिति में अब देश नहीं है. अर्थव्यवस्था के लिए ये बहुत ही ख़तरनाक होगा. पुणे में आंशिक लाकडाउन उद्धव सरकार में हो ही गया है. अब उन्होंने पूरे राज्य में जब लाकडाउन का संकेत देने की बात कही तो हर वर्ग में बेचैनी बढ़ गई है. देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई में लाकडाउन के मायने बड़े व्यापक हैं.


सूत्रों का कहना है कि चुनाव वाले राज्यों में केस न बढ़ना और विपक्षी शासन वाले राज्यों में ज्यादा केस बढ़ने के मुद्दे को अब गैरबीजेपी दल तेज़ी से उठाएंगे. खासतौर से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश और बिहार को लेकर हमले तेज होंगे. साथ ही उद्धव के लाकडाउन के इशारे का मतलब भी इन आँकड़ों को लेकर जो सियासत हो रही है, उसके और बढ़ने के आसार बढ़ गए हैं.


ये तो रही सियासी दांव की बात, लेकिन सच्चाई ये भी है कि टीका आने के बाद जिस तरह से लापरवाही बढ़ी है, उसने ये मामले तो बढ़ा ही दिए हैं. इसको लेकर केंद्र सरकार भी सख्ती की बात तो कर रही है, लेकिन चुनावी राज्यों की रैलियों में उमड़ती भीड़ और बिना मास्क के रेलों की तस्वीरें एक विरोधाभास दिखा रही हैं. ऐसे में कोरोना के टीके लगने की रफ्तार बढ़ाने के साथ-साथ कोरोना के मामले यदि नहीं रुकते हैं तो मानकर चलिये कि अब इस पर सियासत और खुलकर होगी. जाहिर तौर पर इसका ख़ामियाज़ा सरकारें कम जनता ज्यादा भुगतेगी.


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