कोरोना काल में उम्मीद की किरण बना साबुन, जानें क्या है इसका इतिहास?
एक समय जिस साबुन को महामारी का कारण माना गया था, आज वही साबुन कोरोना से बचाव का सबसे बड़ा हथियार है.. वो महामारी जिसने दुनिया भर में लाखों लोगों की जान ले ली, उसके लिए 25 ग्राम का साबुन ही काफी.
पूरी दुनिया आज जब कोरोना संकट से जूझ रही है तो साबुन ही कोरोना से बचाव का एक सहारा दिखाई देता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कैसे ये कोरोना रक्षक आपके हाथों तक पहुंचा है? कैसे ये मामूली दिखने वाला साबुन कोरोना काल में खास है? जान बचाने वाले साबुन ने कैसे जन्म लिया? कब जन्म लिया? किसने इसका अविष्कार किया? और कैसे साबुन इंसानियत का सुपर सेवर बन गया?
6000 साल पुराना है साबुन का इतिहास 20 सेकेंड में कोरोना के वायरस को मार देने वाले साबुन का इतिहास लगभग 6000 साल पुराना है. ऐसा माना जाता है कि साबुन जिसे अंग्रेजी में सोप कहते हैं, इस शब्द की उत्पत्ति माउंट सैपो से हुई है. रोम स्थित माउंट सैपो नामक पहाड़ी पर देवताओं के लिए बलि दी जाती थी. बलि में बची हुई जानवरों की चर्बी और लकड़ी की राख का मिश्रण पहाड़ी के नीचे तिबर नदी में बह जाता था. कपड़े धोने वाली महिलाओं ने इसका प्रयोग किया और इसे देवताओं का उपहार माना. इस मिश्रण से ही साबुन की शुरूआत मानी गई.
साबुन के बारे में सबसे पहला लिखित दस्तावेज ईराक के गिरसू शहर में पाया गया. गिरसू में पाए जाने वाले क्यूनिफॉर्म शिलालेख पर साबुन का पहला लिखित वर्णन है. शिलालेख के मुताबिक ऊन को रंगने से जमने वाली लेनोनिन वसा को साफ करने में साबुन का इस्तेमाल होता था. रासायनिक पुरातत्वविद् मार्टिन लेवी के अनुसार, शिलालेख 4,500 साल पहले लिखा गया था.
आज हम जिस ठोस पदार्थ के रूप में साबुन को देखते हैं उसके प्रमाण 2800 साल पूर्व में मिलते हैं. करीब 2800 साल पहले बेबीलोनियन, मेसोपोटामियन और मिस्रवासियों ने वसा, तेल और नमक को मिलाकर साबुन बनाया. 2800 साल पहले साबुन का इस्तेमाल बर्तन और सफाई के लिए होता था, नहाने और हाथ धोने के लिए नहीं.
प्लेग महामारी की वजह माना गया था साबुन जिस साबुन को आज कोरोना के खिलाफ रक्षक के रूप में देखा जा रहा है, इतिहास में एक समय ऐसा भी था जब साबुन को प्लेग महामारी की वजह माना गया. 15 वीं शताब्दी के आसपास यूरोप में सार्वजनिक स्नानघर होते थे. जिसमें साबुन के घोल का इस्तेमाल नहाने के लिए होता था. चूहों से प्लेग की बीमारी फैली. लोगों ने माना पब्लिक बाथरूम का साबुन जिम्मेदार है. साबुन शरीर में लगाना बंद कर दिया गया. लेकिन इस समय भी लोगों ने कपड़े धोने के लिए साबुन का प्रयोग किया.
17 वीं शताब्दी आते बाथिंग फिर से प्रचलित हुई और लोगों ने साबुन बनाने के नए-नए तरीके खोजे. घर की महिलाओं के लिए यह एक नियमित काम बन गया और यह एक उद्योग की तरह फलने-फूलने लगा.
19वीं शताब्दी में साबुन का व्यापार शुरू हुआ 19 वीं शताब्दी में अमेरिका के लोगों ने सोचा कि वो इससे पैसे कमा सकते हैं. उन्होंने किसानों से जानवरों की चर्बी और लकड़ी की राख खरीदी. उन्होंने साबुन बनाए और सेल्समैन को लोगों के पास भेजा. जल्दी ही सारे जनरल स्टोर पर साबुन पहुंचा.
इस तरह से साबुन अपनी यात्रा पूरी करके आपके हाथों तक पहुंचा. अगली बार आप जब भी कोरोना के खिलाफ साबुन के सहारे जंग लड़ें तो एक चीज जरूर याद रखें कि आपके हाथों में शरीर रक्षा का 6000 साल पुराना इतिहास है.