कोरोना की दूसरी लहर के कहर को देखते हुए कई राज्य सरकारें केंद्र से गुहार लगा रही हैं कि वैक्सीन लगवाने की उम्र सीमा की बंदिश खत्म की जाये,ताकि कम वक्त में अधिकतम लोगों का टीकाकरण कर संक्रमण के फैलाव को रोक जा सके. लेकिन सवाल है कि केंद्र सरकार क्या जानबूझकर उनकी बात को अनसुना कर रही है या फिर वाकई उसकी भी अपनी मजबूरियां हैं? महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र के साथ ही दिल्ली और राजस्थान की सरकार भी केंद्र को लिख चुकी हैं कि 25 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका लगाने की अनुमति दी जाये. दिल्ली सरकार ने तो साफ कह डाला है कि अन्य देशों को टीके का निर्यात रोककर पहले अपना घर संभाला जाये.


उम्र की बंदिश लगाने के पीछे केंद्र सरकार के अपने तर्क हैं और कुछ हद तक वे सही भी हैं.सभी उम्र वर्ग को खुश करने के चक्कर में अगर वे लोग छूट गये जो वाकई जरूरतमंद हैं,तो फिर इस टीकाकरण अभियान का कोई मतलब ही नहीं रह जायेगा. अगर सरकार अभी ही 18 साल से अधिक उम्र वालों को वैक्सीन की इजाजत देती है,तो पता लगा कि उन्होंने तो तुरंत लगवा ली और ज्यादा उम्र वाले पीछे छूट गये.अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक  इस महामारी ने 45 साल से ज्यादा उम्र वालों को ही अपनी चपेट में लिया है.


लिहाज़ा केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के इस तर्क में दम नज़र आता है कि "दुनिया में हर जगह ज़रूरत के आधार पर पहले टीकाकरण किया गया है, ना कि लोगों की चाहत के आधार पर."इसके लिए उन्होंने दुनिया के कई देशों मसलन ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण भी दिया और बताया कि हर देश ने चरणबद्ध तरीक़े से उम्र सीमा के साथ टीकाकरण अभियान की शुरुआत की.


लेकिन अब कुछ राज्यों के साथ ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सुझाव दिया है कि 18 साल से ज्यादा उम्र वाले सभी लोगों को टीका लगाया जाये.उनका तर्क है कि पहली लहर के मुक़ाबले अब कोरोना तेज़ी से फैल रहा है. सीरो-सर्वे में पता चला कि कुछ इलाक़ों में लोगों में कोरोना के ख़िलाफ़ एंटी बॉडी ज़्यादा हैं और कुछ इलाक़ों में कम.जहाँ लोगों में एंटी बॉडी कम है, वहाँ हॉट स्पॉट बनने का ख़तरा ज़्यादा है. इस वजह से उन इलाक़ों में सभी आयु वर्ग के लिए वैक्सीनेशन की इजाज़त सरकार को अब देनी चाहिए. इससे दूसरी लहर पर क़ाबू जल्द पाया जा सकता है.


लेकिन इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कोविड-19 की देसी वैक्सीन रिकॉर्ड समय में तैयार हुई है. इसके कुछ साइड इफे़क्ट भी हो सकते हैं जो अभी पूरी तरह से सामने नहीं आये हैं.इसलिए फिलहाल पोलियो ड्रॉप्स की तरह घर-घर जा कर या फिर रेलवे स्टेशन पर बूथ बना कर इसे नहीं दिया जा सकता. यही वजह है कि भारत सरकार लोगों के सहयोग पर ही टीकाकरण के लिए निर्भर है.भारत की आबादी के लिहाज से फ़िलहाल सरकार का टारगेट  80 करोड़ लोगों के टीकाकरण का है.इसके लिए 160 करोड़ डोज़ की ज़रुरत होगी.सभी लोगों को टीका लगवाने के लिए प्राइवेट सेक्टर की मदद भी चाहिए होगी. उम्र सीमा हटा देने पर केंद्र सरकार के लिए मॉनिटरिंग में दिक़्क़त आ सकती है.


चूंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता देश है. इस वजह से भारत की अपनी कुछ वैश्विक ज़िम्मेदारियाँ भी हैं. भारत कोवैक्स प्रक्रिया(ज़रुरतमंदों के लिए वैक्सीन पहले) में हिस्सेदार है.इसलिए वह इससे पीछे नहीं हट सकता. वैसे फ़िलहाल दो तरह की वैक्सीन ही देश में उपलब्ध है लेकिन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के मुताबिक छह और वैक्सीन को भारत में अनुमति दिए जाने की चर्चा चल रही है.उन्हें मंजूरी मिलते ही राज्यों को कम वैक्सीन मिलने का रोना भी खत्म हो जाएगा और तब सरकार उम्र की सीमा भी कम कर देगी लेकिन इसमें दो महीने का वक़्त लग सकता है.