नई दिल्ली: कोरोना वायरस देशभर में महामारी बनकर ना फैल जाए उससे पहले ही रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत डीआरडीओ ने युद्धस्तर पर तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए डीआरडीओ ने खास 'फुलबॉडी डिसइंफेक्टेंट चैंबर' तैयार किया है जो शरीर के ऊपरी हिस्से पर वायरस को खत्म कर देता है. गाजियाबाद स्थित एक प्राईवेट कंपनी जो पहले देश को बायोलॉजिकल हमले से बचाने में देश की सेनाओं को मदद कर रही थी उसे इन खास चैंबर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. एबीपी न्यूज की टीम ने खुद इस प्लांट में जाकर देखा कि आखिर ये 'वॉकथ्रू चैंबर' कैसे कोविड-19 को खत्म करने में सहायक है.
करीब छह फीट लंबा और दस फीट ऊंचे इस डिसइंफेक्टेंट चैंबर में पाइप लगे हैं. छोटी टनल-नुमा इस चैंबर में आप जब प्रवेश करते हैं तो पाइप से पानी और हाईपो-सोडियम क्लोराइड की फुहार आपके पूरी शरीर पर चारों तरफ से छिड़काव करने लगती हैं. बॉडी को 25 सेंकेड तक इसी चैंबर में 360 डिग्री में घूमना होती है ताकि सिर से लेकर पांव तक आपका पूरा शरीर कीटाणु-रहित हो जाए यानि ये चैंबर कोरोना वायरस को पूरी तरह से धो डालता है.
डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानि डीआरडीओ की अहमदनगर (महाराष्ट्र) स्थित व्हीकल रिसर्च लैब यानि वीआरडीई ने इस चैंबर को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए डिजाइन किया है.डीआरडीओ ने इस चैंबर के बल्क-प्रोडेक्शन के लिए राजधानी दिल्ली के करीब गाजियाबाद की डीएच लिमिटेड नाम की कंपनी को चुना है. ताकि उन जगह जहां पर लोगों की भीड़ इत्यादि होने की संभावना ज्यादा होती है वहां इन्हें लगाया जा सके.
जानकारी के मुताबिक, शुरूआत में इन चैंबर्स को अस्पताल, सरकारी ऑफिस, सेना के कैंप इत्यादि में लगाने की तैयारी है, ताकि कोई भी आदमी या सैनिक यहां आए तो वो पूरी तरह से डिसइंफेक्टेंट होकर ही अंदर दाखिल हो. यानि कोरोना वायरस को पूरी तरह से धोकर ही अंदर आए और कोरोना वायरस अंदर दाखिल ना हो सके.
करीब 96 घंटे यानि चार दिनों के अंदर डीआरडीओ ने डीएच कंपनी के साथ मिलकर इस चैंबर के दो वर्चन तैयार किए हैं. अपग्रेडेड वर्जन में चैंबर के साथ एक सेंसर लगा वॉशबेसिन है जिसमें लिक्विड सोप ऐर सैनेटाइजर भी है. हाथ साफ करने के बाद पैर से इस चैंबर को स्टार्ट किया जा सकता है. यानि आपको अंदर जाने के लिए चैंबर के बाहर लगे जैक को पैर से दबाना है और अंदर जाते ही पाइप से हल्की हल्की फुहार शुरू हो जाती है.
डीएच लिमिटेड कंपनी के सीईओ, प्रदीप दास के मुताबिक, इस चैंबर में करीब साढ़े सात सौ लीटर डिसइंफेक्टेंट कैमिकल और पानी आ सकता है. एक बार भरने से इससे 700-800 लोगों को डिसइंफेक्टेंट किया जा सकता है. इस चैंबर में दो छोटे छोटे इंजन लगे हैं जिससे पाइप से बौछार की जाती है. इस चैंबर की कीमत 4-5 लाख रूपये है. लेकिन इसके दूसरे वर्जन की कीमत करीब एक से दो लाख रूपये हैं. इस दूसरे वर्जन को डीएच कंपनी आम लोगों के लिए तैयार कर रही है ताकि मॉल या फिर अपार्टमेंट और हाउसिंग सोसायटी में लगाया जा सके.
दरअसल, डीची कंपनी एक लंबे अरसे से डीआरडीओ और सेना के लिए एनबीसी चैंबर्स यानि न्युक्लिर, बायोलॉजिकल और कैमिकल युद्ध के दौरान सैनिकों को सुरक्षित रखने वाले एनक्लोजर तैयार करती आई है. इसके अलावा मॉडर्न-वॉरफेयर के लिए जैमर-रहित चैंबर भी बनाती है ताकि सेनाओं के कम्युनिकेशन सिस्टम को दुश्मन जाम ना कर सके.
लेकिन प्रदीप दास ने एबीपी न्यूज से खास बातचीत में बताया कि लॉकडाउन के दौरान काम करना एक बड़ी चुनौती साबित हुई. क्योंकि ना केवल सीमित इंजीनियर्स और वर्कर्स के साथ उन्होनें काम किया बल्कि पंप और चैंबर बनाने के लिए मैटेरियल मिलने में भी उन्हें खासी दिकक्त आई. क्योंकि दुकान, बाजार और सिविल प्लांट सभी बंद हैं. लेकिन कोविड-19 के खिलाफ जंग में लड़ने के लिए उनकी कंपनी पूरी तरह से डीआरडीओ और सरकार के साथ खड़ी है. इसीलिए दिन-रात एककर वे इन खास डिसइंफेक्टेंट चैंबर्स को बना रहे हैं. क्योंकि प्लांट में सीमित साधन होनें के चलते अब इस डिजाइन और तकनीक को वे दो और कंपनियों से संपर्क में हैं ताकी दक्षिण भारत के लिए भी इन चैंबर्स को सप्लाई किया जा सके.
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