कोरोना मरीजों के लिए 'संजीवनी बूटी' साबित होगी डीआरडीओ की ये दवा ?
सकी खासियत यह है कि इसे एक पाउडर के रूप में तैयार किया गया है, जिसे पानी में घोलकर लेने से वायरस पर जल्द काबू पाने का दावा किया गया है. डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि की सराहना इसलिए भी की जानी चाहिए कि जब तीसरी लहर का असर बच्चों पर ज्यादा होने की आशंका जताई जा रही है.
नई दिल्ली: कोरोना महामारी के भयावह संकट के बीच रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने एक ऐसी दवा तैयार की है, जो भारत के लिए उम्मीद की एक नई किरण लेकर आई है. देश के ड्रग कंट्रोलर ने इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है. अब कोरोना से लड़ने के लिए देश में ही बनी दो वैक्सीन के अलावा यह ओरल खुराक भी उपलब्ध होगी.
इसकी खासियत यह है कि इसे एक पाउडर के रूप में तैयार किया गया है, जिसे पानी में घोलकर लेने से वायरस पर जल्द काबू पाने का दावा किया गया है. डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि की सराहना इसलिए भी की जानी चाहिए कि जब तीसरी लहर का असर बच्चों पर ज्यादा होने की आशंका जताई जा रही है, ऐसे वक्त में यह दवाई उनके लिए किसी 'संजीवनी बूटी' से कम नहीं साबित होगी. चूंकि बच्चों के लिए अभी तक कोरोना की कोई वैक्सीन नहीं आई है, लिहाज़ा ये दवा ही उनकी जिंदगी बचाने में 'संकटमोचक' बनेगी.
इस दवा को फिलहाल 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज यानी (2-डीजी) नाम दिया गया है. डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायड साइंसेस (INMAS) और हैदराबाद सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (CCMB) के साथ मिलकर तैयार की गई इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल में कई फायदे सामने आए हैं. मसलन, कोरोना संक्रमण वाले जिस मरीज को यह दवा दी गई, उसकी ऑक्सीजन पर रहने की निर्भरता दूसरों के मुकाबले जल्द खत्म हो गई. यानी ये दवा पीने के बाद तीसरे दिन ही उन्हें ऑक्सीजन देने की जरूरत नहीं पड़ी और ट्रायल के दौरान ऐसे मरीजों का आंकड़ा 42 फीसदी रहा, जिसे सफल माना गया.
अस्पताल में मौजूद जिन मरीजों को ये दवा दी गई, उनकी रिकवरी भी तेजी से हुई. कुल मिलाकर नतीजा यह निकला कि इस दवा के इस्तेमाल से मरीजों की कोरोना रिपोर्ट बाकी मरीजों की तुलना में जल्दी निगेटिव हुई है. यानी, वो जल्दी ठीक हुए हैं. डीआरडीओ के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार इस दवा को बनाने का जिम्मा हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डी लेबोराट्रीज को दिया गया है.
हालांकि वैज्ञानिकों ने इस दवा को बनाने के प्रयोग की शुरुआत पिछले साल आई कोरोना की पहली लहर के वक़्त ही कर दी थी. अप्रैल 2020 में INMAS-DRDO वैज्ञानिकों ने हैदराबाद के सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) की मदद से अपनी प्रयोगशाला में कई प्रयोग करने के बाद पाया कि यह अणु SARS-CoV-2 वायरस के खिलाफ प्रभावी ढंग से काम करता है और वायरस के फैलाव को रोकता है. इन नतीजों के आधार पर ही देश के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने मई, 2020 में इस दवा के दूसरे चरण के ट्रायल करने की मंजूरी दी थी. तब देश के विभिन्न राज्यों के अस्पतालों में इस दवा का ट्रायल दो चरणों में किया गया.
पहले चरण में 6 और दूसरे चरण में 11 अस्पतालों में 110 मरीजों पर पिछले साल मई से अक्टूबर के बीच इसका ट्रायल किया गया. जबकि तीसरे चरण का ट्रायल दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच देश के 27 अस्पतालों में 220 मरीजों पर किया गया. ये दिल्ली, यूपी, बंगाल, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के अस्पतालों में किए गए. वैज्ञानिकों ने पाया कि ट्रायल में शामिल मरीज दूसरे मरीजों की तुलना में ढाई दिन पहले ही ठीक हो गए.अच्छी बात ये भी रही कि यही ट्रेंड 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों में भी देखा गया.
डीआरडीओ के वैज्ञानिक सुधीर चंदाना के मुताबिक, "पानी में घोलकर लेने के बाद ये दवा संक्रमित कोशिकाओं में जमा हो जाती है और वायरल सिंथेसिस और एनर्जी प्रोडक्शन कर वायरस को और अधिक बढ़ने से रोकती है. खास बात ये है कि ये वायरस से संक्रमित कोशिकाओं की पहचान करती है और फिर उस पर अपना असर दिखाती है,जिससे मरीज का शरीर तेजी से रिकवर होने लगता है."