कोरोना संकट में विदेशी छात्रों को लुभाने की कोशिश, दाखिले के नियमों में ढील दे रहे हैं नामी संस्थान
कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया के शिक्षा क्षेत्र को प्रभावित किया है. भारत के अलावा दुनिया के दूसरे मुल्कों में भी परीक्षाएं पूरी नहीं हो सकी हैं. इसको देखते हुए कई नामी अंतरराष्ट्रीय संस्थान एमिशन के नियमों में लचीलापन दिखा रहे हैं.
नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड, व्हॉर्टन, केलौग और हार्वर्ड जैसी वो संस्थान जहां जाना किसी भी छात्र के लिए सपना होता है, उनके सामने भी कोरोना संकट के दौरान छात्रों के एडमिशन का संकट खड़ा हो रहा है. इसी के चलते कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने अगले साल के शैक्षणिक कैलेंडर में छात्रों को जीमैट स्कोर की अनिवार्यताओं में रियायत देने जैसे कदम उठाना शुरु किया है.
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और लंदन बिजनेस स्कूल जैसे संस्थान इस बात की छूट दे रहे हैं कि छात्र चाहें तो बाद में भी अपना जीमैट स्कोर दे सकते हैं. सीआईआई में शिक्षा और इनोवेशन मामलों की प्रमुख शालिनि शर्मा कहती हैं कि कोरोना ने सबसे अधिक जिन क्षेत्रों को प्रभावित किया है तो उनमें शिक्षा भी है. भारत समेत कई देशों में परीक्षाएं भी पूरी नहीं हो सकीं. लिहाजा अंतरराष्ट्रीय शिक्षा प्रतिष्ठान भी इस बात को समझते हैं कि अनेक देशों में अधिकतर छात्र फिलहाल जीमैट जैसी कोई परीक्षा देने की स्थिति में नहीं है. इसीलिए वो भी दाखिले की प्रक्रिया में लचीलापन दिखा रही हैं.
हालांकि जीमैट कोई अकेला ऐसे मापदंड नहीं होता जिसके आधार पर दुनिया के बड़े बीजनेस स्कूल अपने यहां अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देते हैं. इसके लिए आवेदन से लेकर ग्रुप डिस्कशन समेत कई पैमानों पर उन्हें आंका जाता है. शालिनि शर्मा के मुताबिक जीमैट की परीक्षा भी अब ऑनलाइन हो चुकी है जिसे छात्रा अपनी सुविधा से कभी भी दे सकते हैं. लेकिन कोरोना संकट के दौरान यह कहना मुश्किल है कि कितने छात्र इस तरह की परीक्षाएं देने की स्थिति में हैं.
अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों के दाखिलों में लचीनापन दिखाने की एक बड़ी वजह कमाई की चिंता भी है. ब्रिटेन में भारतीय छात्रों की संस्था नेशनल इंडियन स्टूडेंट्स एंड अलुमनी असोसिएशन की अध्यक्ष और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की पूर्व छात्र सनम अरोड़ा कहती हैं कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में विदेशी छात्र खासा बड़ा योगदान करते हैं. ब्रिटेन के अपने विश्वविद्यालयों का अनुमान है कि अगर कोरोना संकट के कारण विदेशी छात्र नहीं आते हैं तो इससे ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को करीब 7 अरब पाउंड यानी 648 अरब रुपये का नुकसान होगा. यह ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकता है.
दरअसल, भारतीय छात्र दुनिया भर के बड़े संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं. केंद्र सरकार की तरफ से दो साल पहले संसद में दिए आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में करीब 7.5 लाख भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ते हैं. जाहिर है इतनी बड़ी संख्या महंगी शिक्षा वाले विदेशी संस्थानों के लिए खासी अहमियत रखती है. भारत से पढ़ने जाने वाले छात्रों की बड़ी संख्या अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी आदि देशों में जाती है.
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