कोरोना संकट: ताबूत वाला मददगार, मौत की वजह कोरोना ही क्यों न हो अंतिम यात्रा सम्मान के साथ होनी चाहिए
शाहीन कासमी का कहना है कि इस पहल से उनकी सिर्फ़ एक कोशिश है कि किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार सम्मानित तरीक़े से किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच कोरोना से होने वाली मौत एक ओर जहां चिंता का विषय है, तो वहीं शवों के अंतिम संस्कार के प्रबंधन को लेकर भी कई सवाल खड़े होते रहे हैं. कोरोना की वजह से हो रही मौत के बाद एक शव को जिस तरह से प्लास्टिक बैग में लपेटकर दफ़नाया जाता है, कई बार शव के साथ बुरा व्यवहार भी होता है. इसी को देखते हुए दिल्ली के एक शख़्स ने पीड़ित परिवार वालों को मुफ़्त में ताबूत बनाकर देने का काम शुरू कर दिया है. शाहीन कासमी नाम के इस शख्स का कहना है कि चाहे किसी की मौत कोरोना से ही क्यों ना हुई हो, लेकिन हर किसी का अंतिम सफ़र सम्मान के साथ होना चाहिए.
दिल्ली के शाहीन बाग इलाक़े में रहने वाले शाहीन कासमी ने बताया, "मेरे एक दोस्त की बहन की मौत कोरोना की वजह से हो गई थी. जब उनकी अंतिम क्रिया में हिस्सा लेने मैं क़ब्रिस्तान पंहुचा तो देखा कि कैसे एक शव को प्लास्टिक बैग में लपेटकर रस्सियों के सहारे 15 फ़ीट गहरे गढ्ढे में फेंक दिया जाता है. फिर कई मन मिट्टी उसके ऊपर डाल दी जाती है. ये देखकर मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और दुख हुआ. मुझे लगा कि किसी भी व्यक्ति को मौत के बाद इस तरह से उसके आखिरी सफ़र पर नहीं भेजना चाहिए."
इसके बाद शाहीन कासमी ने अपने घर पर ही ताबूत बनाने की ठानी. दिल्ली के अलग-अलग बाजारों से लकड़ी जमा कर कुछ कारीगरों की मदद से ताबूत बनाने का काम उन्होंने शुरू किया. पिछले क़रीब 1 महीने से शाहीन ताबूत बनाने का काम कर रहे हैं और अब तक करीब 99 ताबूत बना चुके हैं. इन ताबूतों को क़ब्रिस्तान तक पंहुचाने का खर्च वो खुद ही उठाते हैं.
शाहीन के मुताबिक, "एक ताबूत को बनाने का खर्च करीब 2700 रुपये आता है. लेकिन वो लोगों से पैसे नहीं मांगते. जो अपनी इच्छा से पैसा देना चाहे तो दे देता है और जो नहीं दे सकता उसे मुफ़्त में ही ये ताबूत दे दिये जाते हैं. बहुत से लोग अब हमारे बारे जानते हैं, तो हमसे संपर्क कर लेते हैं. कब्रिस्तान पर हमारा एक व्यक्ति मौजूद होता है, उनसे भी लोग सम्पर्क कर लेते हैं. रोज़ करीब 5-10 ताबूत बना लेते हैं.
शाहीन कासमी का कहना है कि इस पहल से उनकी सिर्फ़ एक कोशिश है कि किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार सम्मानित तरीक़े से किया जाना चाहिए. हर इंसान ज़िंदा रहते जिस सम्मान का हकदार है, मौत के बाद भी उसे वही सम्मान मिलना चाहिए, यही इंसानियत है.
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