कोरोना संकट: अमेरिका में क्रूड के दाम शून्य डॉलर प्रति बैरल से नीचे पहुंचे, जानें भारत पर क्या होगा असर?
दुनियाभर में तेल का उत्पादन बढ़ रहा है लेकिन मांग में कमी की वजह से दाम गिरे हैं. दुनियाभर में औद्योगिक गतिविधियां बंद हो चुकी है जिसका असर कच्चा तेल की कीमतों पर पड़ रहा है.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी संकट के बीच कच्चे तेल की कीमत में इतिहास की सबसे बड़े गिरावट दर्ज की गई. अमेरिका में कच्चे तेल की कीमत बोतलबंद पानी से भी कम हो गई है. कच्चे तेल की कीमत शून्य डॉलर के नीचे चली गई. वायदा बाजार में कच्चे तेल की कीमत -37.56 डॉलर प्रति बैरल दर्ज की गई. महज तीन महीने में तेल की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई है.
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट क्यों?
इस सबके बीच बड़ा सवाल है कि आखिर कच्चे तेल की कीमतों में इतनी गिरावट क्यों हो रही है? दरअसल कोरोना वायरस की वजह से दुनिया में यात्रा पर पाबंदी है जिससे कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई है. सऊदी अरब और रूस के बीच प्राइस वॉर से भी मांग में कमी आई है.
दुनियाभर में तेल का उत्पादन बढ़ रहा है लेकिन मांग में कमी की वजह से दाम गिरे हैं. दुनियाभर में औद्योगिक गतिविधियां बंद हो चुकी है जिसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ रहा है.
Coronavirus: अमेरिका में पिछले 24 घंटे में मरे 1900 से ज्यादा लोग, अबतक 42 हजार की मौत
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट, भारत की डगमगाती हुई अर्थव्यवस्था को संभाल सकती है. भारत अपनी जरूरत का लगभग 80 फीसदी से ज्यादा तेल आयात करता है. जिसके लिए उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा डॉलर में कीमत चुकानी पड़ती है. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार को ज्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़ेंगी.
भारत पर तेल सस्ता होने का असर
कच्चे तेल की भंडारण क्षमता बढ़ाकर भविष्य में लोगों को लाभ दिया जा सकता है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में गिरावट हो सकती है. मंहगाई दर में कमी हो सकती है. चालू खाता घाटा कम होगा. कच्चे तेल सस्ता होने से भारत की विकास दर बढ़ने का भी अनुमान है.
बता दें कि अमेरिका कनाडा, साउथ कोरिया और भारत समेत 44 देशों को कच्चा तेल निर्यात करता है. आंकड़ों के मुताबिक 2018 में कच्चे तेल और गैस से अमेरिका के पास 181 बिलियन डॉलर का राजस्व इकट्ठा हुआ था. तेल की मांग में कमी की वजह से अमेरिका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा सकती है. अमेरिकी तेल कंपनियों पर कर्ज के बोझ से बैंकिंग और फाईनेंशियल सेक्टर के लिए भी खतरा मंडरा रहा है.