नई दिल्ली: कोरोना वायरस को लेकर जहां एक ओर देशभर में दहशत का माहौल है तो वहीं इसकी वजह से दिहाड़ी मजदूरों पर अब रोजी-रोटी कमाने के लाले पड़ गए हैं. पिछले कुछ दिनों से उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वजह से अब उनके घर में खाना तक नहीं पक रहा है.


दिल्ली के चांदन हुल्ला गांव में हजारों की संख्या में ऐसे दिहाड़ी मजदूर रहते हैं जो बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश के मूल निवासी हैं और देश की राजधानी में रोजी रोटी कमाने के चलते आए थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से वे भूखमरी की ओर बढ़ते जा रहे हैं.  कोरोना वायरस के डर से दिल्ली और पूरा देश लॉकडाउन है. काम धंधा पहले ही बंद हो चुका है. अब उनके हालात ऐसे हैं कि दिन में बमुश्किल एक बार चूल्हा जल रहा है. वह भी जरूरी नहीं कि जब चूल्हा जले तो खाना ही पके. हो सकता है कि चाय से ही गुजारा करना पड़े.


न काम मिल रहा है न उधार


चांदन हुल्ला गांव के गुर्जर मोहल्ला में एक नहीं बल्कि कई ऐसे मकान बने हैं जिनमें दिहाड़ी मजदूर बतौर किराएदार रहते हैं. एक कमरा लगभग ₹2500  महीना किराए पर दिया जाता है जिसमें कम से कम चार लोगों का परिवार रहता है और एक मकान में ऊपर और नीचे मिलाकर 20 से 25 कमरे होते हैं. लगभग 100 लोग एक मकान में रह रहे हैं.  इन लोगों को अपना तो काम मिला है और ना ही उधार इनका कहना है कि 21 तारीख से काम बंद हो चुका है मजदूरी मिल नहीं रही है. जो पैसा इन लोगों का बनता था, वह भी अभी ठेकेदार पर रुका हुआ है.


ठेकेदार का कहना है कि उसके पास अभी खुद पैसा नहीं आ रहा है, इन्हें कैसे दें? पहले जो दुकान पर उधार मिल जाया करता था, अब उधार भी नहीं मिल पा रहा है क्योंकि दुकानदार का कहना है कि जब तुम काम नहीं करोगे कमाओगे नहीं तो उधार कैसे चुकाओगे?


सरकारी मदद भी नहीं मिल रही है


चांदन हुल्ला के गुर्जर मोहल्ला में किराए पर रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों का आरोप है कि उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है. उनका कहना है कि दिल्ली सरकार हो या केंद्र सरकार, बेशक गरीबों तक मदद पहुंचाने की बात कर रही है लेकिन जमीनी स्तर पर वह मदद नहीं पहुंच पा रही है. कहीं पर अगर खाने पीने की कोई वस्तु बांटी भी जाती है तो वह पर्याप्त मात्रा में नहीं होती, जिस वजह से हर किसी व्यक्ति को वह चीज उपलब्ध नहीं हो पा रही है.


पुलिस नहीं होने देती एकत्र, कैसे लेने जाएं मदद


यहां रहने वाले इन दिहाड़ी मजदूरों की एक समस्या यह भी है कि अगर किसी तरह की कोई मदद यहां तक पहुंचाई जा रही है तो वह भी इन्हें नहीं मिल पा रही है. कारण है कि लॉकडाउन की वजह से पुलिस और प्रशासन इन लोगों को घर से बाहर नहीं निकलने देता है.


ये जैसे तैसे अगर मेन रोड पर पहुंच भी जाते हैं, तो भीड़ होने की वजह से पुलिस लोगों को हटा देती है. उन्हें कभी हल्का बल प्रयोग करके वापस लौटा देती है. यही बोलते हुए कि ज्यादा लोगों के एक साथ एकत्र होने पर कोरोना वायरस फैलने का खतरा है. ऐसे में लोग कैसे अपने जीवन को आगे बढ़ाएं?


बड़ी संख्या में लोग पैदल ही गांव के लिए निकले


यहां रहने वाले इन दिहाड़ी मजदूरों का कहना है कि इनके साथ दिल्ली में रह रहे इन्हीं के परिचित, गांव के रिश्तेदार आदि में से बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो एक-दो दिन पहले ही पैदल अपने अपने गांव के लिए रवाना हो चुके हैं.


उनका कहना है कि यहां पर न तो काम मिल रहा है न ही खाने का कोई जुगाड़ बन पा रहा है. ऐसे में यहां भूखे रहने से अच्छा है कि अपने गांव पहुंचा जाए क्योंकि यहां पर बीमारी का भी खतरा है. घरवालों से भी दूर हैं. यही वजह है कि लगभग 400 से 500 की संख्या में लोग पैदल ही अपने अपने गांव के लिए यहां से रवाना हो चुके हैं. अभी वह कहां तक पहुंचे हैं यह जानकारी नहीं मिल पाई.


अगर खाना नहीं खिला सकते तो कम से कम हमें हमारे गांव तक पहुंचा दो


यहां रहने वाले इन लोगों का कहना है कि अगर सरकार हमें खाना नहीं खिला सकती, मुसीबत के समय में हमें रोजी-रोटी का साधन उपलब्ध नहीं करा सकती है तो कम से कम इतना कर दे कि हमें हमारे गांव तक पहुंचा दें. जिससे कि हम अपने अन्य परिजनों के साथ ही रहे. मुसीबत की इस घड़ी में अपने घर वालों के साथ रहें, ताकि भविष्य में जो भी हो मन में इस बात का मलाल न रहे कि हम अपने बुरे समय में अपने घर वालों के साथ नहीं थे.