Exclusive: कोरोना की दूसरी लहर के दौरान क्यों हुई इतनी मौतें और कौन से रहे सबसे बड़े फैक्टर?
तीन तरह के डेटा को हासिल किया- जब वो कोरोना मरीज अस्पताल में एडमिट थे. जब वो जिंदगी हार रहे थे उसके ठीक पहले की रिपोर्ट. तीसरी हॉस्पिटलाइजेशन की मिड-पिरियड रिपोर्ट.
कोरोना की दूसरी लहर ने देश के ऊपर ऐसा कहर ढहाया जिसकी कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी. इस लहर ने देश को तबाह करके रख दिया. परिवार खत्म हो गए और घर उजड़ गए. लोग बर्बाद हो गए और जीवन की सारी जमा पूंजी लगाकर भी अपनों को बचा नहीं पाए. ऐसे में सवाल है कि दूसरी लहर का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत में ही क्यों दिखा ? दूसरी लहर में इतने ज्यादा लोगों की मौत क्यों हुई ? वेरिएंट खतरनाक था या लोगों ने लापरवाही से जान गंवाई ? लापरवाही लोगों की थी या फिर सिस्टम की ?
इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए एबीपी न्यूज के संवाददाता इंद्रजीत राय ने एक स्टडी की. टेलीविजन पर इस तरह की स्टडी पहली बार की गई है. हमने कोविड से जान गंवाने वाले 100 लोगों पर एक स्टडी की. 100 मरीजों के मेडिकल रिकॉर्ड का विश्लेषण किया. रिसर्च में मौत की क्लीनिकल वजह को तलाशा. मौत के बीच समानता तलाशने की कोशिश की. इस रिसर्च में हमारे साथ देश के 5 जाने माने डॉक्टर भी शामिल हुए. हमारे साथ इस स्डटी में मरीजों के मेडिकल डेटा को समझने और उसका इंटरप्रेटेशन करने में ये डाक्टर साथ थे..
1-डॉक्टर अंकुश गर्ग, MBBS, MD 2-डॉक्टर नवदीप कुमार, MBBS, MD 3-डॉक्टर सुमन, MBBS, MD 4-डॉक्टर डी के गुप्ता, MBBS, MD 5-डॉक्टर रश्मि गुप्ता, MBBS, MD
32 फैक्टर पर की गई स्टडी
स्टडी में सबसे महत्वपूर्ण थे, वो क्राइटिरिया, जिनके आधार पर ये रिसर्च होनी थी. इसलिए अपनी स्टडी में कुछ विशेष आधारों का ख्याल रखा. जैसे- हॉस्पिटल में दाखिले के वक्त मरीज का ऑक्सीजन लेवल. संक्रमण के कितने दिन बाद अस्पताल में दाखिला हुआ. एडमिशन के वक्त बीपी, टेंपरेचर और पल्स रेट. मरीज का BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स. मरीज की पुरानी मेडिकल हिस्ट्री. क्या मरीज को वैक्सीन लगी थी? कोविड से लड़ने की इच्छा शक्ति कैसी थी?
डायबिटीज मौत का बड़ा कारण
इन्हीं आधारों पर जब डॉक्टरों के साथ मिलकर रिसर्च की तो बहुत से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. ये रिसर्च कोरोना से बचाव में बहुत कारगर साबित हो सकती है. इस रिसर्च के नतीजों के आधार पर आप अपने लाइफ स्टाइल में, कोरोना के इलाज में और कोरोना हो जाने पर अपनी मानसिक स्थिति में बदलाव कर सकते हैं.
100 लोगों पर स्टडी की गई जिनकी कोरोना के चलते मौत हुई थी. एज फैक्टर 40-45 वाले 35 फीसदी लोग शामिल थे. 50-60 वाले 20 फीसदी शामिल थे और 60 से 80 वाले 45 फीसदी शामिल थे. तीन तरह के डेटा को हासिल किया- जब वो अस्पताल में एडमिट थे. जब वो जिंदगी हार रहे थे उसके ठीक पहले की रिपोर्ट. तीसरी हॉस्पिटलाइजेशन का मिड-पिरियड रिपोर्ट.
डायबिटीज वाले 72 फीसदी लोगों की मौत हुई. बिना डायबिटीज वाले सिर्फ 28 फीसदी की मौत हुई. कोरोना से जान गंवानेवालों में 32 फैक्टर की स्टडी की गई. ब्लड प्रेशर, बीएमआई, इंजाइटी लेवल को आधार बनाया.
डॉ. डीके गुप्ता. सीएमडी फेलिक्स हॉस्पिटल ने बताया कि कॉमोर्बिडिटीज वाले लोगों की कम्युनिटी कमजोर हो जाती है. जाहिर तौर पर जब डायबिटीज वाले लोगों को कोरोना अटैक करता है तो इससे उसका असर तेज होता है. ऐसे मरीजों में मल्टी ऑर्गन डिसइंफैक्शन की वजह से मौत होती है. उन्होंने बताया कि इस बार 60 फीसदी लोग यंग और मीडिल एज के लोग है. और भारत में ऐसे बहुत लोग है जिन्हें इस उम्र में डायबिटीज जैसी घातक बीमारी होती है.
हाई बीपी वाले 87 फीसदी लोगों की मौत
सौ लोगों पर की गई स्टडी में यह भी पता चला कि हाई ब्लड प्रेशर वाले 83 फीसदी लोगों की मौत हुई. जबकि 17 फीसदी उन लोगों की मौत हुई जिनका बीपी लेवल सामान्य था. इसके अलावा कोरोना से मौत में ऑक्सीजन लेवल की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही. जो मरीज 80 से कम ऑक्सीजन लेवल कम आए उनमें से 88 फीसदी की मौत हो गई. जबकि 80 और 90 ऑक्सीजन लेवल लेकर जो अस्पताल पहुंचे थे उनमें से 12 फीसदी की मौत हुई थी.
बॉडी मास इंडेक्स के आधार पर भी स्टडी की गई. 25 बीएमआई से जो ऊपर थे उसको मोटापे की कैटगरी में रखा गया. इसके बाद स्टडी करने पर यह पता चला कि अधिक वजन वाले 84 फीसदी की मौत हुई जबकि सामान्य वजन वालों में मौत सिर्फ 16 फीसदी थी.
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