नई दिल्ली: कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए 31 मार्च तक पूरे देश में सभी पैसेंजर ट्रेनों का परिचालन बंद रहेगा. रविवार को प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस बाबत फैसला लिया गया. बैठक में सभी राज्यों के मुख्य सचिव भी मौजूद रहे. इसका असर मेट्रो सेवाओं के परिचालन पर भी पड़ेगा. हालांकि, इस बंदी से आवश्यक सेवाओं की सुविधा पहुंचाने वाली ट्रेनें अप्रभावित रहेंगी.


31 मार्च तक ट्रेनों के परिचालन पर रोक लगा दी गई है. केंद्र सरकार के इस फैसले का मेडिकल विशेषज्ञों ने स्वागत किया है. मगर इसका दूसरा प्रभाव करीब 2 करोड़ 3 लाख यात्रियों पर पड़ेगा. एक आंकड़े के मुताबिक प्रतिदिन 13 हजार 5 सौ 23 ट्रेनों से देश भर में 2 करोड़ 3 लाख यात्री सफर करते हैं.


पूर्व महानिदेशक (स्वास्थ्य) डॉ अनिल कुमार कहते हैं, "भारत में कोरोना वायरस के मामलों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अभी प्रभावित होनेवालों की संख्या बहुत कम है और ये समूह में आने जाने से नहीं फैला है. मगर वक्त रहते वायरस के मानव चेन को तोड़ने के लिए उठाया गया जरूरी कदम है. सफर को रोक कर विशेष कर ट्रेनों से संक्रमण के फैलाव की आशंका को बहुत सीमित कर दिया गया है."


हालांकि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मोहन राव इससे सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि हॉस्टल को खाली करा दिया गया है. सैलानियों को घर जाने को कहा जा रहा है. लाखों मजदूरों को नौकरी नहीं मिल रही है. ऐसी परिस्थिति में ट्रेनों के स्थगित होने से ये लोग घर कैसे जाएंगे ?


गौरतलब है कि पिछले एक महीने से ट्रेनों के रद्द करने से भारतीय रेल को करीब 700 करोड़ का नुकसान हो चुका है. केंद्र सरकार के फैसले से अब उसका कुल घाटा 1600 करोड़ रुपये हो जाएगा. मगर अधिकारियों का कहना है कि कोरोना वायरस के संक्रमण पर रोक लगाने के लिए ये जरूरी कदम था. इसके अलावा यात्रियों को 90 दिनों तक टिकट कैंसिल करने की भी सहूलियत दी गई है. केंद्र सरकार ने ट्रेनों का इस्तेमाल कोरोना प्रभावित मरीजों के लिए भी करने का फैसला किया है. कुछ सैनेटाइज ट्रेनों को आइसोलेशन की सुविधा के लिए रखा जाएगा. जरूरत पड़ने पर एक कोच में दो मरीजों को आइसोलेट किया जाएगा.


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