कोरोना की रोकथाम के लिए मुंबई और पुणे ने उठाए ये अहम कदम, संक्रमण काबू में आने पर अब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने की तारीफ
एक वक्त था कि महाराष्ट्र में लगातार कोरोना के केस बढ़ते जा रहे थे और हर दिन पिछले दिन से ज्यादा केस सामने आ रहे थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों में महाराष्ट्र में केस कम हुए हैं, जिसकी तारीफ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने की है.
नई दिल्ली: आज केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने महाराष्ट्र के दो प्रमुख शहर मुंबई और पुणे की कोरोना के रोकथाम के लिए तारीफ की. इन दोनों शहरों में कन्टेनमेंट प्लान, कम्युनिकेशन और प्रक्रियाओं के विकेन्द्रीकरण से न सिर्फ केस में कमी आई, बल्कि पॉजिटिविटी भी काफी कम हो गई.
एक वक्त था कि महाराष्ट्र में लगातार कोरोना के केस बढ़ते जा रहे थे और हर दिन पिछले दिन से ज्यादा केस सामने आ रहे थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों में महाराष्ट्र में केस कम हुए हैं, जिसकी तारीफ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने की है. महाराष्ट्र के दो शहरों, मुंबई और पुणे में कोरोना के मामलों में कमी लाने के तरीके की जमकर तारीफ की गई.
पुणे ने कोरोना की रोकथाम के लिए पहले नाइट कर्फ्यू लागू किया. 12 फरवरी से 29 मार्च तक रात 11 बजे से सुबह 6 बजे नाइट कर्फ्यू लगाया गया. लेकिन इस बीच पॉजिटिविटी रेट करीब 24 फीसदी बढ़ी और केस भी कम नहीं हुए, न केस रुके. 30 अप्रैल से सख्त लॉकडाउन लागू किया गया, जिसके बाद अगले एक महीने में 17 फीसदी पॉजिटिविटी रेट कम हुई और केस में भी कमी आई.
इसी तरह मुंबई ने भी कोरोना रोकथाम के लिए कम्युनिकेशन और प्रक्रियाओं के विकेन्द्रीकरण का सहारा लिया और उसका असर भी दिखा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि कैसे मुंबई ने लड़ाई लड़ी और जीती.
- मुंबई ने अपना सेंट्रल कंट्रोल रूम खत्म कर डिसेंट्रलाइज़्ड कंट्रोल रूम तैयार किये. जहां टेस्ट के नतीजे प्रशासन के साथ लोगों से भी साझा किए.
- मुंबई के 24 वार्ड के लिए 24 वॉर रूम तैयार किए गए.
- बीएमसी एक हब की तरह काम करती थी, जहां 55 लैब से 10 हज़ार से ज्यादा टेस्ट रिजल्ट आते थे और उन्हें वार्ड के हिसाब से भेज दिया जाता. वहां का वॉर रूम उस हिसाब से काम करता था.
- हर वार रूम में 30 टेलीफोन लाइनें होतीं, जिसमें 10 टेलीफोन ऑपरेटरों, 10 डॉक्टरों / चिकित्सा सहायता स्टाफ और 10 एंबुलेंस और 10 डैशबोर्ड जिसमें बेड की उपलब्धता के बारे में जानकारी दी गई है.
- डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को वॉर रूम में काम करने के लिए आमंत्रित किया गया और उन्हें वजीफा दिया गया.
- 800 एसयूवी थी, जिन्हें बदल कर मेकशिफ्ट एम्बुलेंस बनाया गया. एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म था, जिसे ऊबर की सहायता से बनाया गया, एम्बुलेंस ट्रैक करने लिए.
- अस्पताल का ट्रैक रखने के लिए 172 अस्पतालों और COVID सुविधाओं का एक केंद्रीकृत डैशबोर्ड बनाया गया था.
इन उपायों से कोरोना की रोकथाम में काफी मदद हुई और मरीजों तक सही इलाज भी पहुंचा.
महाराष्ट्र के ये दो वो शहर और जिले थे, जहां केस हर दिन बस बढ़ते जा रहे थे. लेकिन नगर निगम, राज्य सरकार और मेडिकल एक्सपर्ट्स ने हालात को संभाल लिया. उम्मीद है कि बाकी राज्य इससे कुछ समझेंगे और अपने यहां ऐसी व्यवस्था लागू करेंगे, जिससे न सिर्फ केस में कमी आए, बल्कि लोगों की जान भी बच सके.
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