नई दिल्ली: कोरोना वायरस महज़ सेहत या अर्थव्यवस्था पर असर नहीं डाल रहा, बल्कि इसका असर शिक्षा पर भी पड़ा है. खासकर स्कूली लड़कियों की पढ़ाई इससे खतरे में है. इस बारे में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि हो सकता है कि सेकेंडरी स्कूल में पढ़ रही लगभग 20 मिलियन (दो करोड़) लड़कियां कभी स्कूल न लौट सकें. राइट टू एजुकेशन फोरम ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS) और चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन के साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में एक स्टडी की, जिसके नतीजे डराने वाले हैं.


‘मैपिंग द इंपैक्ट ऑफ कोविड-19’ नाम से हुई ये स्टडी 26 नवंबर को रिलीज हुई है, जिसमें यूनिसेफ के एजुकेशन प्रमुख टेरी डर्नियन के अलावा बिहार स्टेट कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (SCPCR) की अध्यक्ष प्रमिला कुमारी प्रजापति ने इस मुद्दे पर चिंता जताई. जून में 3176 परिवारों पर हुए सर्वे में उत्तर प्रदेश के 11 जिलों, बिहार के 8 जिलों, जबकि असम के 5 जिलों को शामिल किया गया. वहीं तेलंगाना के 4 और दिल्ली का भी 1 जिला इसमें शामिल रहा. आर्थिक तौर पर कमजोर तबके के परिवारों से बातचीत के दौरान लगभग 70 फीसदी लोगों ने माना कि उनके पास खाने को भी पर्याप्त नहीं है. ऐसे हालात में पढ़ाई और उसमें भी लड़कियों की पढ़ाई सबसे ज्यादा खतरे में है.


स्टडी में पाया गया कि किशोरावस्था की लगभग 37 फीसदी लड़कियां इस बात पर निश्चित नहीं कि वे स्कूल लौट सकेंगी. लड़कों की बजाए दोगुनी लड़कियां कुल मिलाकर 4 साल से भी कम समय तक स्कूल जा पाती हैं. वैसे राइट टू एजुकेशन (RTE) के तहत 6 से 14 साल तक की आयु के बच्चों के लिए 1 से 8 कक्षा तक की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है. स्कूल के इन 8 सालों में से लड़कियां 4 साल भी पूरे नहीं कर पाती हैं.


इसके अलावा स्कूल बंद होने पर डिजिटल माध्यम से पढ़ाने की कोशिश हो रही है. फायदे की बजाए इससे भी लड़कियों को नुकसान ही हुआ. दरअसल हो ये रहा है कि मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा अगर किसी घर में एक ही शख्स के पास है और पढ़ने वाले लड़के और लड़की दोनों ही हैं, तो लड़के की पढ़ाई को प्राथमिकता मिलती है. ऐसे में लड़कियों का यह सत्र एक तरह से बेकार जा रहा है. स्टडी में भी इसका अंदाजा मिला. 37 फीसदी लड़कों की तुलना में महज 26 फीसदी लड़कियों ने माना कि उन्हें पढ़ाई के लिए फोन मिल पाता है.


ई-लर्निंग के दौरान लड़कियों के पीछे जाने का एक कारण ये भी है कि वे स्कूल न जाने के कारण घर के कामों में लगा दी जाती हैं. तकरीबन 71 प्रतिशत लड़कियों ने माना कि कोरोना के बाद से वे केवल घर पर हैं और पढ़ाई के समय में भी घरेलू काम करती हैं. वहीं लड़कियों की तुलना में केवल 38 प्रतिशत लड़कों ने बताया कि उन्हें घरेलू काम करने को कहा जाता है. इंटरव्यू के दौरान एक और ट्रेंड दिखा कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की अपेक्षा निजी स्कूलों के बच्चे इस बात पर पक्का थे कि कोरोना खत्म होने पर स्कूल लौट पाएंगे.