कोरोना की जंग में महाराष्ट्र के ‘मालेगांव मॉडल’ की चर्चा यूं ही नहीं हो रही है. मालेगांव में वर्तमान स्थिति लॉकडाउन से बिल्कुल पहले की तरह दिखती है. कभी ये शहर कोरोना वायरस के कारण महाराष्ट्र के 5 हॉटस्पॉट इलाकों में शामिल था.


25 मई से कोरोना वायरस के कारण मालेगांव में किसी की मौत नहीं हुई है. मई में यहां संक्रमण से प्रतिदिन औसत 5 लोगों की मौत हो जाती थी. इसके अलावा महीने की शुरुआत में नए मामलों की संख्या 200 तक पहुंच गई थी. मगर 15 जुलाई तक कोरोना के सिर्फ 60 एक्टिव केस दर्ज किए गए. संक्रमण के 60 मामलों में भी ज्यादातर मालेगांव के बाहरी लोगों में पाए गए. महाराष्ट्र के मुकाबले मालेगांव की रिकवरी रेट हौसला बढ़ानेवाली है. सूबे में औसत रिकवरी रेट 54 फीसद दर्ज की गई जबकि मालेगांव की रिकवरी रेट 82 फीसद रही. कोरोना वायरस की जंग में सफलता देख ICMR ने जुलाई के पहले सप्ताह में राज्य सरकार को गोपनीय पत्र भेज मालेगांव मॉडल’ के अध्ययन की इजाजत मांगी थी.


80 फीसद मुस्लिम बाहुल्य मालेगांव में आबादी का औसत घनत्व राज्य के औसत घनत्व से ज्यादा है. यहां संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बहुत मुश्किल है. मालेगांव के म्यूनिसिपल कमिश्नर दीपक कसर कहते हैं, “स्थानीय निकाय को दो मोर्चों पर जंग लड़ना पड़ा. एक तो स्टाफ की कमी थी जबकि दूसरी सबसे बड़ी समस्या लोगों को स्क्रीनिंग, टेस्टिंग और क्वारंटीन के लिए समझाना भी चुनौतीपूर्ण था. महामारी की शुरुआत में सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील वातावरण में तो ये काम और भी कठिन साबित हुआ क्योंकि सोशल मीडिया पर अफवाहों और झूठी खबरों का बाजार गर्म था.”


कोरोना के खिलाफ जंग में 'मालेगांव मॉडल' की चर्चा


उन्होंने ये भी बताया कि अफवाहों में एक बात ये भी फैली हुई थी कि कोरोना वायरस की स्क्रीनिंग मुसलमानों के खिलाफ साजिश है. इसके चलते बड़ी संख्या में लोग स्क्रीनिंग को नहीं आ रहे थे. यहां तक कि स्क्रीनिंग के काम में लगे हुए कर्मचारियों पर हमले की भी बात सामने आई. अप्रैल के अंतिम सप्ताह और मई के पहले सप्ताह में 6 आशा कार्यकर्ताओं पर गर्म पानी उड़ेल दिया गया. बहुत सारे लोग अपना वास्तविक नाम और लक्षण बताने से परहेज करते.


प्रशासन ने कई मोर्चों पर लड़ी एक साथ लड़ाई


अंधविश्वास से एक धारणा लोगों की बन गई थी कि आंख खुली रहने की सूरत में मृतक जन्नत में नहीं जाएंगे. म्यूनिसिपल कमिश्नर कहते हैं कि इन सब परिस्थितियों के चलते कंटैक्ट ट्रेसिंग का काम बहुत पेचीदा हो गया था. लिहाजा उन्होंने समुदाय के प्रमुख लोगों की मदद मांगी. विशेषकर मुफ्ती और स्थानीय विधायक मुहम्मद इस्माइल जैसे लोगों ने मस्जिदों में लोगों से घरों पर रहने की अपील की. साथ ही उन्होंने ये भी ऐलान किया कि निकाय के स्वास्थ्य कर्मचारियों का सहयोग किया जाए. उनकी बात का ऐसा असर हुआ कि बड़ी संख्या में लोग टेस्टिंग के लिए आगे आने लगे. ईद के मौके पर भी मालेगांव का ईदगाह मैदान बिल्कुल सुनसान नजर आया.


कसर कहते हैं कि उनका दूसरा प्रयास समुदाय के लोगों को मुहिम में शामिल कर वायरस के बारे में संदेश पहुंचाना था. इसके लिए उन्होंने आयुवर्देकि और यूनानी छात्रों को साथ जोड़ा. कोरोना वायरस के बारे में जागरुक करनेवाले संक्षिप्त वीडियो बनाकर यूट्यूब पर अपलोड किए गए. गरीब लोगों को आइसोलेशन में रहने के दौरान जरूरी सामान मुहैया कराया गया. पुलिस विभाग की आपत्ति के बावजूद मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर दिया गया. कसर दावा करते हैं कि उन्हें मरीजों को निजी अस्पतालों में नहीं भेजना पड़ा. इस सिलसिले में इलाज के बिल का जीरो होने का दावा करते हैं.


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