मुंबई: हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के चार घंटे बाद हुई पुलिसकर्मी की मौत
पुलिस कांस्टेबल दीपक हाटे के घरवालों का आरोप है कि दीपक को घर छोड़ने आई एम्बुलेंस ने इलाका सील होने के चलते उन्हें घर से एक किमी दूर छोड़ा. पैदल चलकर आने से मरीज को सांस लेने में तकलीफ हुई.
मुंबई: कोरोना योद्धा के रुप काम कर रहे मुंबई पुलिसकर्मियों के काम को हम आप सराह जरुर रहे हैं लेकिन इस महामारी से हम सब को सुरक्षित रखने वाले पुलिसकर्मी प्रशासन की लापरवाही और अनदेखी की वजह से शहीद हो रहे हैं. मुंबई में एक ऐसा ही मामला सामने आया है जहां 53 वर्षीय पुलिस कांस्टेबल दीपक हाटे कोरोना को मात देकर घर लौटे और घर पहुंचने के चार घंटे बाद ही उन्होंने दम तोड़ दिया.
दीपक हाटे के घरवालों के मुताबिक़ मुंबई के बांद्रा पुलिस थाने में तैनात हाटे कोरोना की ड्यूटी करते समय कोरोना पॉज़िटिव पाए गए थे. 18 मई को उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें वर्ली के एनएससीआय में भर्ती कराया गया. 29 मई को उन्हें डिस्चार्ज किया गया. डिस्चार्ज मिलने के बाद एक एम्बुलेंस उन्हें घर छोड़ने पहुंची लेकिन वर्ली परिसर सील होने की वजह से एम्बुलेंस ने उन्हें घर से क़रीब एक किमी दूर छोड़ा. कोरोना की वजह से पहले से ही कमजोर दीपक हाटे ने घर की तरफ़ चलना शुरू किया लेकिन कुछ कदम चलते ही उनकी सांस फूलने लगी. दीपक ने अपने बेटे को बाइक लेकर बुलाया और फिर वो अपने घर पहुंचे.
दीपक के घर पहुंचने पर उनके इमारत के लोगों ने उनका तालियों से स्वागत भी किया लेकिन केवल चार घंटों में ही ये ख़ुशी का माहौल दुख में बदल गया क्योंकि जिस दीपक का स्वागत उन्होंने किया था, उसी दीपक की अर्थी ताली बजाने वाले हाथों को उठानी पड़ी.
दीपक की पत्नी नलिनी के मुताबिक़, ''अस्पताल से पहुंचने के बाद से वो थका-थका महसूस कर रहे थे. उन्होंने स्नान करके खाना खाया, हम सब से कुछ देर बातचीत की लेकिन उसके बाद से उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ महसूस होने लगी. हमने एम्बुलेंस बुलाने के लिए कई फ़ोन किए लेकिन जबतक की एम्बुलेंस पहुंच पाती तब तक देर हो चुकी थी.''
दीपक के पीछे उनकी पत्नी नलिनी और एक बेटा, एक बेटी है. दीपक के परिवार के मुताबिक़ केवल पॉज़िटिव मरीज़ के घर सील करने से सब ठीक नहीं होगा. दीपक के परिवार ने कहा कि नए नियमों के मुताबिक़ दीपक को डिस्चार्ज देने से पहले टेस्ट नहीं किया गया. ना उनका ठीक से चेक अप हुआ. ऐसे मरीज़ों से बिना टेस्ट किए डिस्चार्ज करना बहुत ख़तरनाक है.
सवाल ये है कि क्या सिर्फ़ रिकवरी रेट बढ़ाने की आड़ में लोगों से खिलवाड़ किया जा रहा है. दीपक की तरह ही हज़ारों लाखों पुलिसकर्मी सड़क पर जान जोखिम में डालकर ड्यूटी कर रहे हैं. पुलिसकर्मियों को पीपीई कीट नहीं दिया जाता, पॉज़िटिव आने के बाद पुलिसकर्मियों के किसी सेंटर में भर्ती करने की बजाए अच्छी मेडिकल सुविधा वाले अस्पताल में क्यों नहीं भेजा जाता. इन कोविड योद्धा की देखभाल अगर ठीक से नहीं की गई तो उनकी मौत के लिए ज़िम्मेदार कौन होगा? कोरोना नहीं ज़िम्मेदार होगा अपना प्रशासन.
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