Coronavirus Mutations: कोविड-19 के लक्षण विभिन्न स्ट्रेन में कैसे अलग होते हैं? जानिए सब कुछ
भारत में कोरोना संक्रमण के मामले पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर रहे हैं. कोरोना की दूसरी लहर में लोगों की ज्यादा मौत हो रही है. इसकी मार से देश का कोई वर्ग भी अछूता नहीं रहा. पहले कोरोना वायरस की चर्चा होती थी, लेकिन अब तो म्यूटेशन, स्ट्रेन, डबल म्यूटेंट और ट्रिपल म्यूटेंट तक मामला पहुंच चुका है. आखिर ये सब क्या हैं और कैसे इंसानी शरीर को प्रभावित कर रहे हैं- जाने
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कोरोना महामारी की शुरुआत से बढ़नेवाले लक्षणों की लिस्ट, जोखिम और विभिन्न म्यूटेशन का लोग मुकाबला कर रहे हैं. हाल के दिनों में नए म्यूटेशन से कोरोना मामलों की दर में आई वृद्धि तस्वीर को साफ करती है. न सिर्फ लक्षणों की गंभीरता भयावह है, बल्कि संक्रमण के ट्रांसमिशन में बढ़ोतरी भी चिंताजनक है. कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएंट्स भारत समेत दुनिया भर में घूम रहे है. सेंटर फोर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक कोरोना वेरिएन्ट्स के तीन वर्गीकरण की मॉनिटरिंग की जा रही है. B.1.1.7 वेरिएन्ट को ब्रिटिश वेरिएन्ट के तौर पर जाना जाता है और इंग्लैंग के दक्षिण-पूर्व में पाया गया था और वर्तमान में वेरिएन्ट ऑफ कन्सर्न के तौर पर पहचाना गया है.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि ये वेरिएन्ट 40-70 फीसद अन्य वेरिएन्ट्स की तुलना में ज्यादा संक्रामक है और मौत का खतरा 60 बढ़ाता है. P.1 को वैज्ञानिकों ने ब्राजील वेरिएन्ट का नाम दिया है और माना जाता है कि ये ज्यादा संक्रामक और खतरनाक पूर्व के म्यूटेशन की तुलना में होता है. दक्षिण अफ्रीकी वेरिएन्ट B.1.351 को कम से कम 20 देशों में पाया जा चुका है. ब्राजील वेरिएन्ट की तरह E484K म्यूटेशन इस वेरिएन्ट को एंटी बॉडीज को चकमा देने की अनुमति देता है. इसके साथ ही N501 म्यूटेशन उसे ज्यादा संक्रामक बनाता है.
भारतीय मूल का डबल म्यूटेंट वेरिएन्ट को पहली बार मार्च के अंत में महाराष्ट्र के अंत में पहचाना गया था. वैज्ञानिकों ने उसका नाम B.1.617 के तौर पर रखा है. दोनों में E484Q म्यूटेशन और L452R म्यूटेंट होता है, जो उसे ज्यादा संक्रामक बनाता है और एंटीबॉडीज से बच रहने में उसे सक्षम बनाता है. हाल ही में ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि कोरोना का ट्रिप म्यूटेशन वेरिएन्ट भी पश्चिम बंगाल, दिल्ली और महाराष्ट्र में उजागर हुआ है.
असल स्ट्रेन बनाम नया वेरिएन्ट्स: क्या अंतर है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, "जब कोई वायरस दोहारता है या अपनी नकल बनाता है, तो ये कभी-कभी थोड़ा बदल जाता है, जो किसी किसी भी वायरस में सामान्य है. ये बदलाव 'म्यूटेशन' कहलाते हैं. वायरस एक म्यूटेशन या ज्यादा नए म्यूटेशन के साथ मूल वायरस की 'वेरिएन्ट' के तौर पर जाना जाता है."
कोविड-19 की बीमारी देनेवाला कोरोना वायरस का एक प्रकार है. पुराने या असल स्ट्रेन से होनेवाले म्यूटेशन को कोरोना म्यूटेशन या मूल वायरस के 'वेरिएन्ट्स' कहा जाता है. असल स्ट्रेन के विपरीत, म्यूटेशन किसी को संक्रमित करने की अपनी क्षमता में अलग हो सकता है और अलग जिनोम सिक्वेंसिंग रख सकता है.
भारत में 'डबल म्यूटेशन' का संकट
ये E484Q and L452R नामी दो म्यूटेशन का मिश्रण है, जो उसे ज्यादा संक्रामक बनाते हैं और एंटी बॉडीज को भगाने में उसे सक्षम बनाता है. भारत में कोविड-19 के मामलों की हालिया वृद्धि के पीछे इस डबल म्यूटेशन को जिम्मेदार माना जा रहा ह, जो न सिर्फ सबसे कमजोर तबके को प्रभावित कर रहा है, बल्कि युवा, नौजवानों को जान कीमत चुकानी पड़ रही है. डबल म्यूटेशन से पैदा होनेवाली चुनौतियों के अलावा, ट्रिपल म्यूटेशन वेरिएन्ट पश्चिम बंगाल, महारष्ट्र और दिल्ली के हिस्से में पता लगया गया है.
क्या नए वरिएन्ट्स ज्यादा गंभीर लक्षण की वजह बन सकते हैं?
कोविड-19 मामलों में हालिया बढ़ोतरी और कमजोर वर्ग समेत युवाओं में जटिलता का प्रसार एक संकेत है कि नए वेरिए्ट्स लोगों की सेहत के लिए खतरा हैं और मूल स्ट्रेशन के मुकाबले मौत का ज्यादा खतरा जुड़ता है. बीमारी के सबसे आम लक्षणों के अतिरिक्त बहुत सारे लोगों को गंभीर सांस की शिकायत जैसे सांस लेने में कठिनाई, छाती दर्द और सांस लेने में दुश्वारी से जूझना पड़ रहा है, जो ऑक्सीजन की कमी के सभी संकेत हैं. ऑक्सीजन सिलेंडर की देशभर में मांग भारत में कोविड-19 के मरीजों की विनाशकारी हालत को बताती है.
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