कोरोना वायरस: नए मामले कम लेकिन मौत ज्यादा, क्या चाहती हैं हमारी सरकारें?
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. अरुण गुप्ता ने ये नतीजा निकाला है कि कोरोना संक्रमण होने और उससे मौत होने मैं तकरीबन 15 दिन का वक़्त लगता है. उनका कहना है कि संक्रमित मरीज की तबियत आमतौर पर सातवें दिन बिगड़ती है.
नई दिल्लीः कोरोना की दूसरी लहर के थोड़ा कमजोर होते ही अब ये सवाल उठने लगे हैं कि अगर राज्यों में संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं, तो फिर मौतें आखिर कम क्यों नहीं हो रही हैं? क्या राज्य सरकारों ने टेस्टिंग कम कर दी हैं और वे इस लॉकडाउन से जल्द निज़ात पाना चाहती हैं? ये वो सवाल हैं जिनकी हक़ीक़त के बारे में अब कोई भी सरकार ज्यादा कुछ नहीं बोलना चाहतीं, भले ही वो केंद्र का स्वास्थ्य मंत्रालय हो या फिर महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़ या दिल्ली की सरकार हो. ऐसे तमाम राज्यों की मजबूरियां समझी जा सकती हैं कि वे सवा महीने के लॉकडाउन के बाद यही चाहती हैं कि अब लोगों को उन्हें दो जून की रोटी नसीब हो सके. उनकी इस सोच को थोड़ा इसलिये भी जायज मानना चाहिए कि हालात बेहद बुरे हैं और अगर वे ईमानदारी से इस पर अमल करें, तो शायद ये रोती हुई तस्वीर कुछ बदल सके.
मैंने दिल्ली के कई ऐसे एक्सपर्ट डॉक्टरों से बात करके ये जानना चाहा कि आखिर ये राज क्या है कि कोरोना के नये मामले कम हो रहे हैं, लेकिन अधिकांश ने मुझे ये कहके चुप करा दिया कि "अब आप कहां इन टेस्टिंग की बात कर रहे हैं. अभी तो वैक्सीन को लेकर ही केंद्र सरकार और राज्यों में लड़ाई छिड़ी हुई है. देखते हैं कि हमारी तीसरी लहर से निपटने की तैयारी क्या है."
इन्हीं एक्सपर्ट्स ने मुझे दिल्ली का उदाहरण देते हुए बताया कि सोमवार को दिल्ली में मौत की आंकड़ा 340 रहा, लेकिन संक्रमण के नए मरीज 4524 ही आये.अब आप कह सकते हैं कि टेस्ट कम हुए, सो नये मामले भी कम हो गए. लेकिन हमारा मानना है कि संक्रमित होने के बाद दो से तीन हफ्ते में ही मौत होती है. चूंकि नये मामले कम हुए हैं, लिहाजा अगले दो से तीन हफ्ते में मौतें भी कम होने की पूरी संभावना है.
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. अरुण गुप्ता ने ये नतीजा निकाला है कि कोरोना संक्रमण होने और उससे मौत होने मैं तकरीबन 15 दिन का वक़्त लगता है. उनका कहना है कि संक्रमित मरीज की तबियत आमतौर पर सातवें दिन बिगड़ती है. तब वे अस्पताल जाते हैं, जहां पर कुछ ठीक हो जाते हैं, कुछ ICU में चले जाते हैं और कुछ वेंटीलेटर के भरोसे रहते हैं. लेकिन इनमें गम्भीर मरीजों की मौत दो से तीन हफ्तों के बीच ही होती है. उनका ये भी मानना है कि वायरस संक्रमण से कभी भी अचानक मौत नहीं होती. उनका मानना है कि इस लहर में युवाओं की ज़्यादा मौत होने का मतलाब साफ है कि उनमें संक्रमण तो बढ़ा लेकिन उन्होंने इसे मानने से साफ इंकार कर दिया.
लिहाज़ा, मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज की कम्युनिटी मेडिसिन की प्रोफेसर डॉ. नंदिनी शर्मा ने भी यही कहा है कि हम ट्रेंड देख रहे हैं, उसके मुताबिक दो से तीन हफ़्तों में ही आपको इन मौतों में कमी देखने को मिलेगी.
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